कार्बन कैप्चर और हाइड्रोजन इनोवेशन के लिए ग्रीन पावर इंटरनेशनल की NTPC संग पार्टनरशिप, CO2 प्लांट की दी जानकारी

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(www.arya-tv.com) इंडिया एनर्जी वीक में कई बड़ी कंपनियां शामिल हुई हैं. इनमें खास तौर से हाइड्रोजन क्षेत्र की उन कंपनियों की मौजूदगी है जो कि ग्रीन फ्यूल की तरफ बढ़ते कदमों में योगदान दे रही हैं. ग्रीन फ्यूल के लिए CO2 की अहम भूमिका होती है, जिसके लिए एक बड़ा प्लांट लगाया जाता है. CO2 प्लांट के बारे में जानकारी देते हुए ग्रीन पावर इंटरनेशनल के मैनेजिंग डायरेक्टर वरुण पूरी ने कार्बन कैप्चर और हाइड्रोजन उत्पादन परियोजनाओं पर चल रहे कामों के बारे में बताया.

कई बड़ी कंपनियां भारत के स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में अपनी अग्रणी भूमिका को और मजबूत कर रही हैं. इसके लिए कई कंपनियों ने एनटीपीसी के साथ रणनीतिक साझेदारी की है, जो कार्बन कैप्चर और हाइड्रोजन उत्पादन परियोजनाओं पर केंद्रित है. इन पहलों का उद्देश्य कार्बन उत्सर्जन को कम करना और टिकाऊ ऊर्जा समाधानों को बढ़ावा देना है.

एनटीपीसी विंध्याचल कार्बन कैप्चर परियोजना

इस प्रमुख परियोजना के तहत, कंपनी ग्रीन पावर इंटरनेशनल उन्नत पोस्ट-कंबशन कार्बन कैप्चर तकनीक का उपयोग कर रहा है. मिली जानकारी के मुताबिक, इस प्रक्रिया के माध्यम से फ्लू गैस से CO₂ को अलग किया जाता है, जिससे इसे वातावरण में उत्सर्जित होने से रोका जा सके. कैप्चर किए गए CO₂ को शुद्ध कर तेल पुनर्प्राप्ति (Enhanced Oil Recovery), हरित ईंधन में रूपांतरण या भूमिगत संग्रहण (Carbon Sequestration) के लिए उपयोग किया जा सकता है.

इससे बिजली संयंत्र के कार्बन फुटप्रिंट में महत्वपूर्ण कमी आती है. इस प्रक्रिया में, CO₂ युक्त फ्लू गैस को एक एब्जॉर्बर कॉलम में भेजा जाता है, जहां यह एक तरल सॉल्वेंट के संपर्क में आता है. यह सॉल्वेंट CO₂ को अवशोषित कर लेता है और फिर एक स्ट्रिपर में गर्म किया जाता है, जिससे CO₂ मुक्त होता है. इसके बाद, शुद्ध CO₂ को संपीड़ित (Compress) कर भंडारण या अन्य उपयोगों के लिए तैयार किया जाता है, जबकि सॉल्वेंट को पुनः चक्रित किया जाता है.

हाइड्रोजन उत्पादन में नवाचार

कार्बन कैप्चर के अलावा, भारत में कई कंपनियां एनटीपीसी के साथ मिलकर कई हाइड्रोजन उत्पादन परियोजनाओं पर कार्य कर रहा है. यह परियोजनाएं अक्षय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग कर हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करने पर केंद्रित हैं. हरित हाइड्रोजन एक स्वच्छ ईंधन है, जो इस्पात, रिफाइनिंग और परिवहन जैसे कठिन-से-डीकार्बोनाइज (Hard-to-Abate) क्षेत्रों के कार्बन उत्सर्जन को कम करने में सहायक है. यह भारत की नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

भारत में कार्बन कैप्चर क्षेत्र का विकास

भारत 2.8 बिलियन टन के कार्बन कैप्चर क्षेत्र के रूप में उभर रहा है, जो औद्योगिक उत्सर्जन को कम करने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों के प्रति देश की प्रतिबद्धता को दर्शाता है. भारत में कई कंपनियां कार्बन कैप्चर, हाइड्रोजन उत्पादन, संपीड़ित जैव गैस (CBG) समाधान और गैस-आधारित विद्युत उत्पादन जैसे क्षेत्रों में अपनी विशेषज्ञता के साथ इस ऊर्जा परिवर्तन में अग्रणी भूमिका निभा रहा है.