आंदोलन में जोश भरने की जद्दोजहद; कुंडली में जुट रहे किसानों के काफिले, लंगर सेवा बंद

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(www.arya-tv.com)कड़ाके की ठंड, आंधी-बरसात, गर्मी और कोरोना दौर झेलकर किसान आंदोलन 7 माह के पड़ाव में पहुंच गया है। समय के साथ आंदोलन का स्वरूप भी बदला है। कुंडली से लेकर केजीपी तक 10 किलोमीटर का दायरा आंदोलन स्थल है। संयुक्त किसान मोर्चा यहीं बैठक कर प्रोग्राम तय करता है।

अब आंदोलन में फिर जोश भरने के लिए किसान नेता हरियाणा-पंजाब से गाड़ियों, बाइक व अन्य वाहनों में काफिले लेकर आ रहे हैं। किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी करनाल व अम्बाला से दो काफिले ला चुके हैं। वहीं, दहिया खाप के गांवों के किसान नेता अभिमन्यु कुहाड़ के नेतृत्व में काफिला सिंघु बॉर्डर पहुंचा। अब आंदोलन में भीड़ जुटाने की जद्दोजहद हो रही है।

कुंडली में अब पहले जैसी लंगर सेवा नहीं है। सबकी अपनी रसोई है। हर गांव और खाप अनुसार झोपड़ी, पंडाल व रसोई बनी है। टेंट, झोपड़ी व विशेष ट्रालियों में एसी, कूलर, पंखों की सुविधा है। सबने अपना राशन रखा हुआ है। सुबह-शाम अपनी-अपनी रसोई में खाना बनता है।

साप्ताहिक रोटेशन पर गांव व खाप अनुसार किसान पहुंच रहे हैं। आटा पिसाई के लिए चक्की लगा दी है। खापों ने गांवों के अनुसार जिम्मेदारियां बांटी हैं। कहीं युवा व किसान घर-घर से दूध व लस्सी जुटाकर लेकर जाते हैं तो कहीं खेतों से सब्जियां या फिर ईंधन पहुंचाया जा रहा है। इसी तालमेल से आंदोलन लगातार जारी है।

मंच हर दिन चलता है, नेता कभी-कभी आते हैं

कुंडली में आंदोलन का मुख्य मंच है। यहां 26 नवंबर को जब किसान पहुंचे तो ट्रैक्टर-ट्राॅली खड़ी कर माइक से संबंधोन के साथ शुरू हुआ था। आगे दिल्ली पुलिस की तरफ से कंटीली फैंसिंग, पक्की सीमेंट बैरिगेड्स की कई लेयर से हाईवे बंद है। पिछले दिनों आंधी ने पूरा मंच उखाड़ दिया था। अब पक्की टीन शेड से बनाया है। मोर्चा के नेता मीटिंग के बाद मंच से घोषणा करते हैं। मंच पर किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल, गुरनाम सिंह चढ़ूनी, दर्शनपाल आदि नेता संबोधन करते हैं। हर दिन मंच तक महिलाएं पहुंच रही हैं।

सरकार पर गुस्सा, स्वभाव में चिड़चिड़ापन

मास्क नहीं लगाते, बोले-अलग ठिकाने हैं, कोराेना नहीं होता

कोरोना के दौर में आंदोलन स्थल पर शायद ही कोई किसान मास्क लगाए मिले। अमृतसर के किसान गुरचरण, मोहाली के हरभजन का कहना है कि कोरोना यहां नहीं है। सब अपने हिसाब से अपने-अपने ठिकानों में रह रहे हैं। आंदोलन में भीड़ कम न हो, इसके लिए साप्ताहिक रोटेशन बनाया है। एक सप्ताह जो किसान रहते हैं, अगले सप्ताह दूसरे आ जाते हैं। बहुत से बुजुर्ग और अन्य ऐसे किसान भी हैं, जो लगातार यही हैं।

जमीन कम, पशुपालन से आय थी, 2 लाख का नुकसान हुआ

दहिया खाप के गांवों में शामिल गढ़ी सिसाना के सतनारायण स्वभाव से चिड़चिड़े हो चुक हैं, क्योंकि 4 महीने से अांदोलन में हैं। सरकार को कोसते हुए बोले- इनसे भरोसा उठ गया है, लेकिन पीछे नहीं हटेंगे। एक से डेढ़ एकड़ जमीन है। पशुपालन करता था। आंदाेलन में रहने से घर पर भैंस और गाय बीमार हुई। दूध से चली गई। दो लाख का नुकसान हो चुका। घर वाले बुलाते हैं, लेकिन अब आंदोलन खत्म होने पर ही जाएंगे।

4 हजार टेंट में 15 हजार किसान हैं

किसान एकजुटता से आंदोलन को बढ़ा रहे थे कि 26 जनवरी की हिंसा के बाद हौसला टूट गया। लक्खा सिधाना व दीप सिद्धू पर मुकदमा दर्ज होने के बाद यहां से युवाओं ने पलायन शुरू कर दिया था। राकेश टिकैत के आंसुओं ने फिर से आंदोलन में जान फूंकी और हरियाणा की तमाम खाप पंचायतों ने स्थाई डेरा डाल लिया। आंदोलन पंजाब से आगे बढ़कर हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फैल गया। सिंघु बॉर्डर पर करीब 4 हजार टेंटों में करीब 15 हजार किसान हैं।

एनएच-44 जो 24 घंटे वाहनों के आवागमन का गवाह था, वह छह महीने से केएमपी चौक से आगे कुंडली तक बंद है। आंदोलन के अंदर से लोकल गाड़ियों के लिए रास्ता है। गांवों के रास्तों से वाहन निकल रहे हैं। 10 किलोमीटर के दायरे में कार शोरूम, पेट्रोल पंप, 3 बड़े मॉल व शोरूम का धंधा न के बराबर है। वहीं, कंडली की करीब 3200 इंडस्ट्री पर आंदोलन का असर जारी है। किराया दोगुना हो चुका है।

4 हजार टेंट में 15 हजार किसान हैं

किसान एकजुटता से आंदोलन को बढ़ा रहे थे कि 26 जनवरी की हिंसा के बाद हौसला टूट गया। लक्खा सिधाना व दीप सिद्धू पर मुकदमा दर्ज होने के बाद यहां से युवाओं ने पलायन शुरू कर दिया था। राकेश टिकैत के आंसुओं ने फिर से आंदोलन में जान फूंकी और हरियाणा की तमाम खाप पंचायतों ने स्थाई डेरा डाल लिया। आंदोलन पंजाब से आगे बढ़कर हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फैल गया। सिंघु बॉर्डर पर करीब 4 हजार टेंटों में करीब 15 हजार किसान हैं।