(www.arya-tv.com)फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की मीटिंग आज से पेरिस में शुरू हो रही है। यह 21 से 25 जून तक चलेगी। पाकिस्तान तीन साल से इस संगठन की ग्रे लिस्ट में है। उसे उम्मीद है कि इस बार वो ग्रे लिस्ट से निकल जाएगा और दिवालिया होने की कगार पर खड़ी इकोनॉमी दुनिया की मदद से पटरी पर आ जाएगी। वहीं, अमेरिका और फ्रांस जैसे कई देशों को आशंका है कि अगर पाकिस्तान ग्रे लिस्ट से बाहर आ गया, उसे पाबंदियों से राहत मिल गई तो इसका फायदा वहां मौजूद आतंकी संगठन उठा सकते हैं। आइए इस पूरे मामले को यहां विस्तार से समझते हैं।
सबूत देना सबसे मुश्किल काम
FATF में कुल 37 देश और 2 क्षेत्रीय संगठन हैं। 21 से 25 जून के बीच किसी भी दिन पाकिस्तान की किस्मत का फैसला हो सकता है। इस दौरान वोटिंग होगी। अगर पाकिस्तान को ग्रे से व्हाइट लिस्ट में आना है तो उसे कम से कम 12 सदस्य देशों के वोट चाहिए होंगे।
पाकिस्तान को 27 शर्तें पूरी करनी थीं। 24 को लेकर ज्यादा परेशानी नहीं थी, क्योंकि इन पर अमल मुश्किल नहीं है। 3 को लेकर पेंच फंसा है। इनका सार ये है कि पाकिस्तान को सिर्फ कार्रवाई ही नहीं करनी है, बल्कि इसके बिल्कुल पुख्ता सबूत सदस्य देशों को दिखाना हैं। फरवरी में भी वो ये नहीं कर पाया था और इस बार भी उम्मीद बहुत कम है।
FATF की ग्रे और ब्लैक लिस्ट: इसमें आने के नुकसान
- ग्रे लिस्ट : इस लिस्ट में उन देशों को रखा जाता है, जिन पर टेरर फाइनेंसिंग और मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल होने या इनकी अनदेखी का शक होता है। इन देशों को कार्रवाई करने की सशर्त मोहलत दी जाती है। इसकी मॉनिटरिंग की जाती है। कुल मिलाकर आप इसे ‘वॉर्निंग विद मॉनिटरिंग’ कह सकते हैं।
- नुकसान : ग्रे लिस्ट वाले देशों को किसी भी इंटरनेशनल मॉनेटरी बॉडी या देश से कर्ज लेने के पहले बेहद सख्त शर्तों को पूरा करना पड़ता है। ज्यादातर संस्थाएं कर्ज देने में आनाकानी करती हैं। ट्रेड में भी दिक्कत होती है।
- ब्लैक लिस्ट : जब सबूतों से ये साबित हो जाता है कि किसी देश से टेरर फाइनेंसिंग और मनी लॉन्ड्रिंग हो रही है, और वो इन पर लगाम नहीं कस रहा तो उसे ब्लैक लिस्ट में डाल दिया जाता है।
- नुकसान : IMF, वर्ल्ड बैंक या कोई भी फाइनेंशियल बॉडी आर्थिक मदद नहीं देती। मल्टी नेशनल कंपनियां कारोबार समेट लेती हैं। रेटिंग एजेंसीज निगेटिव लिस्ट में डाल देती हैं। कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था तबाही के कगार पर पहुंच जाती है।
रिव्यू रिपोर्ट तैयार
‘द डिप्लोमैट’ मैगजीन की रिपोर्ट के मुताबिक- FATF की मीटिंग से पहले इसके ‘इंटरनेशनल कोऑपरेशन रिव्यू ग्रुप’ यानी ICRG ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर ली है। इस ग्रुप के सदस्य हैं- अमेरिका, भारत, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन। चीन को छोड़कर कोई देश पाकिस्तान का दोस्त नहीं है। फरवरी में हुई मीटिंग में तो चीन ने भी पाकिस्तान का साथ नहीं दिया था। FATF के प्रेसिडेंट डॉक्टर मार्कस प्लीयर ने कहा- हम पाकिस्तान पर निगरानी बढ़ा रहे हैं। उसे एक मौका और दिया जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, इस बात की संभावना बहुत कम है कि पाकिस्तान इस बार भी ग्रे लिस्ट से बाहर आ पाएगा। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि FATF में सिर्फ शर्तें पूरी करना मायने नहीं रखता, सदस्य देशों से अच्छे रिश्ते भी बेहद अहम होते हैं।
और पाकिस्तान को लगता है- अच्छे दिन आने वाले हैं
‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ से बातचीत में पाकिस्तान की फाइनेंस मिनिस्ट्री के एक अफसर ने कहा- हमने बाकी तीन शर्तों पर भी काम किया है। टेरर फाइनेंसिंग और मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए कानून बनाए हैं। उम्मीद करते हैं कि इस बार खुशखबरी मिलेगी। लेकिन, मुल्क के फॉरेन मिनिस्टर शाह महमूद कुरैशी ने पिछले हफ्ते एक इंटरव्यू में कहा- इसमें कोई दो राय नहीं कि हम पर FATF की तलवार बदस्तूर लटक रही है। पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय के अफसर भी मानते हैं कि ग्रे लिस्ट से बाहर आना इस बार भी मुश्किल है।
किस-किसको खुश रखे पाकिस्तान
- अमेरिका : बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन चाहता है कि अफगानिस्तान से अपनी सेना निकालने के बाद वो पाकिस्तान के मिलिट्री या एयरबेसों से अफगानिस्तान पर नजर रखे, ताकि अलकायदा, तालिबान और ISIS फिर वहां कब्जा न कर सकें। 2001 की तरह पाकिस्तान से अफगानिस्तान में हवाई हमले किए जा सकें।
- तालिबान : पाकिस्तान को सीधी धमकी दे चुका है कि अगर अमेरिका को मिलिट्री या एयरबेस दिए तो अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहे। अलकायदा और IS भी तालिबान का साथ दे सकते हैं। ऐसे में पाकिस्तान आतंकवादी हमलों के नए दलदल में फंस जाएगा।
- चीन : पिछले दिनों ही कह चुका है कि पाकिस्तान की फॉरेन पॉलिसी एक फोन पर बदल जाती है। अगर इमरान या फौज अमेरिका को अड्डे देते हैं तो वहां से अमेरिका अपने हाईटेक ड्रोन्स के जरिए चीन पर बहुत करीबी नजर रख सकेगा। माना जा रहा है कि चीन के दबाव में पाकिस्तान अब अमेरिका को अड्डे देने में ना-नुकुर कर रहा है।
- फ्रांस : तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) ने हाल ही में फ्रांस के एम्बेसेडर को देश से निकालने के लिए बड़ा आंदोलन चलाया था। हिंसा में 40 लोग मारे गए थे। यूरोपीय यूनियन ने पाकिस्तान का स्पेशल ट्रेड पैकेज रद्द कर दिया था। पेरिस में ही FATF की मीटिंग है। फ्रांस अपमान का हिसाब-किताब बराबर कर सकता है।
लब्बोलुआब
पाकिस्तान के लिए एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई है। अमेरिका को मिलिट्री या एयरबेस देगा तो चीन और तालिबान दोनों नाराज हो जाएंगे। भारत की अहम भूमिका है, लेकिन उससे मदद मिलना मुश्किल है। फ्रांस तो पहले ही खार खाए बैठा है। ऐसे में मुश्किलों का अंबार है और बचने का रास्ता शायद नहीं है। हालात ये हैं कि बाइडेन को राष्ट्रपति बने 5 महीने हो गए हैं, उन्होंने अफगान नेताओं से तो बातचीत की, लेकिन इमरान खान का नंबर अब तक नहीं आया। पाकिस्तान भी इशारे समझ रहा है।
पिछले दिनों पाकिस्तान के मशहूर जर्नलिस्ट मुबाशिर लुकमान ने अपने यूट्यूब चैनल पर कहा था- इमरान सरकार जानती है कि पाकिस्तान इस बार भी ग्रे लिस्ट से बाहर नहीं आएगा। वो बस इतना चाहती है कि FATF एक बयान जारी करके बस इतना कह दे कि पाकिस्तान सही कदम उठा रहा है। इससे मुल्क में इज्जत बच जाएगी।
आतंकियों को मौके का इंतजार
‘फॉरेन पॉलिसी’ मैगजीन ने अप्रैल में जारी अपनी रिपोर्ट में FATF को एक तरह से वॉर्निंग दी थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक, ‘जमात-उद-दावा, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे कई आतंकी संगठनों पर सिर्फ दिखावे की कार्रवाई हुई है। अगर पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से बाहर किया जाता है तो कुछ ही वक्त में ये संगठन फिर खुलेआम हिंसा फैलाएंगे। अभी ये सिर्फ मौके का इंतजार कर रहे हैं। दुनिया पहले भी पाकिस्तान के झांसे में आ चुकी है।’