स्वामी विवेकानंद जी के विचार आज भी प्रासंगिक : महापौर

Lucknow
  • स्वामी विवेकानंद जी के विचार आज भी प्रासंगिक:महापौर

(www.arya-tv.com) एकल अभियान की लखनऊ इकाई द्वारा राष्ट्रीय युवा दिवस पर स्वामी विवेकानंद जी के सपनों का भारत विषय पर आयोजित व्याख्यान माला में विशिष्ट अतिथि के रूप में  महापौर श्रीमती संयुक्ता भाटिया जी ने अपने विचार व्यक्त किये।

स्वामी विवेकानंद जी के सपनों के भारत पर अपने विचार रखते हुए महापौर श्रीमती संयुक्ता भाटिया जी ने कहा कि स्वामी जी का उदय ऐसे समय में हुआ जिस समय भारत के सामाजिक पुनरुत्थान के लिए राजाराम मोहन राय और शिक्षा के विकास के लिए ईश्वरचंद विद्यासागर जैसे अनगिनत मनीषी भारतीय समाज में नवचेतना का संचार कर रहे थे। स्वामी जी अपने विचारों के जरिए स्वधर्म और स्वदेश के लिए अप्रतिम प्रेम और स्वाभिमान का उर्जा प्रवाहित कर जाग्रत-शक्ति का संचार किया जिससे भारतीय जन के मन में अपनी ज्ञान, परंपरा, संस्कृति और विरासत का गर्वपूर्ण बोध हुआ। स्वामी जी की दृष्टि में समाज की बुनियादी इकाई मनुष्य था और उसके उत्थान के बिना वे देश व समाज के उत्थान को अधूरा मानते थे। उनका दृष्टिकोण था कि राष्ट्र का वास्तविक पुनरुद्धार मनुष्य-निर्माण से प्रारंभ होना चाहिए। मनुष्य में शक्ति का संचार होना चाहिए जिससे कि वह मानवीय दुर्बलताओं पर विजय प्राप्त करने में और प्रेम, आत्मसंयम, त्याग, सेवा एवं चरित्र के अपने सद्गुणों के जरिए उठ खड़ा होने का सामथ्र्य जुटा सके। वे सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा को एक बड़ा राष्ट्रीय पाप मानते थे। 1893 में शिकागो में धर्म सम्मेलन के दौरान उन्होंने स्पष्ट कहा कि ‘मेरी यह धारणा वेदान्त के इस सत्य पर आधारित है कि विश्व की आत्मा एक और सर्वव्यापी है। पहले रोटी और फिर धर्म। लाखों लोग भूखों मर रहे हैं और हम उनके मस्तिष्क में धर्म ठूंस रहे हैं।

मैं ऐसे धर्म और ईश्वर में विश्वास नहीं करता, जो अनाथों के मुंह में एक रोटी का टुकड़ा भी नहीं रख सकता।’ उन्होंने सम्मेलन में उपस्थित अमेरिका और यूरोप के धर्म विचारकों व प्रचारकों को झकझोरते हुए कहा कि ‘भारत की पहली आवश्यकता धर्म नहीं है। वहां इस गिरी हुई हालत में भी धर्म मौजूद हैं। भारत की सच्ची बीमारी भूख है। अगर आप भारत के हितैशी हैं तो उसके लिए धर्म प्रचारक नहीं अन्न भेजिए।’ स्वामी जी गरीबी को सारे अनर्थों की जड़ मानते थे। इसलिए उन्होंने दुनिया को सामाजिक-आर्थिक न्याय और समता-समरसता पर आधारित समाज गढ़ने का संदेश दिया। वे ईश्वर-भक्ति और धर्म-साधना से भी बड़ा काम गरीबों की गरीबी दूर करने को मानते थे। एक पत्र में उन्होंने ने लिखा है कि ‘ईश्वर को कहां ढुंढ़ने चले हो। ये सब गरीब, दुखी और दुर्बल मनुष्य क्या ईश्वर नहीं है? इन्हीं की पूजा पहले क्यों नहीं करते ?’ उन्होंने स्पष्ट घोषणा की थी कि ‘गरीब मेरे मित्र हैं। मैं गरीबों से प्रीती करता हूं। मैं दरिद्रता को आदरपूर्वक अपनाता हूं। गरीबों का उपकार करना ही दया है।’ वे इस बात पर बल देते थे कि हमें भारत को उठाना होगा, गरीबों को भोजन देना होगा और शिक्षा का विस्तार करना होगा।

  • कार्यक्रम का समापन भारत माता जी की आरती के साथ संपन्न हुआ।

इस अवसर पर महापौर संग मुख्य वक्ता के रूप में  स्वान्त रंजन जी(अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ),मुख्य अतिथि के रूप में  मदन लाल जिंदल (प्रमुख उद्योगपति,उ०प्र०), उमाशंकर हलवासिया (अध्यक्ष, भारत लोक शिक्षा परिषद), भूपेंद्र कुमार अग्रवाल (संभाग अध्यक्ष, एकल अभियान, लखनऊ), दिनेश सिंह राणा (सचिव,एकल ग्राम संगठन, लखनऊ) सहित अन्य लोग उपस्थित रहे।