एनटी रामाराव, उमा और योगी आदित्‍यनाथ के बाद क्या बालकनाथ बनेंगे गेरुवाधारी सीएम?

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(www.arya-tv.com) महंत बालकनाथ अगर राजस्थान के सीएम बनते हैं वे भगवा पहन कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले चौथे व्यक्ति होंगे. इससे पहले तीन भगवाधारी राज्यों में सबसे ऊंची लोकतांत्रिक कुर्सी पर बैठ चुके हैं. हालांकि इसमें सबसे ज्याद नाम कमाने वाले के तौर पर अभी तक योगी आदित्यनाथ को ही याद किया जा रहा है. जबकि फिलहाल राजस्थान के मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में शामिल बाबा बालकनाथ का नाम इस समय खूब चर्चा में है. ये भी नाथ पंथ को ही मानने वाले संत के तौर पर जाने जाते हैं. उनके समर्थक उन्हें महंत के अलावा बाबा बालकनाथ भी कहते हैं. मुख्यमंत्री बनने के सवाल पर बालक नाथ कहते हैं कि ये उनका विषय नहीं है लेकिन जिस तरह से वे राज्य को गैंगेस्टर मुक्त करने और जनता के साथ न्याय करने की बात करते हैं उससे कुछ संदेश जरुर मिलता है.

एनटी रामाराव
खैर, भारतीय जनता पार्टी अगर उन्हें मुख्यमंत्री बनाती है तो वे ऐसे चौथे मुख्यमंत्री होंगे जो भगवा पहनते हों. इससे पहले के तौर पर योगी के अलावा साध्वी उमा भारती का नाम तो सभी को याद आ जाता है, लेकिन पहले कौन थे, इसके लिए दिमाग पर थोड़ा जोर डालना पड़ता है. अस्सी के दशक में नंदमुनि तारक रामाराव भी गेरुआ पहनना पसंद करते थे और बाद में तो पूरी तरह गेरुआ ही पहनने लगे थे. इन्हें एनटीआर के नाम से भी जाना जाता है. फिल्मों में धार्मिक देवताओं और मिथकीय चरित्र निभाने वाले रामराव ने संभवतः अपनी छवि कायम रखने के लिए ये बाना धरा था.

उमा भारती पहली संन्यासी सीएम
यहां ये ध्यान रखने वाली बात है कि रामाराव दीक्षित संत नहीं थे. दीक्षित संत उसे कहा जाता है जिसने संन्यास की दीक्षा ली हो. ऐसा करने वाली साध्वी उमा भारती पहली थी. उन्होंने 2003 में वे मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं. हालांकि अगल ही साल हुबली मसले में अदालत से वारंट जारी होने पर इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद 2017 में योगी आदित्य नाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और अभी भी वे मुख्यमंत्री हैं. नाथ पंथ के गोरखनाथ पीठ के इस महंथ को बुलडोजर वाले बाबा के तौर पर भी जाना जाता है. यहां तक राजस्थान में प्रचार के लिए पहुंचे योगी का स्वागत भी लोगों ने बुलडोजर की भुजा के डाले पर चढ़ कर योगी का स्वागत किया. अंगरेजी मीडिया ने इसे स्टैंडिग ओबेशन की तर्ज पर बुलडोजर ओबेशन का शीर्षक दिया था.

उद्धव ठाकरे
वैसे शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भी हमेशा गेरुआ पहनते थे, लेकिन उन्होंने मुख्यंमंत्री पद की कभी शपथ नहीं ली. ये जरूर रहा कि उनका आदेश मुख्यमंत्री से भी ऊपर माना और बरता जाता रहा. वैसे भी कथा कहानियों के मुताबिक भारत में राजतंत्र के दौरान संतो-महंतों का आशिर्वाद और आदेश राजाओं के लिए सर्वोपरि रहा. लेकिन आजादी के बाद खास तौर से पंडित जवाहर लाल नेहरु ने सत्ता को संतों -महंतों के आश्रम से बाहर खीचने की पुरजोर कोशिश की. हालांकि बाद में काशी के करपात्री महाराज ने रामराज पार्टी बना कर चुनाव लड़ा था लेकिन उनका ये प्रयोग एक तरह से विफल ही रहा.