(www.arya-tv.com) इस वर्ष 14 दिसंबर को दत्तात्रेय महाराज यानी दत्तगुरु के जन्मदिवस को दत्तात्रेय जयंती के रूप में मनाया जा रहा है। दत्तात्रेय भगवान को मानव का प्रथम गुरु माना जाता है। सभी गुरुपरंपरा दत्त महाराज से ही आरंभ होती है। गुरु की महिमा को बस इससे ही समझ सकते हैं भारतीय परम्परा में प्रतिवर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा को चारों वेदों की भी रचना करने, महाभारत के रचयिता कृष्णावतार (निराकार कृष्ण) आदि गुरु कृष्ण द्वैपायन व्यास के जन्मदिन को गुरु पूर्णिमा कहते हैं वही मार्गशीर्ष अग्राहण माह की पूर्णिमा की रात यानी पूर्णमासी को दत्त जयंती मनाई जाने का विधान है। इन दोनों तिथियां पर क्रमश: गुरु पूजन और दत्त महाराज का पूजन किया जाता है।
शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है।
“अज्ञान तिमिरांधश्च ज्ञानांजन शलाकया, चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवै नमः “
इस दिन का संकेत है कि हम वेदांत का अध्ययन करें, उसे अंगीकार करें और उसी के अनुसार जीवन व्यतीत करें। वेदांत हमे बाहर से राजसी बनाता है ओर भीतर से ऋषि। बिना ऋषि बने भौतिक सफलता भी हमारे हाथ नहीं लगती है।
भगवान दत्तात्रेय (तीनो ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का मिश्रण गुरुओं के गुरु हैं। गुरु तत्व हर जीव में है और सर्वव्यापी है।
भगवान दत्तात्रेय के 24 गुरुओं में कबूतर, पृथ्वी, सूर्य, पिंगला, वायु, मृग, समुद्र, पतंगा, हाथी, आकाश, जल, मधुमक्खी, मछली, बालक, कुरर पक्षी, अग्नि, चंद्रमा, कुमारी कन्या, सर्प, तीर (बाण) बनाने वाला, मकडी़, भृंगी, अजगर और भौंरा (भ्रमर) हैं। कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे अपने बच्चों को देखकर खुद भी जाल में जा फंसता है, तो इससे यह सबक लिया जा सकता है कि किसी से बहुत ज्यादा स्नेह दु:ख की वजह बनता है। चन्द्रमा लाभ-हानि से परे है। इसके घटने या बढ़ने से उसकी चमक और शीतलता नहीं बदलती, हमेशा एक जैसी रहती है, वैसे आत्मा भी किसी प्रकार के लाभ-हानि से बदलती नहीं है। पृथ्वी से हम सहनशीलता व परोपकार की भावना सीख सकते हैं। पृथ्वी माता हर आघात को परोपकार की भावना से सहन करती है और हमें देती ही रहती है। मृग अपनी मौज-मस्ती, उछल-कूद में इतना ज्यादा खो जाता है कि उसे अपने आसपास अन्य किसी हिंसक जानवर के होने का आभास ही नहीं होता है और वह मारा जाता यानी हमें साधन या लक्ष्य भेद्न करने में लापरवाह नहीं होना चाहिए।
पतंगा आग की ओर आकर्षित होकर खुद को नष्ट कर लेता है वैसे ही रंग-रूप के आकर्षण हमें नष्ट कर सकते हैं। हाथी हथिनी के संपर्क में आते ही उसके प्रति आसक्त हो जाता है यानी कि तपस्वी पुरुष और संन्यासी को स्त्री से बहुत दूर रहना चाहिए। आकाश अलग रहता है अत: मोह से दूर रहना चाहिए। भगवान दत्तात्रेय ने जल से सीखा कि हमें सदैव पवित्र रहना चाहिए। समुद्र के पानी की लहर सदा गतिशील रहती है, वैसे ही जीवन के उतार-चढ़ाव में भी हमें गतिशील रहना चाहिए। जिस प्रकार वायु कहीं भी जाती है तो गंध साथ ले जाती है अपने मूल स्वभाव को छिपाना नहीं चाहिये यानी जो अंदर वह बाहर दो चेहरे नहीं।
मछली किसी कांटे में फंसे मांस के टुकड़े को खाने के चक्कर में अपने प्राण गंवा देती है, वैसे हमें स्वाद न देकर जिव्हा को महत्व नहीं देना चाहिए यानी पुष्टिकर चाहे कडवा स्वाद हो भोजन करना चाहिए। जिस प्रकार कुरर पक्षी मांस के टुकड़े को चोंच में तब तक दबाए रहता है जब तक दूसरे बलवान पक्षी उस मांस के टुकड़े को छीन न ले। मांस का टुकड़ा छोड़ने के बाद कुरर को शांति मिल जाती है। यानी हम जगत को ऐसे ही पकडे हैं। चाइल्ड इज फादर ओफ मैंन। जैसे बच्चे हमेशा चिंतामुक्त और प्रसन्न दिखाई देते हैं सुह्रदय और सहज भोले होते हैं ऐसे ही लोग प्रभु को प्यारे होते हैं। आग सब कुछ खाक कर देती है वैसे ही चाहे जैसी काया हो जलकर भस्म होगी या यू कहो योग रूपी आग सभी कर्मों के फल को भी जला कर राख करने की क्षमता रखती है। एक तीर बनाने वाला इतना मग्न था कि उसके पास से राजा की सवारी निकल गई पर उसका ध्यान भंग नहीं हुआ। यानी वह लक्ष्य भेदन के बाण की नोक नुकीला बनाना बताता है। अर्थात जगत के सुखो से मुख मोडकर अपने साधन या साधना बाण नुकीला बनाने में लगे रहो। इतना नुकीला कि इस एक जन्म में ही सभी बाधाये पार कर परम तत्व को भी भेद सको। एक कुमारी कन्या जो धान कूट रही थी। धान कूटते समय उस कन्या की चूड़ियां आवाज कर रही थीं जो बाहर बैठे मेहमान को परेशान कर रही थी। तभी उस कन्या ने चूड़ियों की आवाज बंद करने के लिए चूड़िया ही तोड़ दीं।
दोनों हाथों में बस एक-एक चूड़ी रहने दी। कन्या ने बिना शोर किए धान कूट लिया। अब इसकी व्याख्या तो आप पर है आप कैसे ले। पिंगला नाम वेश्या का पर्याय और नाडी भी जो मृत्यु के समय चलती है। यानी वेश्यावृति करते हुये जिसमें दूसरे को सुख मिलता हो उसमें भी ईश में लीन हो सकते है यानी कर्म कोई बुरा नही जो समाज सेवा के लिये हो। हमें केवल पैसों के लिए नहीं जीना चाहिए। मकड़ी स्वयं जाल बनाती है, उसमें विचरण करती है और अंत में पूरे जाल को खुद ही निगल लेती है। ठीक इसी तरह भगवान भी माया से सृष्टि की रचना करते हैं और अंत में उसे समेट लेते हैं। भृंगी कीड़ा से सीखा कि अच्छी हो या बुरी, हम जहां जैसी सोच में अपना मन लगाएंगे, मन वैसा ही हो जाता है। भौंरे से सीखो कि जहां भी सार्थक बात सीखने को मिले, उसे तत्काल ग्रहण कर लेना चाहिए। भौंरा अलग-अलग फूलों से पराग ले लेता है यहां तक कमल में बंद भी हो जाता है। मधुमक्खियां शहद इकट्ठा करती हैं और एक दिन छत्ते से शहद निकालने वाला आकर सारा शहद ले जाता है यानी अधिक संग्रह वर्जित।
यह दर्शाता है कि सृष्टि के प्रत्येक जीव से हम सीख सकते हैं। या सबको गुरु का ही रूप समझ कर सम्मान करो। दूसरी बात दुनिया में किसी ऐसे जीव का नाम बताओ जो कुछ न कुछ सिखा न सकता हो। हम प्राय: अपने बचाव में तर्क देते हैं कि दतात्रेय महाराज के 24 गुरु थे पर उनकी महत्ता जाने बिना गुरु की संख्या गिनने लगते हैं। जो बेहद हास्यापद है।