आब खस्ताहाल सरकारी बैंक, आप पर क्या होगा असर?

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(AryaTv Wepdesk:lucknow)reporter jaishree

नहीं मिलेगा तो वहाँ नौकरियां भी मिलनी बंद हो जाएंगी.

इसमें से 83 फ़ीसदी पैसा सरकारी बैंकों का था. पिछले साल के मुक़ाबले यह रकम 62 फ़ीसदी ज़्यादा है

आईसीआरए के आंकड़ों के मुताबिक, बैंकों ने जो बात मानी है वह एनपीए (नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स) से भी ज़्यादा खतरनाक है, इसे ‘राइट ऑफ’ कहा जाता है. इसका आम भाषा में मतलब हुआ कि बैंकों ने मान लिया है कि इस साल मार्च तक कर्ज़ के तौर पर दिया गया 1.44 लाख करोड़ रुपया अब वापस नहीं मिलने वाला यानी यह डूब चुका है. जबकि एनपीए में पैसे के वापस आने की उम्मीद बाक़ी रहती है.

इस नुकसान में 83 फ़ीसदी हिस्सा सरकारी बैंकों का है, इसका आम आदमी से सीधा का संबंध यह है कि जब कोई लोन लेने बैंक जाएगा तो उसे लोन मिलना लगभग ना के बराबर हो जाएगा, या फिर बहुत मुश्किल हो जाएगा. क्योंकि सरकारी बैंकों के पास अब क़र्ज़ देने के लिए पैसा ही नहीं बचा है.

कोई भी बैंक किस तरह लोन देता है यह समझना ज़रूरी है. मान लीजिए कि आपने बैंक में एक लाख रुपये जमा किए. लेकिन बैंक उस एक लाख रुपये को अपने पास नहीं रखता है वह उसे किसी और को कर्ज़ के तौर पर दे देता है.

 

आम लोगों को नए लोन मिलने पर इसका बुरा असर होगा, साथ ही लोक कल्याणकारी योजनाएं भी प्रभावित होंगी. आपको याद होगा कि सरकार ने इस बार के बजट में कहा था कि वह किसानों को आसान किस्तों पर कर्ज़ देना चाहती है. इस कर्ज़ के लिए पैसा कहां से आएगा जबकि सरकारी बैंक अब कर्ज़ देने में सक्षम ही नहीं है.

  1. दूसरा असर लघु और मध्यम उद्योगों पर होगा, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं. भारत की अर्थव्यवस्था में लगभग 45 फ़ीसदी हिस्सेदारी लघु उद्योगों की रही है. एक से पांच लाख रुपये की रकम के लोन पर ही ये उद्योग चलते हैं. लेकिन बैंकों की खराब हालत से उन्हें यह रकम मिलना भी मुश्किल हो जाएगी. लघु उद्योग भारत में ज़्यादा लोगों को नौकरियों पर रखते हैं. इन बैंकों से लघु उद्योगों को लोन