हो जाएं सतर्क:आगरा में 7 फीसदी बच्चे अस्थमा के मरीज, एलर्जी सबसे बड़ा कारण

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(www.arya-tv.com) अस्थमा को आम भाषा में दमा भी कहा जाता है। यह फेफड़ों को प्रभावित करने वाली एक ऐसी बीमारी है जो अगर किसी व्यक्ति को हो जाए तो यह जिंदगी भर रहती है। विश्व अस्थमा दिवस पर आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज के टीबी एंड चेस्ट डिपार्टमेंट के डॉ. गजेंद्र विक्रम सिंह ने अस्थमा से जुड़ी समस्याओं और उपचार के बारे में बताया।

अस्थमा बहुत बड़ी समस्या
डॉ. गजेंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि डब्ल्यूएचओ के अनुसार विश्व में अस्थमा के लगभग 26.2 करोड़ रोगी हैं। ग्लोबल बर्डन ऑफ़ डिसीसेस स्टडी 2019 के आकलन के अनुसार भारत में ही लगभग 3.4 करोड़ व्यक्ति अस्थमा से पीड़ित हैं। इस प्रकार दुनिया के 13 प्रतिशत रोगी भारत में है। देश के विभिन्न शहरों में किये गए शोध में 5 से 18 प्रतिशत तक बच्चे इस लाइलाज रोग से पीड़ित मिले। आगरा के लगभग 7 फीसद बच्चों में यह रोग पाया गया । हर साल करीब ढाई लाख मौत इस बीमारी के कारण होती हैं।

अस्थमा में श्वसन मार्गों (सांस की नालियां) में सूजन के कारण श्वास नलियां सिकुड़ जाती हैं। इससे रोगी को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। श्वसन मार्गों में होने वाले परिवर्तनों के कारण रोगी को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है।

ये हैं अस्थमा के लक्षण

  • अस्थमा से ग्रसित ज्यादातर लोगों को मौसम में बदलाव के समय कभी-कभी लक्षण महसूस होते हैं, जबकि अन्य लोगों को लगातार लक्षणों का सामना करना पड़ जाता है
  • अधिकांश रोगियों को दिक्कत देर रात या सुबह में ही होती है, जबकि अन्य लोगों को कोई खास गतिविधि करते समय अस्थमा के लक्षण महसूस होते हैं।
  • घरघराहट( wheezing) होना अस्थमा का सबसे प्रमुख लक्षण माना जाता है, जिसमें सांस लेने के दौरान सीटी बजने जैसी आवाज आती है। इसके अलावा सांस फूलना,हंसने या व्यायाम करने के दौरान खांसी उठना, सीने में जकड़न व दर्द, बार-बार गला साफ करने का मन करना और अत्यधिक थकान महसूस करना अस्थमा में अन्य लक्षण है।

    अस्थमा होने के प्रमुख कारण
    एलर्जी- एलर्जी होने से अस्थमा होने का खतरा बढ़ सकता है। 75 से 80 फीसद मामलों में अस्थमा एलर्जिक होता। लोगों की कुछ चीजों से एलर्जी अस्थमा का कारण बन सकती है। एलर्जी में धूल, परागकण, फफूंदी, और पालतू जानवरों की रूसी जैसी चीजें शामिल हैं।

    पर्यावरणीय कारक- कार्य स्थल पर पाए जाने वाले रासायनिक गैसों और धूलों से श्वसन मार्गों में सूजन के कारण लोगों में अस्थमा विकसित हो सकता है। इसके अतरिक्त वायु मंडलीय प्रदूषण के कारण विशेष रूप से शिशुओं और छोटे बच्चों में जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित नहीं हुई है, उनमें अस्थमा विकसित हो सकता है।

    जेनेटिक्स – यदि परिवार में अस्थमा या एलर्जी संबंधी बीमारियों का इतिहास रहा है, तो आपको इस बीमारी के विकसित होने का अधिक खतरा है।
    श्वसन संक्रमण –कुछ श्वसन संक्रमण, जैसे कि रेस्पिरेटरी सिन्सिटियल वायरस (आरएसवी) छोटे बच्चों के फेफड़ों को नुकसान पहुंचा कर अस्थमा होने कि सम्भावना को बढ़ा सकते हैं।

    अस्थमा का उपचार
    अस्थमा को ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन कुछ उपायों की मदद से अस्थमा के लक्षणों को “पूरी तरह नियंत्रित” कर एक सामान्य जीवन जी सकते हैं। आमतौर पर इन्‍हेल्‍ड स्‍टेरॉयड (श्वसन मार्गों के माध्‍यम से दी जाने वाली दवा) और अन्‍य एंटी इंफ्लामेटरी दवाएं अस्थमा के लिए अत्यंत प्रभावी दवाएं हैं। औषधियाँ हैं। चूकि इन्हेलर्स द्वारा दवा सीधे फेफड़ों में पहुंचती है और अत्यंत कम दवा कि मात्रा ही जरूरत पड़ती है, इसलिए अस्थमा के उपचार के लिए इनहलेशन थेरेपी को सबसे सुरक्षित, असरदार और बेहतरीन चिकित्सा पद्धंति माना गया है।

    देश में आज भी लगभग 75 फीसद अस्थमा के रोगी आज भी टेबलेट , सीरप या इंजेक्शन अदि दवाओं पर निर्भर है जबकि इनहेलेशन थेरेपी इनकी तुलना में कही अधिक सस्ती एवं प्रभावी है।