क्यों खत्म हुआ 150 साल पुराना कानून , क्या है धारा 497

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Arya Tv : Lucknow (stuti Tiwari)

सुप्रीम कोर्ट ने समानता को सर्वोपरि माना

 सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने एकमत से फैसला सुनाया कि व्यभिचार अपराध नहीं है.

बीते 2 अगस्त को देश की शीर्ष अदालत में इस मामले पर सुनवाई थी. तब अदालत ने कहा था, ‘व्यभिचार कानून महिलाओं का पक्षधर लगता है लेकिन असल में यह महिला विरोधी है. पति के कहने पर पत्नी किसी की इच्छा की पूर्ति कर सकती है, तो इसे भारतीय नैतिकता कतई नहीं मान सकते.

व्यभिचार कानून पर आज फैसला आया. स्त्री-पुरुष के विवाहेतर संबंधों से जुड़ी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा-497 पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया. आज के फैसले से साफ हो गया कि कोर्ट ने समानता के अधिकार को सर्वोपरि मानते हुए महिलाओं के अधिकार को सर्वोपरि माना.

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सुप्रीम कोर्ट ने तमाम दलील दी कि व्यभिचार पर दंडात्मक प्रावधान संविधान के तहत समानता के अधिकार का परोक्ष रूप से उल्लंघन है क्योंकि यह विवाहित पुरुष और विवाहित महिलाओं से अलग-अलग बर्ताव करता है.

महिलाओ के साथ है कोर्ट?

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में कुछ साल पहले एक अर्जी दाखिल कर कहा गया था कि ये संविधान के अनुच्छेद-14 यानी समानता की भावना के खिलाफ है.

अगर किसी अपराध के लिए मर्द के खिलाफ केस दर्ज हो सकता है, तो फिर महिला के खिलाफ क्यों नहीं? अदालत ने आगे कहा, शादीशुदा संबंध में पति-पत्नी दोनों की एक बराबर जिम्मेदारी है. फिर अकेली पत्नी पति से ज्यादा क्यों सहे? यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट इस कानून को पुरातन मान रही है.

इस कानून का एक पक्ष यह भी था कि अपराधी सिर्फ पुरुष’ हो सकते हैं और महिला सिर्फ शिकार क्योंकि केवल उस व्यक्ति के खिलाफ केस दर्ज का प्रावधान था, जिसने शादीशुदा महिला के साथ संबंध बनाए. उस महिला के खिलाफ मुकदमा नहीं होता, जिसने ऐसे संबंध बनाने के लिए सहमति दी.

क्या है धारा 497 

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आईपीसी की धारा 497 के तहत अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी शादीशुदा महिला के साथ रजामंदी से संबंध बनाता है तो उस महिला का पति एडल्टरी के नाम पर इस पुरुष के खिलाफ केस दर्ज कर सकता है लेकिन वो अपनी पत्नि के खिलाफ किसी भी तरह की कोई कार्रवाई नहीं कर सकता है।

साथ ही इस मामले में शामिल पुरुष की पत्नी भी महिला के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं करवा सकती है। इसमें ये भी प्रावधान है कि विवाहेतर संबंध में शामिल पुरुष के खिलाफ केवल उसकी साथी महिला का पति ही शिकायत दर्ज कर कार्रवाई करा सकता है।