(www.arya-tv.com)वाराणसी के ज्ञानवापी-मां शृंगार गौरी केस की दशा-दिशा जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की कोर्ट ही तय करेगी। ज्ञानवापी-मां शृंगार गौरी मुकदमा सुनवाई योग्य है या नहीं है, इस पर जिला जज की कोर्ट का आदेश आने तक सुप्रीम कोर्ट भी इस मसले में हस्तक्षेप नहीं करेगी।
ऐसे में अब इस मुकदमे की सुनवाई की आगामी तिथियां महत्वपूर्ण हो गई हैं। पांचों वादिनी महिलाओं की ओर से कोर्ट में पेश की गई दलीलों पर आगामी 25 जुलाई को मुस्लिम पक्ष जवाबी बहस करेगा। माना जा रहा है कि उसके बाद कोर्ट का आदेश जल्द ही आएगा कि मां शृंगार गौरी मुकदमा सुनवाई योग्य है या नहीं है।
ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में मिले कथित शिवलिंग की पूजा की अनुमति सुप्रीम कोर्ट से हिंदू पक्ष ने मांगी थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने अनुमति नहीं दी।
साथ ही, यह भी स्पष्ट किया है कि वह जिला जज की कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे। इसके साथ ही हिंदू पक्ष ने कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की याचिका भी वापस ले ली है।
हिंदू पक्ष का दावा- सुनवाई योग्य है मुकदमा
- मुकदमा सिर्फ मां शृंगार गौरी के दर्शन-पूजन और राग-भोग के लिए दाखिल किया गया है। दर्शन-पूजन सिविल अधिकार है और इसे रोका नहीं जाना चाहिए।
- मां शृंगार गौरी का मंदिर विवादित ज्ञानवापी परिसर के पीछे है। वहां अवैध निर्माण कर मस्जिद बनाई गई है।
- वक्फ बोर्ड यह तय नहीं करेगा कि महादेव की पूजा कहां होगी। देश की आजादी के दिन से लेकर वर्ष 1993 तक मां शृंगार गौरी की नियमित पूजा होती थी। साल 1993 में सरकार ने अचानक बैरिकेडिंग लगा कर दर्शन और पूजा बंद करा दी।
- दावा ज्ञानवापी की जमीन पर नहीं है। दावा सिर्फ मां शृंगार गौरी के नियमित दर्शन और पूजा के लिए है।
- देवता की संपत्ति नष्ट नहीं होती है। मंदिर टूट जाने से उसका अस्तित्व समाप्त नहीं होगा।
- वर्ष 1937 में बीएचयू के प्रोफेसर एएस अलटेकर ने अपनी पुस्तक में ज्ञानवापी स्थित मंदिर टूट जाने के बाद इस तथ्य का जिक्र किया है कि वहां क्या क्या बचा है और कहां पूजा हो रही है।
- वर्ष 1937 के दीन मोहम्मद केस का फैसला आया था, वह सभी पर बाध्यकारी नहीं है। क्योंकि उसमें हिंदू पक्षकार कोई नहीं था।
- हिंदू लॉ में अप्रत्यक्ष देवता भी मान्य हैं। देवता को हटा दिए जाने से भी उनका स्थान वही रहता है।
- मुस्लिम लॉ में स्पष्ट है कि जो प्रॉपर्टी वक्फ को दी जाती है वह मालिक द्वारा ही दी जा सकती है। ज्ञानवापी के संबंध में कोई वक्फ डीड नहीं है।
- डीके मुखर्जी की पुस्तक हिंदू लॉ और श्रीराम-जानकी मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि स्वयंभू देवता कौन होते हैं, कितने प्रकार के होते हैं। उनकी पूजा कैसे की जाती है।
- धार्मिक अधिकार मौलिक अधिकार से परे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उपेंद्र सिंह के मुकदमे में स्पष्ट किया है कि धार्मिक अधिकार सिविल वाद के दायरे में आते हैं।
- श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट में आराजी नंबर-9130 देवता की जगह मानी गई है। सिविल प्रक्रिया संहिता में संपत्ति का मालिकाना हक खसरा या चौहद्दी से होता है। इस मामले में खसरा का जिक्र मुकदमे में किया गया है।
मुस्लिम पक्ष का दावा- केस सुनने योग्य नहीं
- ज्ञानवापी परिसर में प्लॉट नंबर-9130 पर लगभग 600 वर्ष से ज्यादा समय से मस्जिद कायम है। वहां वाराणसी और आस-पास के मुस्लिम 5 वक्त की नमाज अदा करते हैं।
- संसद ने वर्ष 1991 में दी प्लेसेज आफ वर्शिप (स्पेशल प्रॉविजन) एक्ट 1991 बनाया। उसमें इस बात का प्रावधान है कि जो धार्मिक स्थल 15 अगस्त 1947 को जिस हालत में थे, वह उसी हालत में बने रहेंगे।
- वर्ष 1983 में उत्तर प्रदेश सरकार ने श्रीकाशी विश्वनाथ अधिनियम 1983 बनाया गया। जिससे संपूर्ण काशी विश्वनाथ परिसर की देखरेख के लिए बोर्ड ऑफ ट्रस्टी बनाने का प्रॉविजन है। बोर्ड ऑफ ट्रस्टी को ही श्री काशी विश्वनाथ मंदिर और उसके परिसर के देवी-देवताओं के प्रबंध का अधिकार मिला है।
- ज्ञानवापी मस्जिद वक्फ की संपत्ति है। इससे संबंधित अधिकार यूपी सुन्नी सेंट्रल बोर्ड ऑफ वक्फ लखनऊ को हैं। ऐसे में इस अदालत को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है।
- मौलिक अधिकार के तहत हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करनी चाहिए। मुकदमा कानूनन निरस्त किए जाने लायक है और उसे निरस्त किया जाना जरूरी है।