(www.arya-tv.com) बुलडोजर के इ्स्तेमाल पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बाबा हरदेव सिंह ने स्वागत किया है. प्रयागराज ( तब के इलाहाबाद) वाराणसी और ग़ाज़ियाबाद में अवैध निर्माण के विरुद्ध अभियान चला कर बुलडोर बाबा कहे जाने वाले हरदेव सिंह का कहना है कि पूरी प्रक्रिया का पालन करके अगर अवैध निर्माण गिराया जाय तो कोई भी इसका विरोध नहीं करता. कोर्ट ने भी प्रक्रिया का कायदे से पालन करने को ही कहा है.
अवैध निर्माण का मायने
दरअसल, अवैध मकान या दूसरे अवैध निर्माण गिराने की एक पूरी प्रक्रिया है.नगर पालिका या विकास प्राधिकरण जैसी लोकल अथारिटी अपने मानकों के अनुसार तय करते हैं कि क्या वैध है या क्या अवैध. नगर पालिकाओं और विकास प्राधिकरणों में महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके सिविल सेवा के अफसर हरदेव सिंह कहते हैं – “अवैध का अर्थ ये होता है कि या तो निर्माण करने वाले ने अपनी जमीन में निर्माण नहीं कराया है या फिर संबंधित अथारिटी से प्रक्रिया पूरी कर अनुमति नहीं ली है. जैसे नक्शा पास नहीं कराया है. तीसरी स्थिति ये है कि उसके निर्माण से सार्वजनिक सुविधा में बाधा पड़ रही है.”
इस तरह के अवैध निर्माण न किए जा सके ये देखना भी इन्ही अथारिटीज की जिम्मेदारी है. ज्यादातर शहरों में देखा गया है कि कोई भी व्यक्ति अपने घर में जरा भी तोड़-फोड़ करने की कोशिश करता है अथारिटी या नगर पालिका का कोई न कोई कर्मचारी उसके घर पहुंच जाता है. कायदे से उस कर्मचारी को चाहिए कि होने वाले निर्माण को रोके या उसे नियमों के मुताबिक ही कराए. लेकिन अब तो सभी को पता है कि वो कर्मचारी ‘दस्तुरी’ लेकर अवैध निर्माण हो जाने देता है.
परिवार में कोई अपराधी, इसलिए मकान नहीं तोड़ा जा सकता
जब कभी हरदेव सिंह जैसा अधिकारी कोई अभियान चलाता है तो वही अवैध निर्माण तोड़े जाते हैं. लेकिन किसी का मकान इस बिना पर कतई नहीं तोड़ा जा सकता कि उसने परिवार का कोई व्यक्ति फरार अपराधी है या उसने कोई जघन्य अपराध किया हो. जिन जगहों पर अपराधियों के मकान तोड़े गए हैं वो अवैध निर्माण की ही आड़ में तोड़े गए हैं. ये अलग बात है कि उसमें प्रक्रिया का पूरी तरह से पालन नहीं किया गया. प्रक्रिया का पालन देखने का जिम्मा सरकार का है. अब अगर सरकार ने तब्बजो नहीं दी या तोड़-फोड़ पर मौन सहमति दे दी तो कोई कुछ नहीं कर सकता.सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से राज्य सरकारों पर अंकुश लगेगा कि वो पूरी प्रक्रिया का पालन करें. या अगर सरकार मौन सहमति देती है तो पीड़ित परिवार को बड़ी अदालतों की शरण मिल सकेगी.