तेग बहादुर ने अपने विचारो से सिख समुदाय को किया मजबूत

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मुरादाबाद(www.arya-tv.com)। पीतल की आभा विश्व भर में ब‍िखेरने वाला मुरादाबाद रामगंगा नदी के किनारे पर स्थित है। पुराने शहर में रामगंगा नदी के दाहिने तट पर आस्था का संगम भी झलकता है। मंदिर और गुरुद्वारा एक ही परिसर में है। लालबाग में प्राचीन काली मंदिर का भव्य भवन के साथ अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं। वहीं गुरु तेग बहादुर के नाम पर गुरुद्वारा भी इसी परिसर में है।

इतिहास में जाएं तो ईसा की 17वीं शताब्दी में मुरादाबाद मुगल सत्ता के अधीन सरकार से अलग अपनी पहचान बनाते हुए केंद्र का रूप ले रहा था। सिख धर्म के संगठन के लिए गुरु तेग बहादुर मुरादाबाद आए थे। तब वह गुरु नानक के यात्रा स्थानों की दृष्टि से भारत यात्रा के क्रम में असम से लौटते समय पटना बनारस अयोध्या लखनऊ के रास्ते से शाहजहांपुर बरेली होते हुए मुरादाबाद पहुंचे थे। यह यात्रा ईसवी सन् 1670 में हुई थी।

गुरु नानक देव जी के आगमन स्थल रतनपुर कलां के पास नानकबाड़ी गुरुद्वारा में सेवा कार्य करना इस यात्रा का मुख्य उदेश्य था। यह नानकबाड़ी दिल्ली रोड पर गागन नदी के पास किनारे है। भारत विभाजन के बाद सारी संपत्ति छोड़कर लाहौर समेत कई शहरों से भारत आए थे। सिख समुदाय के सदस्यों ने जब आर्थिक रूप से मजबूती पा ली तब एक बार गुरु तेग बहादुर मुरादाबाद आए थे। सिख समाज ने इसे यादगार बनाने के ल‍िए गुरु तेग बहादुर साहब के मुरादाबाद आगमन के समय के आवास स्थान को गुरु की स्मृति में भव्य गुरुद्वारे का रूप दे द‍िया।

वर्तमान में लालबाग में छोटी काली मंदिर के उत्तर में काली मंदिर प्रशासन के सहयोग से प्राप्त भूमि पर तेग बहादुर के भव्य गुरुद्वारे की स्थापना हुई। इस भवन में भक्तों द्वारा समय.समय पर धार्मिक कार्यक्रमों एवं लंगर का आयोजन किया जाता है। इसकी स्थापना स्वाधीनता से पहले 1940 के निकट की गई थी।

यह ऐतिहासिक स्थल आज भी एकता का स्मारक बना हुआ है। यह गुरु तेग बहादुर की मुरादाबाद यात्रा के साथ सिख समुदाय के गौरव का केंद्र बना हुआ है। महानगर के अन्य गुरुद्वारों में इस भवन का स्वरूप देखते ही बनता है। इस भवन को नया स्वरूप 1992 में दिया गया था। वर्तमान में देवेंद्र सिंह गुरु तेग बहादुर गुरुद्वारे के प्रमुख सेवादार हैं।