अस्पतालों में होने वाली मौतों में से सबसे बड़ा कारण सेप्सिस, दुनियाभर में हर 5 में से एक की मौत सेप्सिस से

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अस्पतालों में होने वाली मौतों में से सबसे अधिक मौतें सेप्सिस बीमारी के कारण होती है। वहीं, आंकड़े बताते हैं कि दुनियाभर में हर पांच में से एक की मौत सेप्सिस के कारण होती है। वर्तमान में यह बीमारी एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है, जो सालाना करोडों लोगों को प्रभावित करती है।

सेप्सिस प्रबंधन में शीघ्र पहचान और समय पर हस्तक्षेप करना अति आवश्यक है। अनावश्यक रूप से एंटीबायोटिक का सेवन न करने से इस बीमारी से बचा जा सकता है। यह जानकारी किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन के विभागाध्यक्ष प्रो. वेद प्रकाश ने विश्व सेप्सिस दिवस की पूर्व संध्या पर शुक्रवार को साझा की।

उन्होंने बताया कि शरीर के किसी भी हिस्से में दर्द होने पर लोग एंटीबॉयोटिक व दर्द निवारक दवाएं ले लेते हैं। कई बार तो समस्या बढ़ने पर डॉक्टर ही उन्हें यह दवाएं लिख देते हैं। यह मरीज के स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं। उन्होंने कहा कि प्रशिक्षित डॉक्टर के परामर्श पर ही दवाएं लें और डॉक्टर जितने दिन की दवा लिखे उतने दिन ही खाएं। खुद से दवा लेकर न खाएं। बीमारी के दौरान दवा का एक निर्धारित कोर्स होता है कम दिन दवाएं लेने पर बीमारी के वायरस या बैक्टीरिया शरीर में रजिस्टेंस विकसित कर लेते हैं।

जरूरत पर काम नहीं आएगी एंटीबायोटिक

प्रो.राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि सेप्सिस सहित कई अन्य गंभीर जीवाणु संक्रमण के इलाज के लिए एंटीबायोटिक्स आवश्यक हैं, लेकिन इनका उपयोग अक्सर खांसी, कान दर्द और गले में खराश जैसी बीमारियों के इलाज के लिए किया जा रहा है जो अपने आप ठीक हो सकती हैं। एंटीबायोटिक्स लेने से शरीर के अंदर रहने वाले हानिकारक बैक्टीरिया प्रतिरोधी बनने के लिए प्रोत्साहित होते हैं। इसका मतलब है कि एंटीबायोटिक्स तब काम नहीं कर सकते जब आपको वास्तव में उनकी आवश्यकता हो।