मार्कण्डेय पांडेय। रोजी मैन्दौलिया के स्टार्टअप की कहानी। जिसे उत्तर प्रदेश की राज्यपाल ने स्वर्ण पदक देकर डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में सम्मानित किया। रोजी एकेटीयू की बीटेक की मेधावी छात्रा हैं। आइए आपको बताते हैं कि रोजी मैन्दौलिया के स्टार्टअप की कहानी,उन्होंने अपना करियर कैसे शुरू किया और किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
बीटेक की छात्रा रोजी मैंदौलिया ने थर्ड आई स्टार्टअप शुरु किया है। वह बताती हैं कि कभी भी मेरा सपना उद्यमी बनने का नहीं था, लेकिन एक घटना ने मेरी सोच और जीवन की दिशा दोनों ही बदल दी। कॉलेज के दूसरे वर्ष में गांवों में सर्वे के दौरान मेरी मुलाकात एक महिला से हुई। वह बड़े ही मनोयोग से ब्लाउज सिल रही थीं। मैंने सहज ही उनसे पूछा कि “मौसी जी, आप एक ब्लाउज के कितने पैसे लेती हैं?”
उन्होंने कहा- “बेटा, पचास रुपये।” मैं चौंक गई और कहा- “मेरी मम्मी तो एक ब्लाउज के लिए 350 रुपये से ज्यादा देती हैं। आप इतना कम क्यों लेती हैं?” उन्होंने बड़ी मासूमियत से उत्तर दिया- “क्या बताऊं बेटा, कई बार लोग हमसे 45 रुपये में भी ले जाते हैं।”
उनकी यह बात मेरे दिल को छू गई। इतने अच्छे काम की इतनी कम कीमत क्यों मिल रही है। मैं वापस लौटकर इस मुद्दे पर सोचना शुरू किया और जरूरी जानकारियों को इकट्ठा करना शुरू की। मुझे समझ आया कि सबसे अधिक शोषण हैंड एम्ब्रॉयडरी कारीगरों का हो रहा है। किसी को 32 रुपये तो किसी को 50 रुपये मुश्किल से प्रतिदिन मिलते हैं, लेकिन यह तो इनकी मेहनत और हुनर का शोषण है। मैंने ठान लिया कि मुझे उनके लिए कुछ करना है। उस समय मेरे सामने दो रास्ते थे। एक बीटेक के उसी सेक्टर में काम करना, जिसे मैं पढ़ रही थी। दूसरा इस अनप्रेडिक्टेबल इंटरप्रन्योरशिप की अनजानी दुनिया में कदम रखना।
मैंने दूसरा रास्ता चुना, क्योंकि मेरा दिल कह रहा था कि मुझे इन कारीगरों के लिए बदलाव लाना है। वह मैंने अपने स्टार्टअप से कर दिखाया है। हालांकि इस दौरान मुझे अनेक चुनौतियों से भी जूझना पड़ा। लोग अक्सर पूछते भी हैं कि सबसे बड़ी कठिनाई क्या रही? मेरे लिए यह वित्तीय संकट नहीं था। मुझे घर से जेब खर्च के लिए हमेशा पर्याप्त धन मिलता था। मेरे माता-पिता ने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा, लेकिन मैं अपने स्टार्टअप के लिए उनसे पैसा नहीं लेना चाहती थी। यह मेरी अपनी जिम्मेदारी थी। इसलिए मैंने तय किया कि मैं डेढ़ साल तक घर पर ट्यूशन पढ़ाऊंगी। हर महीने लगभग 7,500 रुपए मुझे दो घंटे ट्यूशन पढ़ाने के मिलने लगे। पैसा खुद कमाती और एक-एक रुपया थर्डआई में ही लगाती। न कहीं और खर्च, न कोई और सपोर्ट। यह अनुशासन और आत्मनिर्भरता ही मेरे उद्यम की पहली नींव बनी। मेरी असली प्रेरणा तो कारीगर महिलाएं ही थीं, लेकिन जब लोग मुझसे पूछते हैं कि जोखिम लेने का साहस कहां से मिला, तो जवाब साफ है कि यह मैंने अपने पिता से सीखा है।
मॉडल और आमदनी
थर्डआई का मॉडल “वर्क-फ्रॉम-होम” है। हम कारीगरों को सामग्री उपलब्ध कराते हैं, 50 प्रतिशत एडवांस देते हैं और प्रोडक्ट तैयार होने के बाद शेष भुगतान करते हैं। हमारा उद्देश्य यही है कि महिलाएं अपने घरों से अपने समय के अनुसार काम कर सकें। हमारे प्रोडक्ट की कीमत का लगभग 70-75 प्रतिशत हिस्सा सीधे कारीगरों को दिया जाता है।
मार्केटिंग के तरीके
-ऑनलाइन प्लेटफटर्म- फ्लिपकार्ट, अमेजन आदि
-कॉर्पोरेट हैम्पर्स व गिफ्टिंग
-ऑफलाइन प्रदर्शनियां
हमारी योजना है कि आने वाले समय में उत्पादों का एक्सपोर्ट भी शुरू हो। वॉलमार्ट जैसे प्लेटफॉर्म से जुड़ने की दिशा में काम चल रहा है। 2026 तक हमारा लक्ष्य है कि ऑफलाइन स्केलअप कर कई राज्यों में थर्डआई को स्थापित किया जाए।
पुरस्कार और उपलब्धियां
-डब्लूडब्लूएफ स्वीटजरलैंड में 75 वैश्विक कंपनियों में चयन।
-स्टार्टअप महाकुंभ में डीटूसी सेक्टर का विजेता एक लाख रुपए पुरस्कार।
-सी राईजेज कांक्लेव में 21,000 रुपए का पुरस्कार।
-राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला द्वारा “सर्वश्रेष्ठ महिला छात्र-नेतृत्व स्टार्टअप” का सम्मान मिला।
-सुलक्षणा सावंत गोवा की मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी की पदमिनी फाउंडेशन के साथ प्रशिक्षण कार्यक्रम।
थर्डआई से कानपुर और दिल्ली के गांवों की लगभग 82 महिलाएं जुड़ी हैं। पहले जो महिलाएं केवल 50 रुपया प्रतिदिन कमाती थीं, अब वे 500 रुपए से अधिक प्रतिदिन कमा रही हैं। मेरे लिए यही सबसे बड़ी सफलता है कि जब कोई कारीगर आत्मसम्मान से कहता है कि वह अपने परिवार की रीढ़ है। मैं धार्मिक प्रवृत्ति की हूं और मानती हूं कि मेरी कामयाबी में भगवान शिव की कृपा, माता-पिता के आशीर्वाद और कारीगर बहनों के विश्वास के कारण ही संभव हो पाया है।
कैसे शुरू करें स्टार्टअप
अब युवाओं का उद्यमी बनना मुश्किल नहीं है। बहुत से युवा उद्यमिता (इंटरप्रेन्योरशिप) में आना चाहते हैं, लेकिन अक्सर सबसे बड़ा सवाल यह होता है कि शुरुआत कैसे करें? मैं हमेशा यही कहती हूं कि अगर आपके पास एक आइडिया है और उसमें एक भी डिफ्रेंशिएटर (यानी कोई अलग या अनोखी चीज़) है, तो बिना डरे शुरुआत करें। मैं स्वयं टियर- 2 और टियर–3 शहरों के छात्रों और युवाओं को प्रशिक्षण देती हूँ कि “कैसे बिना किसी पूंजी के सिर्फ एक आइडिया से शुरुआत की जा सकती है।” जो भी युवा इस राह पर चलना चाहता है, वह मुझसे मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता है। आप मुझसे सीधे जुड़ सकते हैं-Instagram: @thirdeye_shop, Email: support@thirdeyeshop.in से आप मेरे से संपर्क भी कर सकते हैं।