कुंडा के राजा भैया के खौफ की दास्तान;दिलेरगंज में घर जलते रहे कोई 1 बाल्टी पानी नहीं निकाल सका

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(www.arya-tv.com) प्रतापगढ़ जिले में एकमात्र बाहुबली हैं। नाम रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया है। कहावत है कि जहां से कुंडा की सीमा शुरू होती है, वहां से राज्य सरकार की सीमाएं समाप्त हो जाती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां सबकुछ राजा भैया की मर्जी से होता है। अपराध भी, न्याय भी। राजा भैया से जुड़ी अपराध की कहानियां यहां बहुत चलती हैं। लेकिन इसे बताने से पहले “कहा जाता है कि” लाइन का और “कुछ रिपोर्ट” का प्रयोग करना पड़ता है। बाहुबली सीरीज के इस अंक में हमारे किरदार हैं राजा भैया।

 राजा भैया के दादा हिमाचल प्रदेश के लेफ्टिनेंट गर्वनर थे
राजा भैया के बारे में कुछ भी जानने से पहले उनके परिवार के बारे में जानना ज्यादा जरूरी है। राजा के दादा राज बजरंग बहादुर सिंह हिमाचल प्रदेश के लेफ्टिनेंट गर्वनर थे। पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर थे। बजरंग बहादुर ने राजा के पिता उदय प्रताप सिंह को गोद लिया था। BBC ने 4 मार्च 2013 को एक रिपोर्ट छापी। जिसके मुताबिक उदय प्रताप 20 सदस्यों वाले अपराधी गिरोह के सरगना हैं। आजादी के बीच वह अपने समाज-विरोधी विचारों के आधार पर अलग राज्य स्थापित करना चाहते हैं।

जानकर हैरानी होगी कि कुंडा थाने के रिकॉर्ड में उदय प्रताप सिंह और उनके पुत्र राजा भैया के खिलाफ धोखाधड़ी, हत्या से जुड़े दर्जनों मामले दर्ज थे। इससे भी ज्यादा हैरानी की बात है कि राजा का नाम हिस्ट्रीशीटरों की लिस्ट में शामिल था। हिस्ट्रीशीटर समझते हैं न, हिस्ट्रीशीटर उसे कहते हैं जो अपराधी घोषित होने के बाद भी लगातार क्राइम करता जाए। कितनी अजब कहानी है।

2. 19 साल में बन गए विधायक जबकि चुनाव लड़ने की उम्र 25 है
राजा भैया 19 अक्टूबर 1967 को पैदा हुए। लेकिन 10वीं की मार्कशीट के अनुसार वह 1969 में पैदा हुए। तीसरी जानकारी में और झोल है। 2012 के चुनाव के दौरान उन्होंने जो नामांकन पत्र जारी किया उसमें अपनी उम्र 38 साल बताई। इसके आधार पर माने तो 1993 में वह 19 साल के थे जब पहली बार विधायक बने। जबकि चुनाव लड़ने की उम्र 25 है। राजा ने 2012 में सफाई देते हुए कहा, “प्रमाण पत्र में छपि उम्र के लिए मैं नहीं वो टाइपिस्ट जिम्मेदार है जिसने गलत टाइप किया, मैं कोई महिला थोड़े हूं जो अपनी उम्र छिपाऊं।”

कहने को लोकतंत्र है लेकिन कुंडा में जनतंत्र ही चलता रहा है। यहां लोग माला लेकर अपने नेता राजा भैया का घंटों इंतजार करते हैं। राजा आते हैं झुके लोगों के सामने खुद थोड़ा झुकते हैं, माला पहनते हैं और फिर अगले ही मिनट उतारकर रख देते हैं। ये क्रम आज से नहीं बल्कि 20 साल से चल रहा है। जनता का ये प्यार वोट बनकर भी मिलता है। एकबार तो जिस जिस ऑर्डर से वोटर लिस्ट थी उसी हिसाब से वोट पड़ गया। चुनाव आयोग चिंता में पड़ गया दोबारा वोट करवाना पड़ा।

3. दिलेरगंज में मुस्लिम बहुल गांव में आग लगा दी गई
1995 में कुंडा के ही मुस्लिम बहुल गांव में आग लगा दी गई। 20 घर जला दिए गए। तीन मुस्लिम लड़कियों के साथ बलात्कार करके उनकी हत्या कर दी गई। एक लड़के ने विरोध किया तो उसे पूरे गांव में बांधकर खींचा गया। इस पूरे बर्बर कांड में नाम आया राजा भैया का और उनके सबसे करीबी प्रकाश सिंह का। मामला दर्ज हुआ। जांच हुई तो कह दिया गया कि आग बुझाने के लिए पानी की व्यवस्था नहीं थी इसलिए लोग जलकर मर गए। लोग बताते हैं कि 100 मीटर की दूरी पर ही पानी से लबालब तालाब था लेकिन किसी को भरने ही नहीं दिया गया।

कल्याण सिंह की सरकार में मंत्री बने
दिलेरगंज का मामला कुंडा से उठकर लखनऊ वाया दिल्ली पहुंच गया। जमकर किरकिरी हुई। 1996 के चुनाव में कल्याण सिंह कुंडा में भाजपा प्रत्याशी के लिए रैली करने आए। नारा दिया, “गुंडा विहीन कुंडा करौं, ध्वज उठाय दोउ हाथ” जनता ने जोरदार तालियां पीटीं। लेकिन चुनाव में फिर से राजा को चुन लिया। इससे भी ज्यादा अचरज की बात ये थी कि राजा उन्हीं कल्याण सिंह की सरकार में मंत्री बने।

  • 4. राजा भैया पर आतंकी का ठप्पा
    2002 में यूपी के अंदर बीजेपी-बसपा की गठबंधन सरकार थी। भाजपा के विधायक पूरन सिंह ने कहा, लखनऊ चौराहे पर राजा अपनी गाड़ी से उतरे और माथे पर बंदूक सटाकर मुलायम सिंह जिंदाबाद कहने को कहा, लेकिन मैंने नहीं कहा। इस आरोप के साथ पूरन ने राजा के खिलाफ किडनैपिंग का केस दर्ज करवाया। मुख्यमंत्री मायावती ने तत्काल एक्शन लिया। राजा को पोटा के तहत टेररिस्ट घोषित करके जेल में डाल दिया।

    ऐसा बताया जाता है कि राजा भैया ने मायावती के खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग कर दिया था। जिसके बाद मायावती के पूरे कार्यकाल के दौरान राजा जेल में ही रहे। उसी दौरान राजा की पत्नी को जुड़वा बेटे हुए, लेकिन सरकार उन्हें 10 महीने तक इस जेल से उस जेल चक्कर लगवाती रही।

    5. राजा ने  मगरमच्छ पाल रखा है
    राजा भैया की भदरी कोठी के पीछे 600 एकड़ का तालाब है। कहा जाता है कि राजा ने उसमें मगरमच्छ पाल रखा है। उनके जो दुश्मन हैं, उनकी हत्या करके उसी तालाब में फेंक दिया जाता है। मायावती ने पूरे तालाब की खुदाई का आदेश दे दिया। खुदाई के दौरान एक नरकंकाल मिला। लोग बताते हैं कि ये कंकाल नरसिंहगढ़ के संतोष मिश्र का था। संतोष का स्कूटर राजा की गाड़ी से टकराया जिसके बाद उन्हें इतना मारा गया कि मौत हो गई।

    मायावती की सत्ता गई और मुलायम सिंहासन पर आए तो उन्होंने राजा भैया को मुक्त कर दिया। फूड मिनिस्टर बनाकर इज्जत नवाजी। तमाम मुकदमे हटा दिए। लेकिन 2007 में सत्ता पर फिर से मायावती का कब्जा हुआ। माया ने राजा के मंत्रालय की जांच करवा दी। पता चला कि इस मंत्रालय में  इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला हुआ। CBI ने 2011 में एक डायरी भी दी लेकिन उसका क्या हुआ ये किसी को नहीं पता है।

    6. DSP की हत्या का गंभीर आरोप लगा
    2 मार्च, 2013, कुंडा के बलीपुर में शाम साढ़े सात बजे प्रधान नन्हें यादव की गोली मारकर हत्या कर दी गई। मामला विवादित जमीन पर बनी एक झोपड़ी थी। साढ़े आठ बजे तक नन्हें की तरफ से करीब 300 लोग इकट्ठा हो गए। गुस्साए लोगों ने कामता पाल के घर को आग लगा दी। ये वही कामता पाल थे जिनके बारे में कहा जाता है कि राजा भैया के सबसे खास गुड्डू सिंह का हाथ हमेशा उनके सिर पर रहता था।

    जिया उल-हक पूरी फोर्स के साथ पहुंच गए

  • गांव में उपद्रव बढ़ा तो DSP जिया उल-हक पूरी फोर्स के साथ पहुंच गए। लोगों को समझाया। लोग उग्र होते चले गए। पुलिस ने फायरिंग कर दी। कहा जाता है कि इसी फायरिंग में नन्हें यादव के भाई सुरेश यादव की मौत हो गई। भीड़ ने इसके बाद पुलिस को दौड़ा लिया। CO जिया उल-हक को खूब पीटा और गोली मार दी। हत्या में साजिश की आंच राजा भैया तक आ गई। इसकी भी एक वजह है।

    2012 के मार्च महीने में सपा की सरकार बनी। कुंडा के अस्थान गांव में हिंसा भड़क गई। एक दलित बच्ची के साथ गैंगरेप हुआ था। गुस्साए लोगों ने मुस्लिम समुदाय के 50 घरों को फूंक दिया। आरोप था की राजा के आदमियों ने इस घटना को अंजाम दिया। इस मामले की जांच करने की जिम्मेदारी DSP जिया उल-हक को मिली। जांच की सुई बार बार राजा भैया और उनके आदमियों की तरफ घूम रही थी।

     अपनी खुद की पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं।

  • फिलहाल राजा सातवीं बार विधायक बनने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। पहले और अब में अंतर सिर्फ इतना है कि अब वह निर्दलीय नहीं बल्कि अपनी खुद की पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं। पार्टी का नाम जनसत्ता दल है। जो जनता पहले आधी झुककर सलाम करती थी वह आज भी उसी तरह से नजर आती है। कुंडा में राजा और प्रजा में कुछ भी नहीं बदला।