जिस टॉकीज के बाहर सालों तक चाय बेची, उसी के पर्दे पर हीरो बनकर आए

# ## Fashion/ Entertainment

(www.arya-tv.com)  इंसान सोच ले तो क्या नहीं कर सकता। ये बात कहने में आसान लगती है, करने में मुश्किल। हालांकि, कुछ लोग होते हैं जो इसे कर दिखाते हैं। ऐसे ही एक शख्स हैं श्रवण सागर चौधरी। ये राजस्थानी फिल्मों के जाने-माने एक्टर-डायरेक्टर हैं।

अपने शुरुआती दिनों में ये जयपुर के लक्ष्मी मंदिर टॉकीज के बाहर चाय बेचते थे। छह साल तक ये सिलसिला चला। फिर वक्त ने करवट ली और एक दिन वो आया कि इसी लक्ष्मी मंदिर टॉकीज में वो फिल्म लगी, जिसमें ये हीरो थे। एक चाय वाले से एक्टर-डायरेक्टर बनने की सागर की कहानी काफी दिलचस्प है। हीरो बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए इन्हें सालों तक स्ट्रगल करना पड़ा। पहले दूध बेचते थे, फिर टॉकीज के बाहर चाय, फिर फिल्मों के सेट पर स्पॉट बॉय बने, ऑफिस बॉय बने, ड्राइवर भी रहे, फिर असिस्टेंट डायरेक्टर और एक दिन फिल्म के हीरो बन गए।

पूरा नाम श्रवण सागर चौधरी है, पर लोग पुकारते ‘सागर’ हैं। दरअसल, मुंबई आने के बाद मेरा नाम सागर पड़ा। धीरे-धीरे फिल्म लाइन में आगे बढ़ता गया तो सागर नाम हाइलाइट में आ गया। 2004 में मुंबई से जयपुर वापस गया, तब अपने डाक्यूमेंट में नाम बदलवा लिया।

मैंने बहन की दर्दनाक मौत देखी है-

मैं लोअर मिडिल क्लास एक किसान परिवार का बेटा हूं। पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं। तीन भाई और एक बहन के बीच मैं तीसरे नंबर पर हूं। सबसे बड़ी एक बहन थी। हम बच्चे खेती में माता-पिता का हाथ बटाने खेत में जाते थे, तब देर रात घर लौटते थे। एक दिन आगजनी में 13 साल की उम्र में बहन की दर्दनाक मौत हो गई, तब मां टूट गईं। बड़े भाई ने छठी क्लास की पढ़ाई छोड़ दी। मैं तब सात साल का था, लेकिन आंखों देखी आगजनी की घटना ने मुझे झकझोर कर रख दिया। मम्मी-पापा खेत पर जाते थे, तब पीछे से मैं किचन से लेकर गाय-भैंस को खिलाने-पिलाने और गोबर उठाने का काम करता था।

मैं रोज 42 किमी दूर दूध बेचने जाता था-

16 साल की उम्र में मैं अपने गांव बड़ा पदमपुरा से 42 किलोमीटर दूर जयपुर शहर दूध बेचने जाने लग गया, क्योंकि उस समय मेरे गांव से एक ही बस आती थी और वही शाम को वापस जाती थी। दिन भर बैठा रहता था। साल-डेढ़ साल बाद समझ में आया कि दिन भर शहर में बैठे-बैठे आखिर क्या करूं। फिर तो जिस चाय की दुकान में दूध बेचता था, उसी से सीखकर मैंने चाय की दुकान खोल ली।

चाय बेचते हुए कई बार फ्री में देखीं फिल्में

उस समय जयपुर में राज मंदिर और लक्ष्मी मंदिर, दो सिनेमा हॉल काफी फेमस थे। मैंने लक्ष्मी मंदिर के पास चाय की दुकान खोली। पास के लक्ष्मी सिनेमा में दो कैदी, सलाखें, खलनायक, घायल, क्षत्रिय आदि फिल्में फ्री में देखी थी, क्योंकि सिनेमा हॉल के कर्मचारी हमसे फ्री में चाय मंगवाकर पीते थे। धीरे-धीरे सिनेमा हॉल के ओनर जागीरामजी से भी पहचान हो गई। उस समय तो वे सिनेमा चलाते थे, पर आज बहुत बड़ी शख्सियत हैं।

6 सालों तक सिनेमाघर के बाहर बेची चाय

मैंने 1991- 1997 तक चाय की दुकान चलाई। एक बार नारायण राम नाम के व्यक्ति घायल फिल्म देखना चाहते थे, पर टिकट नहीं मिल रहा था। उन्होंने मुझसे राजस्थानी भाषा में बातें करते हुए कहा कि भाई जी, जोधपुर का हूं और घायल फिल्म देखना चाहता हूं। मैंने उनकी थोड़ी हेल्प की, जिसका फल मुझे के.सी. बोकाड़िया साहब की फिल्म लाल बादशाह में मिला। वे के.सी. बोकाड़िया के प्रोडक्शन डिजाइनर थे। उन्होंने मुझे फिल्म में चाय बनाने वाले के तौर पर हायर किया। वहां सिनेमा के भगवान अमिताभ बच्चन को देखा। मनीषा कोइराला, मुकेश ऋषि, जया प्रदा आदि को देखा। मैं समझ नहीं पा रहा था कि इतने बड़े लोगों के बीच से आ रहा हूं, जा रहा हूं, घूम रहा हूं।