बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के अवसर पर आजादी का अमृत काल समिति, राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई एवं नेशनल कैडेट कोर, बीबीएयू और बाबासाहेब न्याय चेतना समिति के संयुक्त तत्वावधान में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने की। मुख्य अतिथि के तौर पर उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक एवं राज्यसभा सांसद श्री बृजलाल जी उपस्थित रहे। इसके अतिरिक्त मंच पर यंग लीडर्स फोरम फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) उत्तर प्रदेश चैप्टर के अध्यक्ष श्री नीरज सिंह एवं आजादी का अमृत काल समिति की अध्यक्ष प्रो. शिल्पी वर्मा उपस्थित रहीं। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन एवं बाबासाहेब की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ हुई। विश्वविद्यालय कुलगीत गायन के आयोजन समिति की ओर से मंचासीन अतिथियों को पुष्पगुच्छ भेंट करके उनका स्वागत किया गया। सर्वप्रथम नीरज सिंह ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों का स्वागत किया। इसके अतिरिक्त प्रो. शिल्पी वर्मा ने सभी को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के उद्देश्य एवं रुपरेखा से अवगत कराया। मंच संचालन का कार्य डॉ. नरेंद्र सिंह द्वारा किया गया।
उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक एवं राज्यसभा सांसद बृजलाल जी ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि भारत की आज़ादी कोई सहज उपलब्धि नहीं थी, बल्कि इसके लिए देश ने अपार बलिदान और भारी क़ीमत चुकाई है। इसीलिए ही इतिहास को दुनिया की सबसे बड़ी अदालत कहा जाता है, जिसका निर्णय सदैव विजेताओं के पक्ष में होता है। परंतु इसका महत्व केवल अतीत के ब्योरे तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अतीत को समझने, वर्तमान को जानने और भविष्य के लिए मार्गदर्शन प्राप्त करने का सबसे सशक्त साधन है। श्री बृजलाल जी ने स्मरण दिलाया कि कभी भारत ‘सोने की चिड़िया’ के रूप में विश्व में विख्यात था, जहाँ धर्म का पालन करते हुए किसी के अधिकारों का हनन नहीं किया जाता था, फिर भी हमें गुलामी का सामना करना पड़ा, जिसका सबसे बड़ा कारण देश के भीतर मौजूद आंतरिक देशद्रोही तत्व रहे। बृजलाल जी ने स्पष्ट किया कि बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर देश के विभाजन के पक्ष में नहीं थे और उन्होंने अनेक राजनीतिक संघर्षों और परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने संविधान सभा में आकर भारतीय संविधान के निर्माण में ऐतिहासिक योगदान दिया। उन्होंने आपातकाल के दौर का उल्लेख करते हुए बताया कि किस प्रकार उस समय मौलिक अधिकारों का हनन हुआ, संविधान और उसकी प्रस्तावना को बदलने के प्रयास किए गए तथा जनता को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया। बृजलाल जी ने विस्तार से मुस्लिम लीग द्वारा पारित लाहौर प्रस्ताव, मद्रास, बॉम्बे और बंगाल प्रेसीडेंसी, दिल्ली समझौता, बंगाल विभाजन, जगजीवन राम और जोगेंद्र नाथ मंडल की भूमिका, केशवानंद भारती केस सहित अनेक ऐतिहासिक घटनाओं का उल्लेख किया। साथ ही उन्होंने भारत विभाजन के समय हुई भीषण त्रासदियों, जनहानि, लाखों लोगों के विस्थापन, नेताओं के अद्वितीय योगदान, सरकारी हस्तक्षेप और इन सभी परिस्थितियों में बाबासाहेब के अमूल्य योगदान पर भी विस्तार से प्रकाश डाला।
विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने अपने विचार रखते हुए कहा कि भारत की स्वतंत्रता हमारे क्रांतिकारियों के संघर्ष और बलिदानों का परिणाम है। भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय लाखों लोगों की मृत्यु हुई और यह मानव इतिहास की एक भीषण त्रासदी थी, क्योंकि धर्म के आधार पर देश का बंटवारा हुआ था। इसलिए हमें अपने पूर्वजों की विरासत को सहेजकर रखना चाहिए। आज हमारा देश लोकतंत्र, आर्थिक विकास, कानून व्यवस्था, आधारभूत संरचना, अनुसंधान एवं विकास, मानवीय मूल्यों के संरक्षण तथा सामाजिक समरसता के आधार पर अमेरिका जैसी अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ते हुए सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर है। इसके लिए युवाओं को इतिहास को जानना, समझना और स्वयं में जागरूकता लाना अत्यंत आवश्यक है। प्रो. मित्तल ने कहा कि इस जागरूकता के लिए संस्कृति, मूल्य, भाषा, वेशभूषा, भारतीय दर्शन और स्वदेशी भावना का संरक्षण व पालन अनिवार्य है। पश्चिमी संस्कृति के आधार पर वास्तविक उन्नति संभव नहीं है, क्योंकि यह पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाली और मानवीय मूल्यों के विपरीत है, जबकि भारतीय दर्शन प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करता है और न्यूनतम उपभोग, कम करना, पुन: उपयोग, पुनर्चक्रण तथा संवेदनशील उपभोग की भावना को बढ़ावा देता है। साथ ही युवाओं के लिए ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना सर्वोपरी होनी चाहिए, क्योंकि युवा ही राष्ट्र का भविष्य हैं।
यंग लीडर्स फोरम फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) उत्तर प्रदेश चैप्टर के अध्यक्ष श्री नीरज सिंह ने चर्चा के दौरान कहा कि युवाओं को अपनी संभावनाओं की खोज करने और आकाश की ऊँचाइयों को छूने के लिए बाज़ जैसी तेज़ नज़र रखनी चाहिए, ताकि वे अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निरंतर अग्रसर रहें। उन्होंने बताया कि ‘युवा’ शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है, जिसमें ‘यु’ का अर्थ ‘युग’ और ‘वा’ का अर्थ ‘वाहक’ है, अर्थात युवा युग के वाहक होते हैं। दूसरी ओर संविधान एक मार्गदर्शक स्रोत है, और यदि हम केवल संवैधानिक मूल्यों की ही बात करें, तो भारत और पाकिस्तान के बीच का अंतर स्पष्ट दिखाई देता है, यही कारण है कि भारत को ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ कहा जाता है। श्री नीरज सिंह ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में भारत के निर्यात में सात गुना और जीडीपी में दो गुना वृद्धि हुई है, और इस समग्र विकास में उत्तर प्रदेश भी पीछे नहीं रहा है, जिसका उदाहरण है कि विश्व के सबसे बड़े आयोजन ‘कुंभ’ का सफल आयोजन उत्तर प्रदेश की धरती पर हुआ, जो बदलते भारत की अद्भुत झलक प्रस्तुत करता है। उन्होंने कहा कि आधुनिकता के दौर में यदि अस्तित्व की लड़ाई लड़नी है, तो भारत की अखंडता, एकता और दृढ़ता को बनाए रखना अनिवार्य है। साथ ही समानतामूलक समाज की स्थापना के लिए ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की विचारधारा को अपनाना आवश्यक है। उन्होंने बाबासाहेब के योगदान और श्री राम मनोहर लोहिया द्वारा लिखित पुस्तक ‘Guilty Men of India’s Partition’ का भी उल्लेख किया तथा युवाओं से आह्वान किया कि एक समृद्ध और सशक्त समाज के निर्माण के लिए हमें एकजुट होकर प्रेमपूर्ण तरीके से रहना होगा।
कार्यक्रम के दौरान विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस से संबंधित फोटो की प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया। साथ ही बृजलाल जी द्वारा गौतम बुद्ध केंद्रीय पुस्तकालय को कुछ पुस्तकें भेंट की गयी। इसके पश्चात आयोजन समिति की ओर से मंचासीन अतिथियों को स्मृति चिन्ह, पुस्तक एवं शॉल भेंट करके उनके प्रति आभार व्यक्त किया गया।
अंत में प्रो. शिल्पी वर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया। समस्त कार्यक्रम के दौरान विभिन्न संकायों के संकायाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष, शिक्षकगण, शोधार्थी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।
