(www.arya-tv.vom) लखीमपुर खीरी हिंसा के बाद कांग्रेस यूपी में फ्रंट फुट पर खेल रही है। प्रियंका गांधी हिंसा के 7-8 घंटे के भीतर दिल्ली से लखनऊ पहुंच गईं। वहीं, राहुल गांधी बुधवार को लखीमपुर पहुंचने से पहले दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर BJP पर हमलावर हुए। इस बीच पार्टी के भीतर अंदरुनी कलह भी सतह पर आ गई।
दिल्ली में राहुल के साथ तीन चेहरे नजर आए। ये थे, पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राजस्थान के कांग्रेस नेता सचिन पायलट। दो कांग्रेसी राज्यों के CM की मौजूदगी के बीच कांग्रेस के सबसे सीनियर लीडर और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पूरे फ्रेम से गायब रहे। उनकी गैरमौजूदगी ने सियासी चर्चाओं को और बल दे दिया है कि पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं है।
अशोक गहलोत की आला कमान से नाराजगी?
यूपी में कांग्रेस के प्रदर्शन के दौरान सभी कांग्रेस शासित राज्यों की भूमिका देखने के मिली, लेकिन अशोक गहलोत राहुल की टीम से बाहर दिखे। कहा जा रहा है कि गहलोत पार्टी आलाकमान से थोड़े नाराज चल रहे हैं। दरअसल, पंजाब में राहुल गांधी ने पार्टी में वरिष्ठता को साइड में कर चन्नी को मौका देकर बता दिया कि सियासी जंग में कंधे से कंधा मिलाकर चलने वालों को ही मौका मिलेगा। फिर चाहे वह युवा हो या सीनियर।
राहुल की स्टाइल में फिट नहीं पुराने नेता
पंजाब से कैप्टन विदा हो गए। दलित नेता चन्नी की एंट्री हुई। वहीं, छत्तीसगढ़ में तो बघेल राहुल की पसंद बने हुए है। कहा जाता है कि कमलनाथ, गहलोत और कैप्टन भी राहुल की मर्जी से ही बहुमत के आधार पर थे, लेकिन वे राहुल की राजनैतिक स्टाइल में फिट नहीं हो पा रहे थे। अब बारी गहलोत की है। राहुल का हाथ सचिन के साथ है, लिहाजा गहलोत इसमें पिछड़ते दिख रहे हैं।
राहुल का मानना है कि चुनाव में पार्टी के किए वादों को पूरा करना मुख्यमंत्रियों की जिम्मेदारी है, सिर्फ कुर्सी कब्जाना नहीं। इसीलिए जब अशोक गहलोत AICC के कहने के बाद जयपुर से ही मोदी सरकार पर हमला बोलते हैं और सचिन पायलट खुद राहुल गांधी के साथ मौके पर जाने के लिए तैयार होते हैं तो इस कयासों को और बल मिल जाता है।
पंजाब के बाद राजस्थान में परिवर्तन की आहट!
दरअसल, पंजाब में बदलाव के बाद से ही लगातार कयास लगाए जा रहे थे कि सचिन पायलट को आलाकमान जल्द ही मुख्यमंत्री पद सौंपेगा। इस चर्चा पर तब विराम लग गया जब अशोक गहलोत ने इशारों- इशारों में गांधी जयंती के कार्यक्रम पर यह साफ कर दिया कि वहीं आगे प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर बने रहेंगे। अब सचिन को राजस्थान की गद्दी नहीं मिली है तो उन्हें राहुल और प्रियंका का ही सहारा है।
कहा जा रहा है कि पिछले कुछ समय से लगातार सचिन पायलट दिल्ली में आलाकमान के संपर्क में है। कहा जा रहा है कि पार्टी पहले पूरी तरह से पंजाब की स्थिति सामान्य कर देना चाहती है, उसके बाद राजस्थान पर फोकस किया जा सकता है।
चन्नी के लिए भी राहुल और प्रियंका का साथ जरूरी
इतना ही नहीं, राहुल के साथ दिखने वाले चेहरों के पीछे की कहानी को समझने के लिए आपको उनके राज्यों में चल रही सियासत को समझना होगा। बात पहले पंजाब की करते हैं। पंजाब में पिछले हफ्ते जो सियासी ड्रामा हुआ उसमें हीरो बनकर चरणजीत सिंह चन्नी निकले।
एक दलित विधायक को पार्टी ने पंजाब की कमान दे दी। कैप्टन और सिद्धू को छोड़कर चन्नी पर भरोसा करने के पीछे राहुल और प्रियंका की बड़ी भूमिका है। राहुल गांधी के साथ प्रियंका के समर्थन में खड़े होकर चन्नी यह दिखाना चाहते हैं कि उनकी निष्ठा कहां है?
छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल को चाहिए राहुल-प्रियंका का साथ
अब बात दूसरे कांग्रेसी सीएम भूपेश बघेल की। छत्तीसगढ़ में भी नेतृत्व परिवर्तन को लेकर सियासत जारी है। भूपेश बघेल को लेकर चर्चाएं जोरो पर हैं, लेकिन यूपी सरकार से अनुमति नहीं मिलने के बावजूद छत्तीसगढ़ सीएम भूपेश बघेल लखनऊ पहुंच गए थे। जबकि टीएस सिंह देव रायपुर में बैठकर सिर्फ सोशल मीडिया पोस्ट करते रहे।
