(www.arya-tv.com) यदि 65 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्गों को लंबे समय से बुरे सपने आ रहे है तो वे पार्किंसंस बीमारी के शिकार हो सकते हैं। बर्मिंघम यूनिवर्सिटी के न्यूरोलॉजिस्ट आबिदेमी ओटाइकू ने हाल ही में एक स्टडी में यह खुलासा किया है। पूरी दुनिया में यह बीमारी 40 लाख लोगों को है, यानी हर एक लाख में से 13 लोगों को होती है।
शोध में सामने आया कि जब तक इस बीमारी का पता लगता है, तब तक व्यक्ति अपने दिमाग से 60-80% तक डोपामाइन-रिलीजिंग न्यूरॉन खो चुका होता है। लिहाजा, इससे बचने के लिए 65 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग, खासकर पुरुषों को उनके सपनों के बारे में पूछकर या उनके शरीर के हिस्सों के मूवमेंट को देखकर पार्किंसंस के शुरुआती लक्षणों का पता लगाया जा सकता है।
पार्किंसंस के एक चौथाई रोगी बुरे सपनों के शिकार
रिसर्च बताती है कि सपनों से यह बीमारी बढ़ने की संभावना 2 गुना बढ़ जाती है। हालांकि, यह अच्छी बात है कि बुरे सपनों से पार्किंसंस जैसी बीमारी का पता चल जाता है, नहीं तो बीमारी की पुष्टि के लिए किए जाने वाले टेस्ट काफी महंगे होते हैं। पार्किंसंस के एक चौथाई रोगी बुरे सपनों के शिकार होते हैं। कुछ रोगी तो ऐसे भी हैं, जिन्हें 10 साल से बुरे सपने आ रहे हैं।
पार्किंसंस से पीड़ित पुरुषों को महिलाओं की तुलना में ज्यादा परेशान करने वाले सपने होते हैं, तो वहीं महिलाओं को शुरुआती जीवन से ही बुरे सपनों के आने की संभावना पुरुषों के मुकाबले ज्यादा होती है। पुरुषों में बुरे सपनों की शुरुआत न्यूरोडीजनेरेशन का भी संकेत होता है।
बुरे सपने आने से मानसिक रोग का खतरा भी दोगुना
12 साल तक की गई रिसर्च में 3,818 बुजुर्ग पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य पर नजर रखी गई। जिन्हें बार-बार बुरे सपने आते हैं, उनमें इस बीमारी की संभावना 2 गुना बढ़ जाती है। रोग से पीड़ित लोग अपने हाथ, पैर और जबड़े में झटके महसूस करते हैं। शरीर का मूवमेंट भी नहीं हो पाता है।