छोटे दलों का गठबंधन नहीं आया काम, मोदी-योगी के वादों पर लोगों ने जताया भरोसा

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(www.arya-tv.com)उत्तर प्रदेश की विधानसभा के लिए इस बार हुई शह और मात की सियासी लड़ाई दिलचस्प रही। अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास और काशी में विश्वनाथ धाम के लोकार्पण जैसे ऐतिहासिक घटनाक्रमों के बीच भाजपा राजनीतिक दृष्टिकोण से देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य में अपनी सरकार बनाने में दोबारा सफल रही।

कमजोर लॉ एंड ऑर्डर, तुष्टिकरण, परिवारवाद, भ्रष्टाचार और जातिवाद को बढ़ावा देने के साथ ही चाचा-पिता को तरजीह न देने जैसे तमाम आरोपों के बीच अखिलेश यादव को अब 5 साल तक फिर इंतजार करना होगा।

आइए, हम बताते हैं कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव के सपा गठबंधन की हार के अहम कारण क्या रहे…

जाति आधारित गठबंधन काम नहीं आया
2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के तब के अध्यक्ष अमित शाह ने जाति और क्षेत्र विशेष में प्रभुत्व रखने वाले छोटे राजनीतिक दलों से गठबंधन किया था। उसी फाॅर्मूले पर काम करते हुए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पूर्वांचल में ओम प्रकाश राजभर, कृष्णा पटेल, स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान जैसे नेताओं को अपने पाले में खींचने में सफल रहे थे।

इसके साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी के साथ उन्होंने दोस्ती की थी। यह सभी नेता अवसर देखकर पार्टियां बदलने में माहिर रहे हैं। इसलिए जनता ने इस बार इन्हें गंभीरता से नहीं लिया। इस तरह से अखिलेश यादव पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम मतदाताओं के सहयोग से चुनाव में जीत दर्ज करने में सफल नहीं रहे।

पुरानी पेंशन बहाली एक राजनीतिक मुद्दा
अखिलेश यादव ने सरकार बनने पर पुरानी पेंशन योजना बहाल करने की घोषणा की थी। कहा था कि जरूरत पड़ी तो इसके लिए कार्पस फंड बनाया जाएगा। सरकारी कर्मी जानते हैं कि पुरानी पेंशन योजना उत्तर प्रदेश में अब एक राजनीतिक मुद्दा बन कर रह गई है। कोई भी दल इसे प्रदेश में लागू कर पाने की स्थिति में नहीं है। इसलिए सरकारी कर्मचारियों ने पुरानी पेंशन बहाली की घोषणा को बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दी।

पीएम मोदी-सीएम योगी पर भरोसा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर उत्तर प्रदेश की जनता का भरोसा बरकरार है। लॉ एंड ऑर्डर से लेकर विकास कार्यों तक के लिए जनता ने डबल इंजन की सरकार को ही तरजीह दी। जनता ने यह निर्णय लिया कि अगर 5 साल और भाजपा को मौका मिलेगा तो शायद और अच्छे काम प्रदेश में होंगे।

किसान सहित अन्य वर्ग प्रभावित नहीं हुए
सपा और भाजपा के घोषणा पत्र में किसानों और युवाओं के साथ ही महिलाओं के लिए की गई कई घोषणाएं लगभग एक जैसी थीं। इसलिए जनता ने सोचा कि जब वही बातें भाजपा भी कह रही है तो 5 साल से बेहतर तालमेल के साथ चली पूर्ण बहुमत की सरकार पर एक बार फिर से दांव लगाकर देखा जाए।

भाजपा का आक्रामक चुनावी कैंपेन
भाजपा चुनाव कैंपेन के दौरान परिवारवाद, जातिवाद, भ्रष्टाचार, आतंकवाद जैसे मुद्दों को लेकर लगातार हमलावर रही। लॉ एंड ऑर्डर को लेकर भाजपा नेता अखिलेश यादव को लगातार घेरते रहे। प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और मुख्यमंत्री सहित भाजपा नेताओं के चुनाव प्रचार की आक्रामक शैली से जनता भी प्रभावित हुई। जनता को प्रतीत हुआ कि अखिलेश की सरकार आने पर परिवारवाद, जातिवाद और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलने के साथ ही लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति भी ठीक नहीं रहेगी। इसलिए मौजूदा भाजपा सरकार ही एक अच्छा विकल्प है।

15 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दिया
कोरोना काल में जब लोग घर बैठे थे और उनका कामकाज छूट गया था तो उत्तर प्रदेश में 15 करोड़ से ज्यादा राशन कार्ड धारकों को केंद्र और प्रदेश सरकार की ओर से मुफ्त राशन वितरित किया गया। इसके साथ ही नमक, खाद्य तेल और दाल भी मुफ्त में वितरित की गई। यह सिलसिला इस मार्च महीने में भी जारी है। जानकारों का कहना है कि कम आय वर्ग वाले परिवारों को प्रति माह मिलने वाले 10 किलो मुफ्त राशन ने भाजपा के पक्ष में एक बड़ा माहौल बनाया। इसकी काट विपक्षी खोज नहीं पाए और भाजपा जीत गई।