सेल्फ ड्राइविंग कार भी नस्लवादी, अश्वेत चेहरों को पहचानती नहीं

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(www.arya-tv.com)सोच-समझ कर खुद फैसला करने वाली सेल्फ ड्राइविंग कार की सोच में भी इंसानी नस्लवाद शामिल हो गया है। चौंक गए न आप। लेकिन यह सच है। ब्रिटेन के लॉ कमीशन ने सेल्फ ड्राइविंग कारों को लेकर चेतावनी जारी की है। कमीशन का कहना है कि सेल्फ ड्राइविंग कारों में इस्तेमाल की जा रही टेक्नोलॉजी अश्वेतों को पहचानने में पूरी तरह सक्षम नहीं है। यह कार महिलाओं को पहचानने में भी भेदभाव करती है। लॉ कमीशन अगले 10 सालों में सेल्फ ड्राइविंग कारों के इस्तेमाल को देखते हुए कानूनी ढांचा तैयार कर रहा है। कमीशन का कहना है कि इसकी डिजाइन में खामी है, इनमें पूर्वाग्रह झलकता है। अगर इसमें सुधार नहीं किया गया तो नतीजे खतरनाक हो सकते हैं।सेल्फ ड्राइविंग कारों में AI यानी आर्टिफिशियल टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है और उन्हें इस तरह प्रशिक्षित किया जाता है कि वह पैदल चलने वालों को पहचान लें। इससे वे तय कर सकें कि कहां रुकना है और दुर्घटना से किस तरह बचना है। विशेषज्ञों ने यहां पूर्वाग्रह शब्द इसलिए इस्तेमाल किया है, क्योंकि अंधेरे या कम रोशनी में अश्वेतों को ज्यादा जोखिम हो सकता है। लॉ कमीशन ने कहा है कि सेल्फ ड्राइविंग कारों में महिलाओं व सड़क पर सही तरह से न चलने वालों को लेकर भी समस्या आ सकती है। इन गाड़ियों के ऑपरेटिंग सिस्टम पुरुषों ने डिजाइन किए हैं। हालांकि ब्रिटेन में एक स्वतंत्र निकाय सेल्फ ड्राइविंग कारों के लिए कानूनी ढांचा तैयार कर रहा है।

कमीशन कहना है कि एयरबैग से कई लोगों की जान बच जाती है, लेकिन शुरुआती एयर बैग ने छोटे कद के यात्रियों जैसे महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों को खूब जोखिम में डाला, दरअसल वे वयस्क पुरुषों को ध्यान में रखकर विकसित किए गए थे। ठीक इसी तरह सेल्फ ड्राइविंग के लिए तैयार की गई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सॉफ्टवेयर श्वेत और पुरुष चेहरों के प्रति पूर्वाग्रह है। वहीं अश्वेत और गैर पुरुष चेहरों के मामले में इसकी पहचानने की सटीकता में काफी गिरावट आ जाती है।

इंसान भी करते हैं गलती तो रोबोटिक गलतियां भी करनी होंगी स्वीकार

विशेषज्ञ इस बात को लेकर चिंतित हैं कि ब्रिटेन में 2035 तक 40% नई कारें सेल्फ ड्राइविंग टेक्नोलॉजी वाली ही बिकेंगी। इसलिए जरूरी है कि सड़कों पर उतरने से पहले इन गाड़ियों को हर तरह की परिस्थिति में प्रतिक्रिया देने के लिए पूरी तरह तैयार किया जाए। इसके रोडमैप पर काम कर रहे निकाय के प्रमुख एडमंड किंग के मुताबिक दुर्घटनाओं की बड़ी वजह इंसानों से होने वाली गलती है, पर हमें ये जोखिम नई टेक्नोलॉजी के साथ नहीं अपनाने चाहिए। यानी रोबोटिक गलतियां स्वीकार करनी चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है कि संभवत: सिस्टम को व्हील-चेयर और मोबिलिटी स्कूटर के हिसाब से भी प्रशिक्षित नहीं किया गया है। छोटे यात्रियों, महिलाओं और बच्चों का भी ध्यान नहीं रखा गया है, क्योंकि डिजाइनिंग पुरुषों को केंद्र में रखकर की गई है। इसके अलावा मौजूदा फेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी भी चेहरों के रंग पहचानने में भेदभाव करती है।

हल्की त्वचा वालों का पता लगाने में बेहतर है टेक्नोलॉजी​​

2019 में जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि सेल्फ-ड्राइविंग कार में अश्वेतों को टक्कर मारने की संभावना बहुत ज्यादा है, क्योंकि कारों में इस्तेमाल होने वाले सेंसर और कैमरे हल्की त्वचा वाले लोगों का पता लगाने में बेहतर हैं।

ऑटोनॉमस व्हीकल्स रेडीनेस इंडेक्स में 4 पायदान खिसका भारत

2019 के ऑटोनॉमस व्हीकल्स रेडीनेस इंडेक्स के अनुसार भारत सेल्फ ड्राइविंग व्हीकल्स को लेकर तैयारी के मामले में दुनिया में 24वें स्थान पर है, जबकि 2018 में 20 वें स्थान पर था। पॉलिसी और कानून बनाने के मामले में भारत का 23वां स्थान है। टेक्नोलॉजी और इनोवेशन के मामले में 22वां और चार्जिंग स्टेशन जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में भारत 23वें स्थान पर खड़ा है। वहीं ऐसी गाड़ियों को स्वीकार करने के मामले 25वें स्थान पर है।