शहीद को कूरियर से शौर्य चक्र देने पर नाराजगी:गांव वाले बोले- सरकार को शहीद का सम्मान रखना चाहिए

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(www.arya-tv.com)  आगरा के बाह तहसील के कैंजरा गांव के रहने वाले शहीद गोपाल सिंह भदौरिया को कूरियर से शौर्य चक्र भेजने पर शहीद के परिजन और गांव वाले भी नाराज हैं। उनका कहना है कि देश के लिए जान न्योछावर करने वाले शहीद का अपमान किया गया है। शहीद ने देश के लिए जान दी है तो सरकार शौर्य चक्र को कूरियर से क्यों भेज रही है।

बाह के गांव कैंजरा के मूल निवासी गोपाल सिंह भदौरिया का परिवार वर्तमान में अहमदाबाद में रहता है। गोपाल के चाचा ने बताया कि उनके बडे़ भाई मुनीम सिंह अहमदाबाद के बापू नगर में रहते हैं। 2017 में गोपाल सिंह जम्मू कश्मीर के कुलगांव में तैनात थे। वहां पर आतंकवादियों ने हमला कर दिया था। आतंकियों से लोहा लेते हुए 12 फरवरी 2017 को शहीद हो गए थे। वर्ष 2017 में उनकी शहादत के बाद सरकार ने 2017 में उन्हें शौर्य पदक देने की घोषणा की थी।

शहीद के पिता मुनीम सिंह ने दैनिक भास्कर से फोन पर हुई बातचीत में बताया कि गोपाल सिंह के शौर्य के लिए सरकार ने उन्हें शौर्य पदक की घोषणा की थी। मगर, उस समय पारिवारिक विवाद के चलते उन्हें पदक नहीं दिया गया था। वर्ष 2021 में माता-पिता को शौर्य पदक देने का निर्णय दिया। इसके बाद उन्हें उम्मीद थी कि उनको पूरे प्रोटोकाल और सम्मान के साथ शौर्य चक्र प्रदान किया जाएगा। मगर, पांच सितंबर को उनके पास कूरियर से शौर्य चक्र भेज दिया गया।

उन्होंने इसे शहीद का अपमान मानते हुए वापस कर दिया है। उनका कहना है कि हमारी सरकार से केवल एक ही मांग है कि शौर्य चक्र का जो प्रोटोकॉल है, उसके अनुसार ही उन्हें शौर्य चक्र प्रदान किया जाए। इसको लेकर वो कोई विवाद नहीं चाहते हैं। वो सेना का सम्मान करते हैं।

बाह में बनाया हुआ है स्मारक
शहीद गोपाल सिंह का बाह के गांव कैंजरा में स्मारक बना हुआ है। उनके चचेरे भाई पवन सिंह ने बताया कि सरकार द्वारा शहीद के साथ अपमान किया गया है। उनका परिवार और पूरा गांव चाहता है कि सरकार शहीद को पूरा सम्मान दे। उन्होंने बताया कि गांव में गोपाल सिंह का स्मारक है। उनके जन्मदिवस, शहादत दिवस, गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर पूरा परिवार और गांव जुटता है। शहीद की प्रतिमा की आरती उतारी जाती हे। वहीं, अहमदाबाद में भी शहीद का स्मारक बना हुआ है। गोपाल सिंह भी 2015 में आने गांव आए थे। उनकी पांचवीं तक की शिक्षा गांव मे ही हुई थी। उनके पिता ने बताया कि आज भी उनका गांव से नाता है। उनकी खेती वहीं पर है। साल में कम से कम छह बार वो अपने गांव जाते हैं।