(www.arya-tv.com)देश में पिछले कुछ दिनों में इलेक्ट्रिक स्कूटरों में आग लगने की कम से कम 4 घटनाओं ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है। ये आग किसी एक कंपनी के स्कूटर में नहीं लगी है, बल्कि ओला, ओकीनावा और प्योर कंपनियों के इलेक्ट्रिक स्कूटरों में लगी है, जिससे इलेक्ट्रिक वाहनों यानी EV की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं।
केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने इलेक्ट्रिक स्कूटरों में आग लगने की घटना के जांच के आदेश दिए हैं। वहीं, इन स्कूटरों की कंपनियों ने आग लगने की तुरंत कोई वजह न बताते हुए आंतरिक जांच की बात कही है।
5 दिनों में इलेक्ट्रिक स्कूटरों में आग लगने की 4 घटनाएं
हाल के दिनों में इलेक्ट्रिक स्कूटर या ई-स्कूटरों में आग लगने की सबसे पहली घटना 25 मार्च को तमिलनाडु के वेल्लोर जिले में हुई, जब ओकीनावा (Okinawa) कंपनी के ई-स्कूटर को रात में चार्जिंग के लिए छोड़ देने के बाद अचानक उसमें आग लग गई।
इससे एक 45 वर्षीय व्यक्ति और उसकी 13 वर्षीय बेटी की दम घुटने से मौत हो गई। पुलिस ने शुरुआती जांच में आग लगने की वजह शॉर्ट सर्किट को बताया।
दूसरी घटना 26 मार्च को पुणे में हुई, जहां ओला के S1 प्रो इलेक्ट्रिक स्कूटर में अचानक आग लग गई, इसका वीडियो ऑनलाइन वायरल हुआ था। ओला S1 प्रो को कंपनी ने पिछले साल लॉन्च किया था।
तीसरी घटना 28 मार्च को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली जिले के मणप्पराई में हुई, जहां ओकीनावा के ई-स्कूटर में आग लगने की घटना सामने आई।
चौथी घटना 30 मार्च को तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में हुई, जहां हैदराबाद के स्टार्टअप प्योर के लाल रंग के ई-स्कूटर में आग लगने की घटना सामने आई।
ई-स्कूटरों में किन बैटरियों का इस्तेमाल होता है?
ई-स्कूटरों में लिथियम-ऑयन यानी Li-ion बैटरियों का इस्तेमाल होता है। आजकल दुनियाभर में स्मार्टफोन से लेकर लैपटॉप और इलेक्ट्रिक कार से लेकर स्मार्टवॉच तक में इन्हीं बैटरियों का इस्तेमाल हो रहा है।
- ये बैटरियां अन्य बैटरियों की तुलना में ज्यादा ताकतवर और हल्की माना जाती हैं। हालांकि, इन बैटरियों से आग लगने का भी खतरा रहता है, जैसा कि ई-स्कूटरों में हाल के दिनों में नजर आया है।
- जो खास बातें लिथियम-ऑयन बैटरियों को अन्य बैटरियों की तुलना में बेहतर बनाती हैं, वे हैं उसका हल्का होना, हाई एनर्जी डेंसिटी और रिचार्ज करने की क्षमता। इसके साथ ही लिथियम-ऑयन बैटरियां लेड एसिड बैटरियों की तुलना में ज्यादा लंबे समय तक चलती हैं।
- एक लिथियम-ऑयन बैटरी आमतौर पर 150 वॉट-ऑवर्स प्रति किलोग्राम स्टोर कर सकती है जबकि लेड-एसिड बैटरी आमतौर पर करीब 25 वॉट-ऑवर्स प्रति किलोग्राम स्टोर कर सकती है।
- बैटरी में स्टोर हो सकने वाली एनर्जी को उसकी पावर कैपेसिटी कहते हैं। इससे बैटरी की क्षमता मापते हैं। इस पावर को आमतौर पर वॉट-ऑवर्स में व्यक्त करते हैं।
- दरअसल, वॉट-ऑवर को सीधे शब्दों में समझें तो एक लीथियम-ऑयन की एक किलोग्राम बैटरी में 150 वॉट-ऑवर की इलेक्ट्रिसिटी स्टोर हो सकती है। वहीं एक लेड-एसिड बैटरी की एक किलोग्राम बैटरी 25 वॉट-ऑवर की इलेक्ट्रिसिटी ही स्टोर कर सकती है। यानी जितनी इलेक्ट्रिसिटी 1 किलोग्राम की लिथियम-ऑयन बैटरी स्टोर कर सकती है, उतनी एनर्जी के लिए एसिड-लेड बैटरी की 6 किलोग्राम बैटरी की जरूरत पड़ेगी।
- इसका मतलब है कि लिथियम-ऑयन बैटरियां अन्य बैटरियों की तुलना में ज्यादा एफिशिएंट होती हैं। यानी लिथियम-ऑयन बैटरियों से लैस इलेक्ट्रिक कार या स्कूटर को ज्यादा समय तक ड्राइव किया जा सकता है। वहीं, स्मार्टफोन में इन बैटरियों के इस्तेमाल से उसकी बैटरी लगभग पूरे दिन टिकेगी।
- लिथियम-ऑयन बैटरियों की सबसे बड़ी खासियत हाई एनर्जी डेंसिटी है, यानी आम बैटरियों से ज्यादा एनर्जी। लेकिन यही बैटरी में खराबी की वजह भी हो सकती है। जानकारों के मुताबिक, इन बैटरियों की हाई एनर्जी डेंसिटी का मतलब है कि ये सेल कुछ परिस्थितियों में अस्थिर हो सकते हैं, जो इसकी कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकते हैं।
- एक्सपर्ट्स का मानना है कि लिथियम-ऑयन बैटरियां एक सुरक्षित ऑपरेटिंग लिमिट के अंदर ही सबसे अच्छे से काम करती हैं। इन बैटरियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम यानी BMS होता है।
- BMS एक इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम है, जो लिथियम-ऑयन बैटरी पैक में हर सेल से जुड़ा होता है। BMS लगातार बैटरी के वोल्टेज और उसमें फ्लो होने वाले करंट को मापता रहता है।
- साथ ही BMS कई टेंपरेचर सेंसर से लैस होता है, जो इसे बैटरी पैक के विभिन्न सेक्शन में टेंपरेचर के बारे में जानकारी देता है।
- यह सारा डेटा BMS को बैटरी पैक के अन्य पैरामीटर्स की कैलकुलेशन में मदद करता है, जैसे चार्जिंग और डिस्चार्जिंग रेट, बैटरी लाइफ साइकिल और एफिशिएंसी। BMS अगर ठीक से काम न करे तो बैटरी में आग लगने जैसी घटनाएं संभव हैं।