(www.arya-tv.com) “सरकारी स्कूल के बच्चे कोडिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सीख रहे हैं।” शायद आपको इस लाइन पर यकीन नहीं होगा। लेकिन मेरठ के 20 साल के आशुतोष और मुख्य विकास अधिकारी शशांक चौधरी ने इसे हकीकत में बदला है।
13000 से ज्यादा बच्चे आज साइंस के वर्किंग मॉडल, न्यूटन के सिद्धांत को न सिर्फ पढ़ रहे हैं, बल्कि उसका प्रैक्टिकल कर रहे हैं। जो बच्चे कभी प्राइवेट स्कूल में नहीं पढ़ पाए वह सरकारी स्कूल में पढ़ते हुए लोगों को बता रहे कि आगे चलकर साइंटिस्ट बनूंगा।
यूपी इन्वेस्टर्स समिट में आधारशिला लैब का भी एक स्टॉल लगा था। यहां आधारशिला के वर्किंग स्टाइल को बताने के लिए आशुतोष मौजूद हैं। क्या सोचकर इसे शुरू किया गया? सरकार का सहयोग किस स्तर पर मिला? अब तक कितने बच्चों को फायदा मिला? आगे की क्या प्लानिंग है? ऐसे ही तमाम सवालों को जवाब मिला। आइए सबकुछ समझते हैं…
सरकारी स्कूल में पढ़ा इसलिए हमेशा इसका भला चाहा
मेरठ के आशुतोष ने 8वीं तक की पढ़ाई यूपी बोर्ड के एक प्राइवेट स्कूल से की। इसके बाद हाई स्कूल और इंटरमीडिएट सरकारी कॉलेज से पूरा किया। इंजीनियरिंग में रुचि थी इसलिए मेरठ के ही एमआईटी से आईटी ट्रेड से बीटेक में एडमिशन ले लिया। आशुतोष इंजीनियरिंग के पहले ही सेमेस्टर से ऐक्सपैरिमैंट पर विशेष ध्यान देते थे। थर्ड ईयर आते-आते इन्होंने इन्नाजिकल नाम से एक स्टार्टअप खोल लिया। पढ़ाई से इतर जो समय बचता उसमें वह सरकारी स्कूलों में जाते और बच्चों को रोबोटिक सिखाते। बिजली के सिद्धांत को बताते।
आशुतोष का बीटेक पूरा हुआ तो उन्हें नौकरी के ऑफर मिले लेकिन वह नौकरी की तरफ नहीं गए। वह बताते हैं, “नौकरी करने में मुझे वो सेटिस्फेक्शन नहीं मिलता जो मुझे ये सब करके मिल रहा। मैंने पहले से ही तय कर रखा था कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए कुछ बेहतर करूंगा। एक दिन बच्चों को रोबोटिक और कोडिंग सिखाने के क्रम में CDO शशांक चौधरी सर से मुलाकात हुई। उन्हें हमने ये पूरा कॉन्सेप्ट बताया। उन्हें यह पसंद आया और इसे कुछ स्कूलों में स्थायी रूप से खोलने की बात कही।”
जो प्राइवेट स्कूल नहीं सिखाते वह हम सिखाते हैं
आशुतोष बताते हैं, “हमें सीडीओ सर का साथ मिला और हमने पहला लैब अपर प्राइमरी स्कूल पठानपुरा में तैयार किया। उस वक्त हमारे पास उपकरण कम थे लेकिन धीरे-धीरे हमने मैनेज किया और फिर एक बेहतरीन लैब तैयार किया जिसमें हम बच्चों को प्रैक्टिकल करवाने लगे। पहली लैब से बेहतर रिजल्ट आए तो हमने मेरठ के ही मोहिउद्दीनपुर के सरकारी स्कूल में दूसरी लैब तैयार की। यहां हमने बच्चों को वो सारी चीजें सिखाईं जो प्राइवेट स्कूलों में नहीं सिखाया जाता।
हमने सवाल किया कि क्या सरकार की तरफ से कोई मदद मिलती है? आशुतोष ने बताया, “दिसंबर 2021 में हमारा स्टार्टअप यूपी सरकार ने रजिस्टर्ड कर दिया। उसके बाद हमें साढ़े सात लाख रुपए मिले थे। उसी पैसों से हमने तमाम चीजें मैनेज की।” आशुतोष आगे कहते हैं, “लैब तैयार करने में हम अपना पैसा नहीं लगाते, बल्कि वो पैसा ग्राम प्रधान के फंड से लिया जाता है। एक लैब का खर्च 2 से 3 लाख रुपए के बीच आता है।”