किसान आंदोलन की आंच सबसे अधिक जहां, वहां तीन सभाएं करना चाहती थीं प्रियंका गांधी

UP

(www.arya-tv.com)कृषि कानूनों के खिलाफ केंद्र सरकार के प्रति पनपे किसानों के आक्रोश का असर सबसे ज्यादा असर जाटलैंड कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में देखने को मिल रहा है। यही वजह है कि यहां भारतीय किसान यूनियन की पंचायत हो या राष्ट्रीय लोकदल की महापंचायत, सभी में किसानों का सैलाब उमड़ रहा है। इस मौके पर को भुनाने के लिए कांग्रेस भी सक्रिय हो गई है। हाल ही में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने दिल्ली के ट्रैक्टर परेड में हादसे का शिकार हुए किसान नवरीत सिंह के परिवार से रामपुर में मुलाकात की तो 8 फरवरी को सहारनपुर, 9 को शामली और 10 को मुजफ्फरनगर में दो-दो सभाएं करने का प्लान बनाया। लेकिन प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं दी है।

दरअसल, यह पहला मौका नहीं है जब कांग्रेस महासचिव के किसी कार्यक्रम को मंजूरी नहीं मिली है। साल 2019 से अब तक तीन बड़े कार्यक्रमों को लोकल प्रशासन ने कभी कानून व्यवस्था तो कभी किसी कारण से होने नहीं दिया। फिलहाल परमिशन न देने के पीछे राजनीतिक जानकार मानते हैं कि “भाजपा को यह मालूम है कि पश्चिम यूपी में उनका विकल्प कांग्रेस पार्टी हो सकती है। इसलिए परमिशन न देने की वजह एक यह भी हो सकती हैं।

पश्चिमी UP में क्यों सक्रिय सभी विपक्षी दल?
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि दिल्ली से सटे होने के नाते पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक बड़े नेताओं का पहुंचना आसान है। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम यूपी के मेरठ, मुरादाबाद, रामपुर, अलीगढ़, गाजियाबाद यहां तक कि मथुरा भी कांग्रेस ने जीता था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी का कोई बड़ा नेता पार्टी छोड़कर नहीं गया। हर चुनाव में यहीं से पहले चरण के चुनाव का माहौल तय होता है। इसीलिए सत्तारूढ़ पार्टी से लेकर विपक्षी पार्टियां पहले चरण में अपनी मजबूती बनाने के लिए सभी प्रयास करते हैं। इसलिए प्रियंका गांधी किसान आंदोलन के बीच अपनी यूपी की सभाएं यहीं से शुरू करना चाहती हैं।

वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि मौजूदा समय में कांग्रेस के सात विधायकों में दो रायबरेली के विधायक के छिटकने के बाद बचे 5 कांग्रेस विधायकों में दो सहारनपुर जिले के विधायक शामिल हैं। बीते 2014 के लोकसभा और 2017 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने छोटे दलों को सहयोग किया। जिसमें से राष्ट्रीय लोकदल के साथ सबसे बड़ी सहयोगी कांग्रेस रही। यहीं नहीं बसपा के वोट बैंक पर भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर रावण ने जाट और दलित- मुस्लिम ने सेंध लगाई है। बीते चार सालों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई घटनाओं में कांग्रेस ने मुद्दा उठा तो वहीं भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर रावण के साथ खड़ी दिखीं और मुलाकात करने भी प्रियंका गांधी जा चुकी हैं।

इन कार्यक्रमों को भी नहीं मिली थी परमिशन

  • 2 अक्टूबर 2019 को शांति मार्च निकालने की परमीशन लखनऊ के जिला प्रशासन ने नहीं दी थी।
  • 9 मई 2019 को जौनपुर जिले में रैली को संबोधित करने के लिए परमिशन मांगी गई थी, लेकिन जिला प्रशासन ने अनुमति नहीं दी थी।
  • 18 मई को प्रवासी मजदूरों के लिए 1000 बसों की मंजूरी को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार और प्रियंका गांधी के निजी सचिव के बीच विवाद हुआ था। इस मामले हजरतगंज कोतवाली में दर्ज मामले में प्रदेश अध्यक्ष अजय लल्लू को जेल तक जाना पड़ा था।

मुस्लिम वोट किसे? भाजपा छोड़कर सभी दलों की नजर

पश्चिमी यूपी के कई हिस्सों में मुसलमानों की आबादी 30 से 40 फीसदी तक है। 2009 के चुनाव में मुस्लिमों के साथ जाट वोटों ने कांग्रेस पर भरोसा जताया था। लेकिन 2013 में मुजफ्फरनगर में हुए दंगों ने 2014 के लोकसभा चुनाव पर असर डाला। वोटों के ध्रुवीकरण ने भाजपा की मदद की। मुस्लिम वोट बंट गए थे। कांग्रेस अब फिर किसान आंदोलन की आड़ में जाट-मुस्लिम वोटों को अपने पाले में करने की कवायद में जुटी है।