चंद्रप्रकाश द्विवेदी संवाद से बातचीत तक पहुंचना सबसे बड़ी चुनौती

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(www.arya-tv.com) आज अगर मुझे चाणक्य की स्क्रिप्ट लिखनी हो या और भी किसी पौराणिक चरित्र को केंद्र में रखकर संवाद लिखना हो तो मैं वो भाषा नहीं लिखूंगा जो मैंने चाणक्य सीरियल के निर्माण के दौरान लिखा था। आज जब मैं फिल्मों के लिए संवाद लिखता हूं तो इस बात का विशेष ध्यान रखता हूं कि गैर हिंदी भाषी भी उसको समझ सके। इससे फिल्मों की व्याप्ति अधिक होती है। हमारे यहां की फिल्में अबतक संवाद तक पहुंच पाई हैं जबकि इसको कम्युनिकेशन यानि बोलचाल की भाषा में होना चाहिए।

पांडित्यपूर्ण संवाद बहुधा बोझिल हो जाते हैं। अगर आप विदेशी फिल्मों को देखें तो वहां आपको ये प्रविधि दिखाई देगी। ये कहना है फिल्म निर्देशक और लेखक चंद्रप्रकाश द्विवेदी का जो दैनिक जागरण के ‘हिंदी हैं हम’ के हिंदी उत्सव में फिल्म लेखन की चुनौतियों पर स्मिता श्रीवास्तव से बातचीत कर रहे थे।

चंद्रप्रकाश द्विवेदी के मुताबिक ऐतिहासिक धारावाहिक या फिल्म बनाने के लिए कई पुस्तकों का सहारा लेना पड़ता है। उन पुस्तकों को लिखने के लिए कई व्यक्तियों ने अपना जीवन होम किया है। हमारा दायित्व होता है कि फिल्मों के माध्यम से उनकी बातों को अपनी भाषा में दर्शकों तक पहुंचाएं। पौराणिक पात्रों के बीच की बातचीत को लिखते वक्त पांडित्यपूर्ण शैली आ जाती है।