(www.arya-tv.com) कुछ साल पहले तक बुलडोजर अतिक्रमण हटाने में इस्तेमाल की जाने वाली एक मशीन भर होती थी, लेकिन बीते सात-आठ सालों में भारतीय राजनीति और समाज में ‘बुलडोजर’ एक नए प्रतीक के रूप में उभरा है. समाज का एक तबका इसे जहां उसे दबाए जाने के प्रतीक के रूप में देखता है, वहीं दूसरा तबका पहले तबके को ‘काबू में रखने’ के औजार के रूप में . इस सबके बीच नेता इसे प्रचार पाने और अपने वोट बैंक को संतुष्ट करने का हथियार बना कर इस्तेमाल कर रहे हैं. अब बुलडोजर अतिक्रमणकारियों के घर-दुकान तक ही नहीं पहुंच रहे, नेताओं की स्वागत रैलियों और चुनावी रोड शो तक में पहुंच रहे हैं.
अब ऐसा लग रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से इसमें कुछ बदलाव आ सकता है. यह फैसला तो अभी आया नहीं है, लेकिन सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जो टिप्पणियां की हैं और जो रुख अख्तियार किया है, उससे भी बहुत कुछ संकेत मिलता है.
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
बुलडोजर से ‘इंसाफ’ करने की सरकारी प्रवृत्ति पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी आई है. जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने स्पष्ट कहा कि किसी की संपत्ति ध्वस्त करने का आधार यह कभी नहीं हो सकता कि वह किसी मामले में आरोपी या दोषी है. कोर्ट ने कहा कि एक ऑनलाइन पोर्टल हो, जहां इस तरह की किसी कार्रवाई से पहले इसकी सूचना अपलोड की जाए. कोर्ट ने कहा कि वैध मामलों में भी जब किसी का मकान गिराने का आदेश दिया जाए तो पीड़ित को पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए. अवैध निर्माण हो फिर भी, किसी के सड़क पर आ जाने से खुशी तो नहीं ही होगी. इसलिए अगर उसे वैकल्पिक व्यवस्था करने के लिए थोड़ा वक्त दिया जाए तो इसमें कोई नुकसान नहीं है.
आदेश किसी खास संप्रदाय के लिए नहीं, सबके लिए
फिलहाल कोर्ट ने बिना उसकी इजाजत लिए किसी भी मामले में (वैध तरीके से अवैध निर्माण गिराए जाने के मामले छोड़ कर) बुलडोजर चलाने की कार्रवाई पर रोक बरकरार रखा है और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. कोर्ट ने यह भी कहा कि यह पंथ निरपेक्ष देश है, इसलिए ध्यान रहे कि उसका आदेश किसी खास धर्म या संप्रदाय के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए है.