UP में MLC चुनाव:आज निर्विरोध चुने जायेंगे 12 कैंडिडेट

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(www.arya-tv.com) उत्तर प्रदेश में 31 जनवरी को खाली हो रही विधान परिषद की 12 सीटों पर नामांकन प्रक्रिया पूरी हो गयी है। हालांकि स्थिति मतदान तक नहीं पहुंची और भाजपा के 10 और सपा के 2 सदस्य निर्विरोध चुन कर विधान परिषद पहुंचेंगे। इस चुनाव को लेकर सियासी गलियारों में बहुत तेजी से एक चर्चा तेज हो गयी है कि अखिलेश यादव के दांव से भाजपा इस चुनाव में चित हो गयी है।

इसे समझने के लिए आपको थोड़ा पीछे जाना होगा। अक्टूबर में राज्यसभा की 10 सीटों का नामांकन हुआ। जिसमें से 8 पर भाजपा ने अपने कैंडिडेट उतारे और एक पर बसपा और एक पर सपा का कैंडिडेट उतरा लेकिन एक निर्दलीय प्रत्याशी प्रकाश बजाज ने सपा विधायकों के समर्थन से नामांकन कर दिया।

राज्यसभा चुनाव में मायावती ने दिया था भाजपा को समर्थन

इसके बाद बसपा कैंडिडेट का राज्यसभा जाना मुश्किल लगने लगा। लेकिन प्रकाश बजाज का पर्चा खारिज हो गया। तब तमतमाई मायावती ने अगले विधानपरिषद चुनावों में भाजपा को समर्थन देने की बात कही थी। लेकिन माया के समर्थन के बावजूद भाजपा ने 12 सीटों पर होने वाले विधान परिषद चुनावों में 11 वां कैंडिडेट नहीं उतारा। जबकि सपा ने पर्याप्त संख्या बल न होने के बावजूद दो कैंडिडेट उतारे। अब जिनका आज निर्विरोध जीतना तय भी है।

11वें कैंडिडेट से पीछे क्यों हटी भाजपा
इसके पीछे की वजह जो सियासी गलियारों में बताई जा रही है कि भाजपा 2022 विधानसभा चुनावों से पहले बहुत सेफ गेम खेलना चाहती है। दरअसल, 11वां कैंडिडेट अगर भाजपा उतारती तो उसे संख्या बल जुटाना पड़ता। प्रदेश भाजपा के रणनीतिकार सुनील बंसल जहां बंगाल चुनाव में व्यस्त हैं। वहीं प्रदेश भाजपा के दूसरे रणनीतिकार डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य भी बंगाल चुनाव में लगाये गए हैं।

वर्षों से भाजपा कवर कर रहे सीनियर जर्नलिस्ट श्रीधर अग्निहोत्री का मानना है कि चूंकि सामने विधानसभा चुनाव है और अगर विपक्षी दलों के विधायकों को मनाने की बात आती तो उसके लिए बहुत से वादे करने पड़ते और भी कई तरह के प्रलोभन देने पड़ते जबकि यह काम प्रदेश भाजपा में इन दोनों के अलावा और कोई नही कर पाता। यही वजह है कि भाजपा ने 11वां कैंडिडेट नहीं उतारा।

विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव नहीं चाहती है भाजपा
सीनियर जर्नलिस्ट रतनमणि लाल कहते हैं कि अब सामने 2022 का विधानसभा चुनाव है। प्रदेश चुनावी साल में प्रवेश कर चुका है। ऐसे में सत्ता पक्ष कभी भी चुनाव नहीं चाहता। उन्होंने बताया कि अगर भाजपा 11वां कैंडिडेट नहीं जिता पाती तो एक तरफ विपक्ष इसे मुद्दा बनाता और दूसरा कार्यकर्ताओं का भी मनोबल टूटता।

हालांकि रतनमणि लाल इसके पीछे एक और वजह गिनाते हैं कि यह साल चुनावी साल है। भाजपा समेत तमाम दल अपने विधायकों को शंका की नजरों से देख रहे हैं। यह भी हो सकता है कि भाजपा को अपने साथ साथ गठबंधन के साथी विधायकों पर पूरा भरोसा न हो। क्योंकि इस चुनाव से कइयों का भविष्य जुड़ा हो सकता है। बहरहाल, भाजपा ने 11वां कैंडिडेट न खड़ा कर तमाम आशंकाओं को दफन कर दिया है।

अखिलेश ने खेला है मास्टर स्ट्रोक
सीनियर जर्नलिस्ट समीरात्मज मिश्रा कहते हैं कि अगर समाजवादी पार्टी की दलीय स्थिति देखे तो उनके पास 48 विधायक हैं। जिसमे से शिवपाल यादव पार्टी से अलग है। वहीं नितिन अग्रवाल बागी हो चुके हैं और अब्दुल्ला आजम की विधायकी का मामला कोर्ट में है। ऐसे में सपा के पास सिर्फ 45 विधायक बचते हैं। जबकि एक एमएलसी के लिए 32 विधायकों का समर्थन चाहिए। पर्याप्त संख्या बल न होने के बावजूद अखिलेश यादव ने रिस्क लिया। यही नहीं चुनाव की स्थिति में यदि सपा के कैंडिडेट को हारना पड़ता तो कार्यकर्ताओं पर असर पड़ता लेकिन सबकुछ समझते बुझते अखिलेश ने जो मास्टर स्ट्रोक खेला वह सही था।

दरअसल, अखिलेश समझ रहे थे कि भाजपा चुनावी वर्ष में बहुत एग्रेसिव नहीं होगी। साथ ही वह यह भी जान रहे थे कि बसपा के भले 19 विधायक हैं लेकिन राज्यसभा चुनावों में 4 बागी हो चुके हैं। यही नहीं कांग्रेस के भी 7 विधायको में से 2 बागी हैं। ऐसे में इन्हें अपना कैंडिडेट उतारना नहीं था। हालांकि चुनाव की जरूरत पड़ती तो भी विपक्ष में बसपा छोड़ बाकी दलों का समर्थन सपा को हासिल हो ही जाता। ऐसे में अखिलेश का मास्टर स्ट्रोक काम आ गया और अहमद हसन और राजेंद्र चौधरी विधान परिषद जाएंगे।