मात्र २४ साल की उम्र में शहीद हुए थे captain मनोज पाण्डेय

# ## Lucknow

(www.arya-tv.com) कप्तान मनोज पांडेय चौराहा जो कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के गोमती नगर में स्थित है वहा पर कप्तान मनोज पांडेय की एक बड़ी सी मूर्ति भी बनाई गई हैं लेकिन बहुत कम लोग जानते है इस वीर की कहानी के बारे में, आखिर कैसे शहीद हो गये 24 साल की उम्र में ।
कप्तान मनोज पांडेय का जन्म 25 जून 1975 में हुआ था , ये उत्तर प्रदेश के सीतापुर गांव रुढा के निवासी है इनके पिता का नाम श्री गोपीचंद्र पांडेय और माता का नाम श्रीमती मोहिनी पांडेय है ।
शुरुआती शिक्षा सैनिक स्कूल लखनऊ में

इन्होंने शुरुआती शिक्षा सैनिक स्कूल लखनऊ में ली, इनको बचपन से ही बॉक्सिंग पसन्द था इनकी माता इन्हें बचपन से ही देशभक्तो की कहानियां सुनाया करती थी , बचपन से ही इनका सपना था इंडियन आर्मी में जाने का इन्होने जब इंटरमीडिएट का परीक्षा पास किया तो निकल गए अपना सपना पूरा करने इन्होंने प्रतियोगिता पास करने के बाद पुणे के पास खड़कवासला स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में दाखिला लिया। वहा पर सबसे और मनोज पांडेय से एक सवाल पूछा गया आप क्या बनना चाहते हो ? क्या पाना चाहते हो ? तो कुछ लोगो ने जवाब दिया चीफ आफ आर्मी स्टाफ बनना चाहते है तो कुछ लोगो ने बोला विदेशों में पोस्टिंग चाहते है तभी मनोज पांडेय ने जवाब दिया मुझे केवल परमवीर चक्र पाना चाहते है। फिर धीरे धीरे यहां प्रशिक्षण ( training ) पूरा करने के पश्चात 11 गोरखा राइफल्स रेजिमेंट की पहली वाहनी के अधिकारी बने। ये अपना काम बखूबी सिद्धत से पूरा करते रहे । फिर एक बार मनोज पांडेय को एक टुकड़ी लेकर गश्त के लिए भेजा गया तो वो वापस आने में बहुत देर कर रहे थे तो सारे साथी परेशान होने लगे 2 दिन बाद जब मनोज पांडेय वापस आये तो उनके साथी उनसे लेट होने का कारण पूछे तो उन्होंने जवाब दिया जिस गश्त के लिए भेजा गया वो मिल ही नही रहे थे तो हम आगे बढ़ते ही रहे जब तक उनका हमने सामना नही कर लिया ।
 19700 फीट ऊँची ‘पहलवान चौकी’ पर डटे रहने का मौका मिला

इसी तरह, जब इनकी बटालियन को सियाचिन में तैनात होना था, तब मनोज पांडेय युवा अफसरों की एक ट्रेनिंग पर थे। वह इस बात से परेशान हो गये कि इस ट्रेनिंग की वजह से वह सियाचिन नहीं जा पाएँगे। जब इस टुकड़ी को कठिनाई भरे काम को अंजाम देने का मौका आया, तो मनोज पांडेय ने अपने कमांडिंग अफसर को लिखा कि अगर उनकी टुकड़ी उत्तरी ग्लेशियर की ओर जा रही हो तो उन्हें ‘बाना चौकी’ दी जाए और अगर कूच सेंट्रल ग्लोशियर की ओर हो, तो उन्हें ‘पहलवान चौकी’ मिले। यह दोनों चौकियाँ दरअसल बहुत कठिन प्रकार की हिम्मत की माँग करतीं हैं और यही मनोज पांडेय चाहते थे। आखिरकार मनोज पांडेय को लम्बे समय तक 19700 फीट ऊँची ‘पहलवान चौकी’ पर डटे रहने का मौका मिला ।
पहली ज़िम्मेदारी मिली खालूबार को फ़तह करने की

फिर कुछ समय बाद इन्हें पहली ज़िम्मेदारी मिली खालूबार को फ़तह करने की अपनी 1/11 गोरखा राइफल्स की ‘बी कम्पनी’ के साथ इस युद्ध के दौरान उनको प्रमोशन दिया गया था उन्हें लेफ्टीनेंट से कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय बना दिया गया था ।
इसी के साथ एक बडा जंग शुरू हुआ कारिगल सेक्टर पर बम बारूद और तोपो के गोले से बच कर कप्तान मनोज पांडेय ने चुन चुन कर पाकिस्तानी घुसपैठियों का सफाया करते जा रहे थे दूसरी तरफ ऊँची चोटी पर दुश्मन बैठे थे भरतीय सैनिको का इंतेज़ार कर रहे थे कि कब भारतीय सैनिक दिखे और उन्हें मार गिराए लेकिन कप्तान मनोज पांडेय ने अपनी टीम के साथ सारे दुश्मनो को मार गिराया और जीत हासिल की फिर जैसे ही पाकिस्तान के साथ कारिगल युद्ध खत्म हुआ तब तक दूसरा मोर्चा खालूबार का था जिसको कब्जा करने की जिम्मेदारी दी गयी ।
तिरंगा फहरा ही दिया

कप्तान मनोज पांडेय अपनी टीम के साथ निकल गए कब्जा करने खालूबार की ऊँची चोटी पर दुश्मन थे लगातार वो लोग भारतीय सेना पर बम बारूद फेकते रहे काफी चोट भी लग गई कप्तान मनोज को फिर भी वो हार नही माने और जख्मी हालत में लड़ाई कर उस चोटी पर तिरंगा फहरा ही दिया लेकिन तभी उनको सिर पे गोली लगी और वो वही शाहिद हो गए।
इनकी मौत 3 जुलाई 1999 में हुई आसाधारण वीरता के लिए इनको मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च वीरता पदक परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया ।

24 साल की उम्र में शहीद हुए कप्तान मनोज पांडेय की वीरता को देख 2003 में एक फ़िल्म भी बनाई गई है जिसका नाम एल.ओ.सी कारगिल है इस फ़िल्म में कप्तान मनोज पांडेय का किरदार अजय देवगन ने निभाया है

[सोनी श्रीवास्तव की एक रिपोर्ट ]