महिलाएं श्राद्ध कर सकती है या नहीं? क्या कहता है गरुड़ पुराण

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पितरों के पूजा का महापर्व पितृपक्ष  की शुरुआत हो गई हैं. पितृपक्ष के 16 दिनों में तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान से पितर प्रसन्न होते है.हिन्दू पंचाग के अनुसार भाद्रपद मास के पूर्णिमा तिथि से आश्विन मास के अमावस्या तिथि तक पितरों को प्रसन्न करने के लिए पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध किया जाता है.आमतौर पर पुरुष ही इन कर्मकाण्डों को करते है.ऐसे में सबके मन में एक सवाल आता है क्या महिलाएं भी पितृपक्ष में तर्पण,श्राद्ध और पिंडदान कर कती हैं या नहीं…

काशी (Kashi) के विद्वान और ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि शास्त्रों में महिलाओं को भी पिंडदान,तर्पण और श्राद्ध करने का अधिकार है. गरुण पुराण में इस बात का जिक्र है कि जिनको संतान के तौर पर पुत्र नहीं होता उसकी पुत्री भी श्राद्ध,तर्पण और पिंडदान कर सकती हैं. इतना ही नहीं पुत्र के अनुपस्थिति में घर की महिला पिंडदान और श्राद्ध कर सकती है ये शास्त्र सम्मत  भी है.

माता सीता ने किया था पिंडदान
कथाओं के अनुसार माता सीता ने भी भगवान राम की अनुपस्थिति में अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान किया था.कथाओं के अनुसार भगवान राम और लक्ष्मण जब दशरथ के श्राद्ध के लिए सामान लेने गए थे तो उन्हें वापस लौटने में देरी हो गई थी.उस समय माता सीता ने बालू से पिण्ड बनाकर राजा दशरथ का पिंडदान किया था.