(www.arya-tv.com) साल भर में बड़ी एक टीनएजर दूर के रिश्ते के अपने छोटे भाई पर रुआब जमा रही है। कुछ सीन्स के बाद जूनियर उससे प्यार की फरमाइश करता है। बहन आपस का रिश्ता समझाती है। लेकिन, फिर एक किस के लिए मान जाती है, इस शर्त पर कि होंठ पर नहीं करेगा।
यही लड़की फिल्म के क्लाइमेक्स से ठीक पहले ये राज खोलती है कि हीरोइन गर्भवती नहीं है और इसका सबूत ये है कि दोनों के बीच सैनिटरी पैड्स को लेकर लंबी बातचीत बीते दिन ही हो चुकी है। यहां घर का मुखिया लड़की के पिता को ताना मारता है, “और दिखाओ पैडमैन, सब बनने निकले हैं।
सुपरमैन!” ये 2021 का हिंदी सिनेमा है। बहका बहका सा। सामाजिक बदलाव का आइना भी बनना चाहता है। और, दकियानूसी बातों को छोड़ना भी नहीं चाहता। बदलते दौर के मुहाने पर अटकी फिल्म ‘पगलैट’ का पूरा संघर्ष ही यही है। फिल्म खत्म होने से ठीक पहले तो हीरोइन बता पाती है कि लड़की लोग जब अक्ल की बातें करने लगते हैं तो लोग उन्हें ‘पगलैट’ कहते हैं।
‘पगलैट’ उन उमेश बिष्ट की बनाई फिल्म है जो सूरज पंचोली की फिल्म ‘हीरो’ लिख चुके हैं। पुलकित सम्राट को लेकर ‘ओ त्तेरी’ बना चुके हैं। 12 साल पहले ‘क्योंकि जीना इसी का नाम है’ से शुरू हुए उनके निर्देशकीय सफर का ‘पगलैट’ नया पड़ाव है। हो सकता है सीमा पाहवा और उमेश ने कभी साथ साथ चाय पर गप्पें मारी हों। विचारों का आदान प्रदान भी किया हो।
क्योंकि, फिल्म ‘राम प्रसाद की तेरहवी’ और ‘पगलैट’ दोनों का आधार एक ही है, मनुष्य की आत्मा के धरतीलोक से स्वर्गलोक की यात्रा के बीच का 13 दिन का पड़ाव। इन 13 दिनों में रिश्तेदारों व घर परिवार वालों की संगत से रिश्तों की जो नई कोंपले फूटती हैं, दोनों फिल्मों की कहानियों का असल मंतर वही है।
संध्या की शादी को पांच महीने ही हुए हैं और उसका पति आस्तिक गुजर जाता है। इससे ज्यादा दुख तो बेचारी को तब हुआ था जब उसकी बिल्ली चल बसी थी। अगले 13 दिन संध्या के जो बीतते हैं, वह जीवन की तमाम खिड़कियां खोलते हैं। संध्या अंग्रेजी से एमए है लेकिन काम नहीं कर रही।
आस्तिक घर का इकलौता कमाऊ था। उसके जाने के बाद के खर्चे उसके रहने के समय से ज्यादा हैं। बाप के आंख में आंसू हैं लेकिन वह मिडिल क्लास की मोलतोल करने की आदत से दूर नहीं हो पा रहा।
लड़कों को छुप छुपकर सिगरेट पीने से टोकने वाले ताऊजी खुद अद्धा लेकर अंटिया पर टंगे हुए हैं। बीवी पति से ज्यादा ‘गुरुजी’ की मानती है। दादी की मुस्कुराहट का राज यही है कि वह सुनती किसी की नहीं हैं। विधवा भाभी पर लाइन मारने वाले देवर भी कहानी की कतरनों में यहां वहां पड़े मिलते हैं।