(www.arya-tv.com) इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण आदेश दिया। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि धर्म या जाति के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपना नाम चुनने या बदलने का मौलिक अधिकार है। यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 (1) ए. अनुच्छेद 21 व अनुच्छेद 14 के अंतर्गत सभी नागरिकों को समान रूप से प्राप्त है। इसे प्रतिबंधित करने का नियम मनमाना और संविधान की मूल मंशा के खिलाफ है।
हाईकोर्ट ने माध्यमिक शिक्षा परिषद के सचिव के नाम न बदलने के आदेश को रद्द करते हुए परिवर्तित नाम से हाई स्कूल और इंटरमीडिएट के प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने भारत सरकार के गृह सचिव व प्रदेश के मुख्य सचिव को भी इस संबंध में दूरगामी नीति तैयार करने का आदेश दिया है।
संविधान के अनुच्छेद 25 के विपरीत है इंटरमीडिएट रेग्यूलेशन एक्ट 40
जस्टिस अजय भनोट ने एमडी समीर राव की याचिका को स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि माध्यमिक शिक्षा परिषद का इंटरमीडिएट रेग्यूलेशन 40 संविधान के अनुच्छेद-25 के विस्थत है। यह नाम बदलने की समय सीमा व शर्तें थोपती है। कोर्ट ने भारत सरकार के गृह सचिव व प्रदेश के मुख्य सचिव इस मामले में विस्तृत और दूरगामी नीति तैयार करने का आदेश दिया है। माध्यमिक शिक्षा परिषद ने 24 दिसंबर 2020 को एक आदेश जारी किया था। इस आदेश में याची के हाई स्कूल व इंटरमीडिएट प्रमाण पत्र में नाम परिवर्तित करने की मांग खारिज कर दी थी। कोर्ट ने ची का नाम शहनवाज के स्थान पर एमडी समीर राव करके नया प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही साथ कोर्ट ने याची को पुराने नाम के सभी दस्तावेज संबंधित विभागों में जमा करने का निर्देश दिया है, ताकि पुराने दस्तावेजों का गलत इस्तेमाल न हो सके। कोर्ट ने भारत सरकार के गृह सि प्रदेश के मुख्य सचिव की इस संबंध में लीगल फ्रेमवर्क तैयार करने का भी आदेश दिया है।
धर्म परिवर्तन के बाद नाम बदलने की दी थी अर्जी
याची ने अपना धर्म परिवर्तन करके नाम बदलने की बोर्ड को 2020 में अर्जी दी थी। बोर्ड सचिव ने नियमों व समय सीमा का हवाला देते हुए मांग खारिज कर दी थी। इसके बाद निराश होकर याची ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। बोर्ड का कहना था कि नाम बदलने की मियाद तय है। कतिपय प्रतिबंध है। याची ने नाम बदलने की अर्जी देने में काफी देरी की है। कोर्ट ने इसे सही नहीं माना और कहा यदि कोई धर्म या जाति बदलता है तो धार्मिक परंपराओं मान्यताओं के लिए उसका नाम बदलना जरूरी हो जाता है। उसे ऐसा करने से नहीं रोका जा सकता। यह मनमाना है। किसी को भी अपनी मर्जी से नाम रखने का मूल अधिकार है।