(AryaTv : Lucknow) Jaishree
जब पहली बार एक महिला पत्रकार ने एक पूर्व संपादक और मौजूदा राजनेता के ख़िलाफ़ अपना मुंह खोला तब से मेरे दिमाग़ में यह सवाल घूम रहा है कि “आख़िर किसी अख़बार के दफ़्तर में ऐसा कैसे हो सकता है?”
इस सवाल का जवाब मुझे मेरी महिला दोस्तों ने ही दिया। वो जवाब से ज़्यादा शायद मेरे लिए एक चेतावनी और सीख थी। उन्होंने कहा कि इस भोलेपन को छोड़ो और सच्चाई को समझो।
उन्होंने मुझ पर एक ऐसी छाप छोड़ी जिसका मतलब था कि इन मामलों पर मेरी हैरानी एक तरह से दिखावा है या फिर मैं आरोप लगाने वाली इन युवा महिलाओं पर विश्वास नहीं कर रही हूं। हालांकि मैं इन दोनों ही बातों से इत्तेफाक नहीं रखती।
दरअसल, मेरी इस हैरानी की अपनी कुछ वजहें हैं। मैं आख़िर इस बात पर इतनी आसानी से विश्वास क्यों नहीं कर पा रही हूं कि कोई संपादक अपने पद और ताक़त के दम पर किसी महिला का उत्पीड़न कर कैसे सकता है
कमज़ोर शिकार ना बनें
मेरी लड़ाई यहां से शुरू हो चुकी थी। हालांकि मुझे लगा कि यह इतना बुरा भी नहीं है, क्योंकि दुश्मन तो बहुत ही कमज़ोर है। इनके लड़के तो मेरे चूड़ीदार कुर्ते से ही घायल हो रहे हैं।
मैने बस सहमति में सिर हिलाया और अपनी सीट पर बैठ गई। उसके बाद एक दोस्ताना हाथ ने मेरी ओर चाय का कप बढ़ा दिया।
कई दिन गुज़रने के साथ ही वो सख़्त दिखने वाले न्यूज़ एडिटर मेरे सबसे अच्छे गुरु बन गए। उनके वो लड़के हमेशा मेरी मदद के लिए तैयार रहते।
जिस दिन मेरी पहली बड़ी बाइलाइन ख़बर लगी उस दिन उन्ही न्यूज़ एडिटर ने ख़ुद लेमन-टी का ऑर्डर दिया। उन दिनों में लेमन-टी दूध वाली चाय के मुक़ाबले ज़्यादा महंगी होती थी।
मुझे ख़ुद को साबित करने के लिए लड़ना पड़ता था, मुझे बताना पड़ता था कि मैं बिना किसी की मदद लिए बाहर से होने वाले कामों को भी बेहतरीन तरीक़े से कर सकती हूं।
शिकारी हमेशा एक आसान शिकार की तलाश में रहता है
उस दौर के बाद से जितनी महिला पत्रकार सामने आई हैं, उनके व्यक्तिगत पहलुओं से हमारा कोई सरोकार नहीं है।
मैंने तीन ऐसे संपादकों के साथ काम किया है जो हमेशा महिलाओं के बीच होने वाली मसालेदार बातचीतों का विषय हुआ करते थे। लेकिन तीनों में से किसी ने मेरे साथ कभी कुछ ग़लत नहीं किया।
मेरे पास इसकी वजह है। शिकारी हमेशा एक आसान शिकार की तलाश में रहता है। उस दौर तक मेरी पीढ़ी की पत्रकारों ने अपने काम के जरिए एक ख़ास जगह बना ली थी और वरिष्ठता के क्रम में ऊपर पहुंच गई थीं।
ऐसे में हमारे साथ किसी तरह की कोशिश उनके लिए ख़तरनाक साबित हो सकती थी।
हम पलटवार करने में सक्षम थे और हम उन पदों पर मौजूद थे जिससे हमारी आवाज़ सुनी जाती।
हम अपने परिवार से दूर रहने वाली सेलिब्रिटी पत्रकारों के आभामंडल में क़ैद रहने वाली युवा इंटर्न की तरह आसान शिकार नहीं हुआ करते थे।
ऐसे में शिकारी पुरुषों ने युवा इंटर्नों की इस कमज़ोरी का फ़ायदा उठाया जो कि हमारी पीढ़ी की पत्रकारों में मौजूद नहीं थी।
लेकिन मैं अब मीडिया में यौन शोषण करने वाले पुरुषों के नाम लेने वाली बहादुर लड़कियों को खुला समर्थन देकर अपनी इस ग़लती को सुधारने की उम्मीद करती हूं।