सोयाबीन तेल 66% महंगा हुआ, पेट्रोल-डीजल से भी राहत नहीं

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(www.arya-tv.com)साल था 2018 और नवंबर का महीना। तब एक लीटर सोयाबीन तेल खरीदने के लिए 99 रुपए चुकाने पड़ते थे। अब 165 रुपए चुकाने पड़ते हैं। यानी 4 सालों में इसकी कीमत 66% से ज्यादा बढ़ चुकी है। इसी तरह एक किलो तुअर दाल के लिए 83 रुपए की जगह 118 रुपए चुकाने पड़ते हैं। पेट्रोल के लिए भी 79 रुपए की जगह अब करीब 97 रुपए देने पड़ते हैं।

आंकड़ों पर नजर डाले तो रिटेल महंगाई 4 साल में करीब दोगुना हो चुकी है। साल 2017-18 में महंगाई 3.3% थी, जो अब 7% के करीब है। बीते 9 महीनों से महंगाई दर RBI के 2%-6% के दायरे से बाहर बनी हुई है। इस कारण RBI आज एडिशनल मॉनेटरी पॉलिसी मीटिंग कर रही है। 6 साल में पहली बार ये मीटिंग हो रही है। इसमें RBI महंगाई कंट्रोल नहीं कर पाने के कारण सरकार को बताएगी।

ऐसे में कई लोगों के मन में सवाल होगा कि महंगाई के बढ़ने के क्या कारण होते हैं? सरकार महंगाई को कम क्यों नहीं कर पा रही है? सरकार और RBI के पास महंगाई को कंट्रोल करने के कौन-कौन से टूल हैं? कोविड महामारी के पहले और अब रोजमर्रा की चीजों के दामों में कितना अंतर आया है? जिस तरह से महंगाई बढ़ी है क्या उसी हिसाब से भारत की प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ी है? लेकिन इन सवालों के जवाब जानने से पहले एक नजर RBI की मीटिंग पर डाल लेते हैं।

RBI एक्ट के सेक्शन 45ZN के तहत मीटिंग
जब भी रिजर्व बैंक महंगाई को तय दायरे में रखने में विफल होता है, तो उसे इसके कारणों को एक्सप्लेन करते हुए सरकार को एक रिपोर्ट देनी पड़ती है। ऐसे में रिजर्व बैंक ने RBI एक्ट के सेक्शन 45ZN के तहत 3 नवंबर को एक एडिशनल मॉनेटरी पॉलिसी मीटिंग बुलाई है। इस मीटिंग में RBI महंगाई को कंट्रोल नहीं कर पाने के कारणों से जुड़ी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगा। उसे महंगाई को कंट्रोल करने में कितना समय लगेगा ये भी बताना होगा।

अब महंगाई पर बात….

महंगाई बढ़ने के कारण क्या है?
महंगाई के बढ़ने का सीधा-सीधा मतलब आपके कमाए पैसों का मूल्य कम होना है। उदाहरण के लिए, यदि महंगाई दर 7% है, तो आपके कमाए 100 रुपए का मूल्य 93 रुपए होगा। ऐसे कई फैक्टर हैं जो किसी इकोनॉमी में कीमतों या महंगाई को बढ़ा सकते हैं। आमतौर पर, महंगाई प्रोडक्शन कॉस्ट बढ़ने, प्रोडक्ट और सर्विसेज की डिमांड में तेजी या सप्लाई में कमी के कारण होती है। महंगाई बढ़ने के 6 बड़े कारण होते हैं:

  • डिमांड पुल इन्फ्लेशन तब होती है जब कुछ प्रोडक्ट और सर्विसेज की डिमांड अचानक तेजी से बढ़ जाती है।
  • कॉस्ट-पुश इन्फ्लेशन तब होती है जब मटेरियल कॉस्ट बढ़ती है। इसे कंज्यूमर को पास कर दिया जाता है।
  • यदि मनी सप्लाई प्रोडक्शन की दर से ज्यादा तेजी से बढ़ती है, तो इसका परिणाम महंगाई हो सकता है।
  • कुछ इकोनॉमिस्ट सैलरी में तेज बढ़ोतरी को भी महंगाई का कारण मानते हैं। इससे प्रोडक्शन कॉस्ट बढ़ती है।
  • सरकार की पॉलिसी से भी कॉस्ट पुश या डिमांड-पुल इन्फ्लेशन हो सकती है। इसलिए सही पॉलिसी जरूरी है।
  • कई देश इंपोर्ट पर ज्यादा निर्भर होते हैं वहां डॉलर के मुकाबले करेंसी का कमजोर होना महंगाई का कारण बनता है।