कभी बंदरगाह था यूपी का यह घाट, यहां से पानी के जहाजों से यूरोप तक जाता था सामान

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(www.arya-tv.com) क्रांतिकारियों की सरजमी शाहजहांपुर को कभी व्यापार के लिए भी जाना जाता था. शाहजहांपुर की बनी हुई चीजों का निर्यात कर उन्हें यूरोप तक भेजा जाता था. यह पूरा निर्यात नदियों के जरिए ही किया जाता था. ब्रिटिश गजेटियर शाहजहांपुर के अजीजगंज और बिसरात घाट इलाके को एक बंदरगाह के रूप में बताता है.

इतिहासकार डॉक्टर विकास खुराना ने बताया कि बिसरात घाट का नाम विश्राम घाट से ही उत्पन्न हुआ है. वर्ष 1872 से पहले जब रेल से ट्रांसपोर्ट नहीं होता था. तब शाहजहांपुर में एक बड़ा समुद्री बंदरगाह था. जहां से रोजाना भारी मात्रा में चीजों का निर्यात किया जाता था. डॉ विकास खुराना ने मुंशी मोहम्मद सफाकत अली खान की पुस्तक मजाहरे मजहरिया का हवाला देते हुए बताया कि इस पुस्तक में लिखा है कि दरिया-ए-खन्नौत का जिस कदर हिस्सा गाड़ीपुरा से मुलहिक है. वह शाहजहांपुर का गोल्डन हार्ब (इंग्लैंड का बंदरगाह) से कम नहीं.

पुस्तक में यह भी लिखा है कि रोजाना तिजारती किश्तियों की आमदो रफत रहती थी. पुलपुख्ता से मिश्रीपुर के करीब तक दरया का तूल तकरीबन दो मील है. मगर इसे कभी खाली नहीं देखा. अगर आज पचास किश्तियां रवाना हुई तो कल सौ और वहां आ जाती थी. पुस्तक में यह भी जिक्र किया गया है कि अमूमन कानपुर और फर्रुखाबाद के लोग यहां माल खरीदने के लिए इसी रास्ते से केरूगंज और दीगर बाजारों में आते थे. मुंशी मोहम्मद शफकत अली खान ने अपनी पुस्तक में यह भी लिखा है कि जो शय (सामान) गाड़ीपुरा में दस्तयाब ना हो तो कहीं मिलती नहीं थी.

बिसरात घाट से यूरोप तक होता था निर्यात

इतिहासकार कहते हैं कि शहर की केरू फैक्ट्री में तैयार हुई क्रिस्टल चीनी, स्पिरिट, चाकू, चिमटा और कपड़े का निर्यात शाहजहांपुर से बंदरगाह से नदियों के रास्ते विदेश तक किया जाता था. इतना ही नहीं शाहजहांपुर की जरी जरदोजी, कालीन और केरू फैक्ट्री से तैयार हुई रम यूरोप तक सप्लाई की जाती थी और यही यह रम ब्रिटिश इंडियन आर्मी को भी सप्लाई की जाती थी. सन 1872 में रेल आ जाने के बाद बंदरगाह से होने वाला निर्यात रुक गया. फिर शाहजहांपुर से तैयार होने वाला माल रेल के रास्ते से जाने लगा.

जिला मजिस्ट्रेट ने कराया घाटों का कायाकल्प

वर्ष 1901 में जिला मजिस्ट्रेट मुनाकी ने यहां पर पक्के घाटों का निर्माण करा दिया. वहीं अब बिसरात घाट पर देश चौथे सबसे ऊंचे और उत्तरी भारत के सबसे ऊंचे हनुमान जी यहां विराजमान हैं. जिनके दर्शन करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं.