(www.arya-tv.com)21वीं सदी के विज्ञान के सामने कोरोनावायरस सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़ा है। अब तक 12.5 लाख लोगों की जान ले चुका यह वायरस कई देशों में तो लौट-लौटकर कहर बरपा रहा है। साफ है वैक्सीन ही कोरोना से निपटने का अकेला रास्ता है। वैज्ञानिक जुटे हैं। कई वैक्सीन ट्रायल के लास्ट फेज में हैं, मगर वैक्सीन तैयार होने से भी बड़ी चुनौती दुनिया की तकरीबन पूरी आबादी के लिए इसकी पर्याप्त डोज बनाना है। अपने विज्ञान और फार्मा इंडस्ट्री के बूते दुनिया की वैक्सीन फैक्ट्री बन चुका भारत ही इसका एकमात्र जरिया है। सच तो यह है कि दुनिया की 70% वैक्सीन बनाने वाले भारत के बिना कोरोना से जंग जीतना नामुमकिन है।
अकेला भारत संयुक्त राष्ट्र के टीकाकरण कार्यक्रम के लिए 60-80% वैक्सीन बनाकर देता है। अमेरिका, यूरोप, दक्षिण पूर्व एशिया से लेकर दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में भारतीय वैक्सीन की बड़ी सप्लाई है। पिछले साल तक 9400 करोड़ रुपए का भारतीय वैक्सीन बाजार 2025 तक 25 हजार करोड़ रुपए को हो जाएगा। रूसी कोरोना वैक्सीन स्पुतनिक हो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन। कोरोना वैक्सीन बनाने वाली ज्यादातर संस्थाएं और कंपनियां भारतीय फार्मा कंपनियों से वैक्सीन निर्माण के समझौते करने में जुटी हैं।
साइंस फॉर एंड विद सोसाइटी इन डीलिंग विद ग्लोबल पैनडेमिक
संयुक्त राष्ट्र की पहल पर हर साल 10 नवंबर को वर्ल्ड साइंस डे फॉर पीस एंड डेवलपमेंट मनाया जाता है। कोरोना महामारी के चलते इस साल की थीम “साइंस फॉर एंड विद सोसाइटी इन डीलिंग विद ग्लोबल पैंडेमिक” रखी गई है।