डॉ.अजय शुक्ला पत्रकार
लखनऊ से गुर्दे रोगियों के लिए विशेष जानकारी पीजीआई लखनऊ के वरिष्ठ डाक्टरों डॉ. अमित गुप्ता और एचओडी डॉ. नारायण प्रसाद से आर्य टीवी से बातचीत पर आधारित है यह रिर्पोट सिर्फ गुर्दे रोगियों को इस कोरोना या कोविड19 संकट के समय में जागरूकता के लिए प्रसारित किया जा रहा है जिससे अधिक से अधिक लोग घर पर अपनी सुरक्षा कर सकें।
- डायलिसिस रोगी दुविधा में हैं: विशेषज्ञ अस्पतालों में भीड़ नहीं बढ़ाने की सलाह दे रहे हैं
- अस्पतालों में भीड़ बढ़ने से संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है, विशेषरूप से गुर्दे के रोगियों में, क्योंकि उनके लिए खतरा अधिक होता है
- डॉ. अमित गुप्ता और एचओडी डॉ नारायण प्रसाद की गुर्दे रोगियों को सलाह
(www.arya-tv.com)कोविड-19 के तेजी से फैलने के लिए लोगों के बड़े समूहों में इकट्ठा होने को जिमेमेदार ठहराया जा रहा है, क्योंकि इससे संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है। यही कारण है कि सामाजिक रूप से दूरी बनाए रखना और अभी हाल ही में शारीरिक रूप से दूरी बनाए सबसे प्रभावी निवारक उपायों के रूप में उभरकर आएं हैं।
हालांकि, गुर्दे के रोगियों के लिए जिनका जीवन अस्पताल-आधारित हेमोडायलिसिस पर निर्भर है, यह एक बड़ी चुनौती है। वर्तमान में डायलिसिस के मरीज दो-धारी तलवार पर खड़े हैं – एक ओर, उन्हें डायलिसिस के लिए नियमित रूप से अस्पताल जाने की जरूरत होती है, दूसरी ओर, अस्पतालों में होने वाली भारी भीड़ के कारण उनके लिए कोविड-19 के संक्रमण का खतरा अधिक होता है। यह एक कठिन मोड़ है, जिसने उन्हें दुविधा में लाकर खड़ा कर दिया है।
लखनऊ स्थित, एसजीपीजीआई के डॉ. अमित गुप्ता कहते हैं, “गुर्दे के अधिकांश मरीज डायलिसिस के लिए हेमोडायलिसिस का विकल्प चुनते हैं, इसलिए उनके लिए यह जरूरी है कि वे सप्ताह में 2-3 बार अस्पताल के भीड़-भाड़ वाले आपातकालीन विभाग में जाएं, जहां उनके संक्रमण की चपेट में आने का खतरा अधिक होता है। इसके अतिरिक्त, मौजूदा देशव्यापी लॉकडाउन की स्थिति में, अस्पताल तक जाना बहुत मुश्किल है। इस समय डायलिसिस के रोगियों के लिए एक उपाय बेहद प्रभावी हो सकता है, वह है पेरिटोनियल डायलिसिस (पीडी) जो न केवल उन्हें घरों पर ही सुविधाजन रूप से यह थैरेपी लेने में मदद करेगा बल्कि भीड़ से भी दूर रखेगा और संक्रमित होने के खतरे को भी काफी कम कर देगा। पेरिटोनियल डायलिसिस प्रारंभिक प्रक्रिया के बाद घर पर ही ली जाने वाली एक स्व-प्रशासित थेरेपी है और इस नाजुक समय में, गुर्दे की बीमारियों से जूझ रहे उन मरीजों के लिए सबसे बेहतर है, जिनकी बीमारी अंतिम चरण में है।”
रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) की रिपोर्ट के अनुसार, वृद्धया किसी भी उम्र के लोगजो पहले से ही किसी स्वास्थ्य समस्या जैसे अत्यधिक मोटापे, अनियंत्रित मधुमेह, रीनल फेलियर या लिवर डिसीज से जूझ रहे हैं, कोविड-19 के संक्रमण के कारण उनके लिए गंभीर रूर से बीमार पड़ने का खतरा अत्यधिक बढ़ जाता है। खासतौर पर, गुर्दे की बीमारी डायलिसिस के मरीजों के लिए कोविड-19 के संक्रमण और अन्य स्वास्थ्य जटिलताओं के खतरे को अत्यधिक बढ़ा देती है। अगर वो एक बार भी डायलिसिस कराने से चूक गए तो फेफड़ों और हृदय में फ्ल्यूड का जमाव होने लगता है जो उनके लिए घातक हो सकता है। हालांकि, विशेषज्ञ कईं दृष्टिकोणों पर काम कर रहे हैं कि डायलिसिस केंद्रों पर कब और कैसे वायरस आक्रमण कर सकता है, लेकिन अभी तक कोई ठोस परिणाम प्राप्त नहीं हुए हैं।
इस प्रकार से, वर्तमान परिदृश्य में मरीजों को डायलिसिस की सुविधा उपलब्ध कराना और उसके साथ ही उन्हें अस्पतालों से दूर रखना एक बड़ी चुनौती है। उदाहरण के लिए, कईं मरीज डायलिसिस केंद्रों पर आने के लिए सवारी सेवाओं पर निर्भर हैं, और विशेषज्ञों को चिंता है कि ऐसे हालात में ड्रायवर संक्रमित मरीजों को सवारी के रूप में छोड़ना पसंद नहीं करेंगे। अगर संक्रमित मरीज शेयरिंग वैन में सफऱ करते हैं तो वो अपने साथ यात्रा करने वाले स्वस्थ्य लोगों के लिए खतरा बढ़ा देंगे।
लखनऊ स्थित एसजीपीजीआई के एचओडी, डॉ नारायण प्रसाद कहते हैं, “कोविड-19 की महामारी के दौरान जब इस संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ने के लिए दूरी बनाए रखना सबसे प्रभावी उपाय है, ऐसे में बड़ी संख्या में डायलिसिस के रोगियों के लिए उनकी गंभीर स्थिति को देखते हुए चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराना एक बड़ी समस्या है। चूंकि डायलिसिस के मरीजों की किडनी अपने सामान्य कार्य नहीं कर पाती है, इसलिए उन्हें सप्ताह में तीन बार अपने रक्त को साफ कराना होता है। यह प्रक्रिया प्रमुख रूप से डायलिसिस केंद्रों पर हेमोडायलिसिस के द्वारा की जाती है, जहां, सामान्यतौर पर एक बड़े कमरे में लगभग तीस कुर्सियां रखी जाती हैं।”
वे आगे कहते हैं “मौजूदा परिदृश्य में जब संक्रमण की दर इतनी अधिक है तो हेमोडायलिसिस सबसे आसान और संभव विकल्प प्रतीत नहीं होता है। दूसरी ओर पेरिटोनियल डायलिसिस के माध्यम से मरीज घर पर ही डायलिसिस की सुविधा प्राप्त कर सकता है जो वर्तमान समय में डायलिसिस के मरीजों को बचाने और उन्हें अस्पतालों में जाने से रोकने के लिए सबसे प्रभावी थेरेपी लगती है।
डायलिसिस के मरीज कोविड-19 के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं इसलिए उन देशों में जहां इस संक्रमण की तीव्रता अपेक्षाकृत अधिक है, नैफ्रोलॉजिस्ट पेरिटोनियल डायलिसिस की सलाह देते हैं। पीडी, डायलिसिस का प्रभावी रूप है, जो घर पर ही किया जा सकता है इससे डायलिसिस मरीजों के कोविड-19 के संक्रमण के संपर्क में आने और दूसरों को संक्रमित करने का खतरा कम हो जाता है।
आमतौर पर भारत को स्वास्थ्य सेवा वितरण में एक महत्वपूर्ण संकट का सामना करना पड़ता है और विशेष रूप से वर्तमान स्थिति में यह कई गुना बढ़ गया है। अधिकांश क्षेत्रों में पूरा बुनियादी ढांचा जिसमें डायलिसिस केंद्र भी सम्मिलित हैं, चरमरा गया है। सुविधाओं के अभाव के अलावा, संक्रमण की आशंका काफी अधिक है, चाहे वो बाजार हों या अस्पताल। लेकिन इसके साथ ही गुर्दे के मरीजों के जीवित रहने के लिए डायलिसिस आवश्यक है। तो वर्तमान स्थिति में अन्य विकल्प क्या हैं? निःसंदेह एक विकल्प है पेरिटोनियल डायलिसिस, जो न केवल संभव है बल्कि सुरक्षित भी है।
डायलिसिस मरीजों की बढ़ती संख्या और पेरिटोनियल डायलिसिस
कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के अलावा, भारत में हर साल उन मरीजों की संख्या 226 प्रति दस लाख की दर से बढ़ रही है जिन्हें डायलिसिस की जरूरत पड़ती है। पीडी उन लोगों के लिए जिनका गुर्दा रोग अंतिम चरण में है और छोटे बच्चों तथा नवजात शिशुओं के लिए वरदान है, क्योंकि यह डालिसिस का सबसे अनुकूल तरीका है।
गुर्दे के मरीजों की देखभाल में एक नए आयाम को जोड़ने के लिए, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम (पीएमएनडीपी) के तहत पेरिटोनियल डायलिसिस सेवाओं की स्थापना के लिए दिशानिर्देशों के एक सेट के साथ सामने आया है। यह वास्तव में एक सराहनीय कदम है, जो भारत में हर वर्ष लगभग दो लाख लोगों की सहायता करेगा जिन्हें अंतिम चरण का किडनी फेलियर विकसित हो जाता है। अब उनके पास उपचार का एक और विकल्प है, जो उन्हें घर पर ही डायलिसिस की सुविधा उपलब्ध कराएगा ताकि वो अपनी जीवनशैली के साथ आसानी से सामंजस्य बैठा सकें।
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