(www.Arya Tv .Com) इंडिया गठबंधन में टूट का कारवां पश्चिम बंगाल, बिहार के रास्ते अब उत्तर प्रदेश पहुंच रहा है. रालोद मुखिया जयंत चौधरी की बीजेपी से बढ़ती नजदीकियों से प्रदेश की सियासत में भूचाल ला दिया है. कहा जा रहा है कि 12 फ़रवरी को जयंत चौधरी समाजवादी पार्टी और इंडी गठबंधन से नाता तोड़ सकते हैं. दरअसल, 12 फरवरी को चौधरी अजीत सिंह की जयंती है. इस दिन जयंत चौधर बीजेपी के साथ गठबंधन का ऐलान कर सकते हैं.
वैसे तो समाजवादी पार्टी की तरफ से आश्वस्त किया जा रहा है कि जयंत चौधरी कहीं भी नहीं जा रहे हैं और वे इंडी गठबंधन के साथ रहकर किसानों की लड़ाई को आगे बढ़ाएंगे. सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी बहुत सुलझे हुए इंसान हैं… वो बहुत पढ़े लिखे हैं.. वे राजनीति को समझते हैं.. मुझे उम्मीद है कि किसानों की लड़ाई के लिए जो संघर्ष चल रहा है, वे उसे कमज़ोर नहीं होने देंगे… इस बयान के ठीक बाद राष्ट्रीय लोकदल की तरफ से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर किसानों को लेकर पोस्ट किया गया कि ‘हमारे किसान भोले ज़रुर हैं, पर मूर्ख नहीं हैं. वे बहुत समझदार और सशक्त हैं.’ इस पोस्ट के बाद से वेस्ट यूपी में सियासी हलचल फिर तेज हो गई है.
सपा संग ऐसे बिगड़ी बात
बता दें कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव रालोद से गठबंधन की घोषणा कर चुके हैं. इतना ही नहीं रालोद को 7 सीट देने की घोषणा भी कर दी गई. लेकिन सीटें चिह्नित करने और सपा की ओर से तीन सीटों पर रालोद के चुनाव निशान पर अपने उम्मीदवार खड़ा करने की शर्त पर पेच फंस गया लगता है. बताया जाता है कि सपा चाहती है कि कैराना, मुजफ्फरनगर और बिजनौर में प्रत्याशी सपा का हो, जो रालोद के चुनाव चिह्न पर मैदान में उतरे. सपा के समक्ष मुजफ्फरनगर सीट पर रालोद ने दावा किया था, जहां बीते चुनाव में दिवंगत अजीत सिंह महज छह हजार मतों से हार गए थे.
NDA में जाने की वजह ये भी
कहा जा रहा है कि सीटों को लेकर बिगड़ी बात के बाद जयंत चौधरी बीजेपी से नजदीकियां बढ़ाने लगे. उनकी बीजेपी के साथ कई दौर की बात हो चुकी है. सीटें भी तय हैं. बीजेपी की तरफ से 4 सीटें रालोद को दी जाएंगी. इसके अलावा निगम और बोर्डों में भी रालोद को प्रतिनिधित्व दिया जाएगा. अब सवाल यह कि सपा की 7 की जगह बीजेपी की 4 सीटों पर जयंत क्यों राजी हो गए? दरअसल, जयंत को लगता है कि इंडी गठबंधन के साथ सात सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद जीत तय नहीं है. क्योंकि 2019 में सपा-बसपा गठबंधन के साथ रालोद ने चुनाव लड़ा था और एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी. इसके अलावा बीजेपी के साथ जाने पर जयंत चौधरी को जीत पक्की लगती है. पिछले दो लोकसभा चुनाव में रालोद का खाता भी नहीं खुला है, लिहाजा इस बार जयंत चौधरी कोई रिस्क नहीं लेना चाहते।
