(www.arya-tv.com) उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती दलित वर्ग में नई हलचल लाने की कोशिश कर रही हैं. जब बीएसपी का ग्राफ गिर रहा है और इसे उठाना मुश्किल नजर आ रहा है तब मायावती फिर से उस प्रयोग को अपने तरीके से जिंदा करने की कोशिश कर रही हैं, जिसे कांशीराम ने बामसेफ के नाम से खड़ा किया था लेकिन वो फिर खुद ही उसे सक्रिय नहीं रख पाए. हालांकि ये संगठन जिंदा है. चल रहा है लेकिन अब वो खुद कम से कम बीएसपी से एकदम अलग रखता है. हालांकि मायावती फिलहाल बामसेफ चला रहे लोगों को खारिज करती रही हैं. माना जा रहा है वो इस बामसेफ के समानांतर फिर से उसी तरह का ढांचा कम से कम यूपी में तो खड़ा करने की कोशिश में लग चुकी हैं.
बामसेफ (BAMCEF)का फुल फॉर्म है बैकवर्ड (एसटी, एसटी, ओबीसी) एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्पलाई फेडरेशन. जमीनी स्तर पर बीएसपी के आधार को मजबूत करने के लिए इसे फिर से यूपी में सक्रिय करने की रणनीति तैयार की गई है. बामसेफ की कमिटियों का नए सिरे से गठन करने की बात है. हर जिले में बामसेफ का ढांचा बनेगा. फिर से ढांचा विधानसभा क्षेत्र स्तर तक जाएगा.
कांशीराम और उनके दो साथियों ने जब 06 दिसंबर 1978 को इसे शुरू किया था तो इसका दर्शन और लक्ष्य बिल्कुल अलग था. इसके दायरे में अगर दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग था तो ब्राह्मणवाद को लेकर प्रबल विरोध की भावना भी. अब मायावती जिस बामसेफ का ढांचा बना रही हैं, उसमें दलितों, पिछड़ों और वंचितों के साथ मुस्लिमों और ब्राह्मणों को जोड़ने का अभियान चलेगा.
दो बामसेफ संगठन
देश में फिलहाल दो बामसेफ संगठन बन गये हैं. एक संगठन जिसके अध्यक्ष हैं बामन मेश्राम, जो खुद को असल संगठन बताती है, तमाम राज्यों में इसका ढांचा फैला हुआ है. ये खुद को बीएसपी के साथ नहीं मानती. दूसरी बामसेफ वो है जिसको मायावती खड़ा कर रही हैं और उनके लोग कहते हैं कि असल बामसेफ तो बहनजी का ही है.
तो सुनिए बामसेफ की कहानी, दो कर्मचारी सस्पेंड हुए और फिर ….
अब आइए आपको सुनाते हैं उस संगठन की कहानी, जो 70 के दशक में बनी और बामसेफ कहलाई. जयपुर (राजस्थान) के रहने वाले दीनाभाना पुणे की गोला बारूद फैक्टरी में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में काम कर रहे थे. वह वहां की एससी, एसटी वेलफेयर एसोसिएशन से जुड़े हुए थे. जब उन्होंने अंबेडकर जयंती पर छुट्टी को लेकर हंगामा किया तो बदले में उन्हें सस्पेंड कर दिया गया. वह वाल्मीकि समाज से आते थे. उनका साथ देने वाले डीके खापर्डे का भी यही हश्न हुआ. वे महार जाति से थे. कांशीराम वहां क्लास वन अधिकारी के रूप में काम कर रहे थे. जब पूरा मामला उन्हें पता चला तो उन्होंने कहा कि बाबा साहब अंबेडकर की जयंती पर छुट्टी न देने वाले की जब तक छुट्टी न कर दूं, तब तक चैन से नहीं बैठ सकता.
शुरू में बीएसपी के लिए क्या थी बामसेफ
ये वो घटना है जिसने दलित कर्मचारियों और अधिकारियों के हक के लिए काम करने वाले सबसे बड़े संगठन बामसेफ (Backward And Minority Communities Employees Federation) को जन्म दिया. जो इतनी बड़ी ताकत है कि बसपा जैसी पार्टी इसके बिना इतनी ऊंचाई नहीं हासिल कर सकती थी. कांशीराम के दौर तक इस संगठन ने बसपा के लिए वैसा ही काम किया जैसा भाजपा के लिए आरएसएस करता है. फिर कहा जाने लगा कि बामसेफ ने खुद मायावती से अलग कर लिया है
कांशीराम के साथ इन दो ने डाली इसकी नींव
आमतौर पर लोग यह जानते हैं कि बामसेफ की स्थापना कांशीराम ने की. लेकिन सच ये है कि इसकी नींव तो दीनाभाना और डीके खापर्डे की वजह से रखी गई. ये दोनों पहले और दूसरे संस्थापक थे. कांशीराम तीसरे संस्थापक रहे. बामसेफ के अध्यक्ष वामन मेश्राम बताते हैं, “दीनाभाना बहाल हुए. उनका ट्रांसफर दिल्ली कर दिया गया. मेश्राम के मुताबिक कांशीराम ने उस अधिकारी की पिटाई की, जिसने उन्हें सस्पेंड किया था. फिर कांशीराम ने सोचा कि जब हमारे जैसे अधिकारियों पर अन्याय होता है तो देश के और दलितों, पिछड़ों पर कितना होता होगा. कांशीराम ने नौकरी छोड़ दी और बामसेफ बनाया.”