खांसी का कारण जानने के लिए रोगी का विस्तृत इतिहास और परीक्षण किया जाना जरूरी है। खांसी के कारण के अनुसार ही कफ सिरप या अन्य दवाओं का प्रयोग करना चाहिए। सिरप का गलत चयन मरीज को नुकसान पहुंचा सकता है। ये जानकारी केजीएमयू के रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत ने दी।
आईएमए ने रविवार को लखनऊ शाखा की अध्यक्ष डॉ. सरिता सिंह व सचिव डॉ. संजय सक्सेना के नेतृत्व में रिवर बैंक कॉलोनी स्थित आईएमए भवन में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया। इसमें बतौर मुख्य वक्ता डॉ. सूर्यकांत ने कहा कि खांसी का सिरप पीने से देश के कुछ हिस्सों में बच्चों की मौत की घटनाएं हुई। इसके बाद से देश भर में खांसी की सिरप को लेकर बहस हो रही है। चिकित्सकों ने खांसी के उपचार और खांसी के सिरप के सही उपयोग को लेकर जन-जागरूकता अभियान तथा चिकित्सकों को प्रशिक्षण देने की पहल शुरू की है। उन्होंने कहा कि देश में कई कफ सिरप मानकों पर खरे नहीं उतरे हैं तथा कुछ सिरपों में प्रयुक्त दवाएं एक-दूसरे के विरोधाभासी हैं। ऐसे सिरपों पर भारत सरकार ने वर्ष 2023 के गजट नोटिफिकेशन के माध्यम से प्रतिबंध लगाया है। उन्होंने बताया कि कुछ सिरपों में खांसी को दबाने वाली और खांसी को बढ़ाकर बलगम निकालने वाली दोनों प्रकार की दवाएं एक साथ मिली होती हैं, जो कि गलत है। उन्होंने कहा कि डेक्स्ट्रोमेथोर्फन, जो खांसी दबाने की दवा है, को अम्ब्रोक्सोल या गुआइफेनेसिन जैसी दवाओं के साथ मिलाकर नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि ये एक-दूसरे के विरोधाभासी प्रभाव वाली दवाएं हैं।
एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडिया ने केजीएमयू के रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभाग को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर ट्रेनिंग एंड मैनेजमेंट का दर्जा देते हुए खांसी के सही उपचार और उपयुक्त कफ सिरप के चयन से संबंधित प्रशिक्षण की जिम्मेदारी सौंपी है। इसके लिए केजीएमयू की कुलपति डॉ. सोनिया नित्यानंद ने डॉ. सूर्यकांत को बधाई दी। कार्यशाला में डॉ. जयंत लेते, डॉ. मनोज कुमार अस्थाना,डॉ. बीएन.गुप्ता, डॉ. जीपी कौशल और डॉ. जेडी रावत सहित लगभग 200 चिकित्सकों ने भाग लिया।
