बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी में दो नंबर पर जगह दी है. साल 2017 में आकाश आनंद की सियासत में एंट्री के बाद से ये चौथी बार है जब मायावती ने अपने भतीजे को जिम्मेदारी सौंपी. इसके अलावा एक बार मायावती ने उन्हें नेशनल कोआर्डिनेटर के पद से हटा दिया था तो एक बार उन्हें पार्टी से ही निकाल दिया था.
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद मायावती, आकाश आनंद को बसपा के राजनीतिक मंच पर लाईं थीं. वह 2019 में आकाश का नाम पार्टी के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में था. इसके बाद वर्ष 2023 की दिसंबर में मायावती ने आकाश को उत्तराधिकारी घोषित किया था.
इसके बाद8 महीने 8 दिन बाद मायावती ने आकाश आकाश आनंद को 3 मार्च 2025 को पार्टी से निकाल दिया. इसके साथ ही यह भी कहा कि वह उनके उत्तराधिकारी नहीं रहेंगे. मायावती ने कहा था कि उनकी अंतिम सांस तक पार्टी का कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा. इससे पहले 2 मार्च को मायावती ने आकाश से सारी जिम्मेदारियां छीन लीं थीं.
आकाश आनंद से जिम्मेदारी छीनने और फिर पार्टी से निष्कासित करने के 1 महीने 10 दिन बाद यानी 13 अप्रैल 2025 को मायावती ने अपने भतीजे को माफ कर दिया. हालांकि बसपा चीफ ने उस वक्त यह स्पष्ट किया था कि आकाश उनके उत्तराधिकारी नहीं होंगे.
भतीजे को माफ करने के करीब 1 महीने 5 दिन बाद मायावती ने फिर 18 मई को उन्हें नेशनल कोआर्डिनेटर पद पर आसानी किया. उस वक्त मायावती ने कहा था कि आकाश को दूसरा मौका दिया जा रहा है. हालांकि मायावती ने उस वक्त उन्हें उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की जिम्मेदारी नहीं दी थी.
18 मई के बाद अब 28 अगस्त को यानी 103 दिन बाद मायावती ने आकाश आनंद को पार्टी का नेशनल कोआर्डिनेटर नियुक्त किया है. बसपा के इतिहास में पहली बार ऐसा कोई पद बनाया गया है. ऐसे में यह स्पष्ट है कि अब मायावती धीमी गति से ही लेकिन अपनी जिम्मेदारियां आकाश आनंद को सौंप रहीं हैं.
मायावती द्वारा नई जिम्मेदारी मिलने के बाद अब आकाश आनंद का काम और भूमिकाएं बदल गई हैं. अभी तक आकाश आनंद नेशनल कोआर्डिनेटर थे. यानी उन्हें एक या दो क्षेत्रों की जिम्मेदारी मिली थी, जहां उनकी अपनी सीमित भूमिकाएं थीं. अब राष्ट्रीय संयोजक होने के बाद वह सीधे बसपा चीफ को रिपोर्ट करेंगे. वह अब पार्टी में किसी क्षेत्र विशेष नहीं बल्कि पूरे देश के कार्यक्रमों पर नजर रखेंगे. उनके काम का दायरा अब बढ़ गया है.
वर्ष 2026 में प्रस्तावित पंचायत चुनाव और साल 2027 में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव से पहले आकाश आनंद को मिली इस जिम्मेदारी के कई मायने निकाले जा रहे हैं.
जानकारों की मानें तो वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में फिर से शून्य हो चुकी बसपा को इस बात का अंदाजा हो गया है कि उसके वोट बैंक में सेंध लग चुकी है. बसपा के लिए संकट सिर्फ आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और नगीना सांसद चंद्रशेखर आजाद ही नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समेत अन्य क्षेत्रीय पार्टियां हैं.
बसपा अपने इसी संकट से उबरने में लगी है. बीते कुछ चुनावों से यह साफ दिख रहा है कि बसपा जिस वर्ग को अपना वोट बैंक मानकर चल रही थी, उसके भी वोट अन्य दलों की ओर शिफ्ट हो रहे हैं. ऐसे में बसपा अपनी पुरानी जमीन दोबारा हासिल करने में जुट गई है.
आंकड़ों पर नजर डालें तोबसपा के ग्राफ में चुनाव दर चुनाव गिरावट दर्ज की जा रही है. अगर सिर्फ यूपी विधानसभा चुनावों की बात करें तो वर्ष 2007 में बसपा को 30.43 %, (206 सीटें) 2012 में 25.91 % (80 सीटें), 2017 में 22,17 % (19 सीटें) और 2022 में 12.88 % वोट (1 सीट) मिले थे.
उधर सन् 2004 से आज तक के लोकसभा चुनावों की बात करें तो बसपा अपने सबसे बुरे दौर में है. साल 2004 में 19 सीटों के साथ 24.67%, साल 2009 में 27.42 % वोट के साथ 20 सीट, साल 2014 में 19.60 % वोट के साथ 0, साल 2019 में सपा के साथ अलायंस के बाद 19-20 % वोट के साथ 10 सीटें और साल 2024 के चुनाव में 9-10 फीसदी वोट के साथ 0 सीट पर है.
बसपा के एक नेता ने नाम न प्रकाशित करने के अनुरोध पर बताया कि आकाश आनंद पर न सिर्फ सियासी तौर पर पार्टी की स्थिति ठीक करने की जिम्मेदारी है बल्कि उन्हें सांगठनिक स्तर पर भी मेहनत करने की जरूर होगी. बसपा नेता ने कहा कि आकाश आनंद से बसपा को बहुत उम्मीदें हैं. वह न सिर्फ मौजूदा स्थिति में बसपा को वोट बैंक वापस उसके पास ला सकते हैं बल्कि कैडर में विश्वास जगाने में भी सक्षम होंगे.
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बसपा चीफ मायावती के हालिया फैसले का पार्टी की राजनीतिक और सांगठनिक स्थिति पर क्या असर पड़ता है. साथ ही बसपा के आकाश में आनंद के फिर से लौटने पर अन्य सियासी दलों की क्या प्रतिक्रिया होगी.