वर्ल्ड एड्स डे:हर 100 सेकंड में एक बच्चा HIV से संक्रमित , कोरोना के दौर में 60% का इलाज अटका

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(www.arya-tv.com) संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट कहती है, हर 100 सेकंड में एक बच्चा HIV से संक्रमित हो रहा है। पिछले साल दुनियाभर में HIV से 3,20,000 बच्चे और टीनएजर्स संक्रमित हुए। इनमें से 1,10,000 बच्चों की मौत हो गई। इसके बावजूद कोरोनाकाल में HIV के मरीजों के ट्रीटमेंट पर बुरा असर पड़ा है। मरीजों का ट्रीटमेंट छूटा और जांच भी ठप हो गई। आज वर्ल्ड एड्स डे है। इस मौके पर जानिए कोरोनाकाल में HIV मरीजों पर क्या असर पड़ा….

कोरोना और HIV मरीजों की चुनौतियां, 4 बड़ी बातें

 इलाज और टेस्टिंग 60 फीसदी तक घटी
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोनाकाल में HIV यानी ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस से संक्रमित बच्चों के इलाज और टेस्टिंग में 60 फीसदी तक गिरावट आई। एंटी-रेट्रोवायरल थैरेपी भी 50 फीसदी मरीजों को नहीं दी जा सकी। बच्चों की टेस्टिंग भी 10 फीसदी कम हुई। पिछले कुछ महीनों में हालात सुधरे हैं, लेकिन 2020 के टार्गेट से दूर हैं।

 73 देशों ने बताया, दवाओं का स्टॉक खत्म होने वाला है
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, कोरोना की वजह से एड्स की जीवनरक्षक दवाएं मरीजों तक पहुंचाने में बाधाएं आईं। WHO का एक सर्वे कहता है, 73 देशों ने चेताया है कि कोविड-19 महामारी के कारण उनके यहां एड्स की जीवनरक्षक दवाओं का स्टॉक खत्म होने वाला है। 24 देशों ने कहा, उनके यहां एड्स की जरूरी दवाएं या तो बहुत कम हैं या उनकी सप्लाई बुरी तरह बाधित हुई है।

 सबसे बुरा समय लॉकडाउन रहा
HIV के मरीजों को सबसे ज्यादा दिक्कतें लॉकडाउन में आईं। दिल्ली, मुम्बई, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े शहरों में ओपीडी और दूसरे सेंटर बंद कर दिए गए। मुम्बई के रहने वाले अमन (बदला हुआ नाम) लॉकडाउन में दवाएं लेने एआरटी सेंटर जाने के लिए निकले लेकिन उन्हें रास्ते में ही रोककर घर वापस भेज दिया। देश के कई शहरों में यही हाल रहा। बाद में सरकार ने दवाएं लेने के लिए ढील तो दी लेकिन ट्रांसपोर्ट ठप होने के कारण मरीज दवाओं से दूर रहे।

 मरीजों में खत्म नहीं हुआ डर
HIV के मरीजों को रोज दवाएं लेना जरूरी है, ऐसा न होने पर वायरस फिर से एक्टिव हो सकता है। मरीजों को एंटी रेट्रोवायरल थैरेपी की दवाएं दी जाती हैं। एंटी रेट्रोवायरल थैरेपी की दवाइयों की तीन लाइन होती है। अगर किसी वजह से पहली लाइन की दवाइयां रुक जाएं तो दूसरी लाइन शुरू करनी पड़ती है। दूसरी लाइन की दवा हर अस्पताल में मौजूद नहीं होती है, इसलिए भी मरीजों डर खत्म नहीं हुआ।

एंटी रेट्रोवायरल दवाओं के 3 लाइन के फर्क को ऐसे समझा जा सकता है। HIV के मरीज का शुरुआती इलाज लाइन-1 की दवा से होता है। इसका मतलब है पहली स्टेज। जब इन दवाओं का असर कम होने लगता है तो डॉक्टर्स मरीजों को लाइन-2 यानी दूसरी स्टेज की दवाएं देना शुरू करते हैं। जब लाइन-2 की भी दवाओं का असर खत्म हो जाता है, तब मरीज को लाइन-3 की दवा खाने की जरूरत पड़ती है।

HIV के सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में और सबसे कम अरुणाचल प्रदेश में
नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक, देशभर में 23.49 लाख लोग एचआईवी से संक्रमित हैं। इसके सबसे ज्यादा 3.96 लाख मरीज महाराष्ट्र में हैं। वहीं, सबसे कम 1 हजार मामले अरुणाचल प्रदेश में हैं।