(www.arya-tv.com)अमेरिका यात्रा पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से मुलाकात करेंगे। बाइडेन ने 20 जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी। इसके बाद यह पहला मौका है जब दोनों नेता आमने-सामने बैठकर बात करेंगे। दोनों देशों के लिए साझा चुनौतियां हैं। कोविड का कहर पूरी तरह दोनों ही देशों में थमा नहीं है। तेजी से वैक्सीनेशन का चैलेंज है। और ताजा और साझा चैलेंज अफगानिस्तान से सामने आ रहा है। देखना होगा कि बाइडेन और मोदी इस मामले में किस मुकाम या सहमति तक पहुंचते हैं।
पहले शेड्यूल में नहीं थी मीटिंग
मोदी के अमेरिकी दौरे का जब कार्यक्रम बना था, तब शुरुआती तौर पर यह तय नहीं लग रहा था कि बाइडेन से उनकी बाइलेट्रल बातचीत होगी। कई दिनों बाद व्हाइट हाउस ने खुद इस पर मुहर लगाई और कहा- प्रेसिडेंट बाइडेन व्हाइट हाउस में प्रधानमंत्री मोदी की अगवानी करेंगे। बाद में बाइडेन के वीकली शेड्यूल में भी इसे शामिल किया गया और फिर भारत के विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रिंगला ने मुलाकात की पुष्टि कर दी।
भारत का महत्व
वैसे तो मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा की सालाना बैठक में हिस्सा लेने के लिए अमेरिका गए हैं, लेकिन अगर आप उनके शेड्यूल को गौर से देखें तो पाएंगे कि इस दौरे का कूटनीतिक महत्व काफी ज्यादा है। इसे तीन पॉइंट्स में समझ सकते हैं।
- क्वॉड में चार देश हैं। भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान। चारों देशों को अगर चुनौती और खतरा है तो सीधे तौर पर चीन से है। इसलिए, चारों ही देशों के राष्ट्राध्यक्ष वर्चुअल मीटिंग के बजाए फिजिकली वॉशिंगटन पहुंचे है।
- बाइडेन और कमला हैरिस दोनों ही क्वॉड देशों के नेताओं से मुलाकात करने वाले हैं। जाहिर है हिंद और प्रशांत महासागर में चीन जो दबदबा कायम करने की चालें चल रहा है, छोटे देशों को धमका रहा है, उसका सीधा मुकाबला किया जाएगा।
- मोदी इससे पहले दो अमेरिकी राष्ट्रपतियों बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रम्प के साथ काम कर चुके हैं। बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन ने अब तक भारत के प्रति वही रवैया अख्तियार किया है, जो रिपब्लिकन ट्रम्प का था। पिछले दिनों वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा था- भारत को लेकर रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स का रुख अब एक है।
चीन और पाकिस्तान की नजर
मोदी और बाइडेन की मुलाकात में क्या होता है और क्या बताया जाता है, इस पर सबसे ज्यादा नजरें तो चीन और पाकिस्तान की ही होंगी। अमेरिका चाहता है कि भारत भविष्य में भी अफगानिस्तान में बड़ा रोल प्ले करे। हालांकि, फिलहाल तो यह संभव नहीं है, क्योंकि इसके लिए पहले तालिबान हुकूमत तो कबूल करना होगा और अब तक दुनिया के किसी देश ने उसे मान्यता नहीं दी है।
चीन और पाकिस्तान की नजर अफगानिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों और खदानों पर है। एक खतरा ड्रग ट्रेड का है, जिसके लिए दुनिया फिक्रमंद है। अमेरिका तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान के तमाम फंड्स पर रोक लगा चुका है। हालांकि, दुनिया के रिएक्शन का डर इन दोनों देशों को भी है। यही वजह है कि चीन और पाकिस्तान बातें तो बहुत कर रहे हैं, लेकिन तालिबान को मान्यता देने तैयार नहीं हैं।