कहानी मां के दरबार में खच्चर चलाने वालों की- कई यही करते होटलों के मालिक बन गए

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  • घर में जिस तरह बच्चों के लिए एक कमरा होता है, उसी तरह ये लोग अपने घोड़े-खच्चर के लिए एक कमरा या बाड़ा रखते हैं
  • लॉकडाडन में कटरा में 15 घोड़े-खच्चर की भूख से मौत हो गई, एक घोड़े-खच्चर की डाइट पर एक दिन में 400 से 500 रुपए खर्च होते हैं, अभी काम बंद है

(www.arya-tv.com) कटरा में लोग पीढ़ियों से घोड़ा-खच्चर चलाने का काम कर रहे हैं। कई यही काम करते-करते होटलों और रेस्टोरेंट के मालिक बन गए। कुछ अब भी यही कर रहे हैं। इन लोगों के लिए घोड़ा-खच्चर सिर्फ कमाई का जरिया नहीं हैं, बल्कि परिवार का हिस्सा हैं। इनका जीवन इन्हीं से चलता है। इन्हें चौबीसों घंटे आंखों के सामने ही रखते हैं। घर में जिस तरह बच्चों के लिए एक कमरा होता है, उसी तरह ये लोग अपने घोड़े-खच्चर के लिए एक कमरा या बाड़ा रखते हैं। घोड़े के मर जाने पर ऐसे शोक मनाते हैं, जैसे इंसानों के न रहने पर मनाया जाता है।

लॉकडाउन में कटरा में करीब 15 घोड़ों और खच्चरों की भूख के चलते मौत हो गई। 18 मार्च से यात्रा बंद होने के बाद से ही इन लोगों का कामधंधा भी बंद हो गया था। एक घोड़े-खच्चर की डाइट पर एक दिन में 400 से 500 रुपए खर्च होते हैं। इन्हें चना और फल खिलाए जाते हैं। लेकिन, लॉकडाउन में मालिक अपने जानवरों को यह डाइट दे नहीं पाए, क्योंकि उनके तो खुद ही खाने-पीने के लाले पड़ गए थे। इसी के चलते अप्रैल से जुलाई के बीच में एक-एक करके करीब 15 घोड़े-खच्चर मारे गए। जानवरों के इस तरह मारे जाने का मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा। इसके बाद प्रशासन और श्राइन बोर्ड हरकत में आए और जानवरों के लिए डाइट दी गई। हालांकि, पिछले 6 माह में दो बार ही बोर्ड से यह मदद इन लोगों को मिल पाई।

माता के ट्रैक पर 20 सालों से घोड़ा चला रहे अजय कुमार का घोड़ा भूख के चलते अप्रैल में मर गया। उनके पास एक ही घोड़ा था। कहते हैं, हमारे लिए तो ये बच्चों की तरह होते हैं, क्योंकि हमारा जीवन इन से ही चलता है। हम बाड़ा ऐसी जगह बनाते हैं, जहां से चौबीसों घंटे हमारा घोड़ा हमें दिखे। जब उसे प्यास लगे तब तुरंत पानी दे पाएं। बहुत से लोग कमरे में घोड़ा रखते हैं। मेरा घोड़ा मर गया, अभी तक कुछ मदद तो मिली नहीं। अब नया घोड़ा खरीदने की हैसियत भी नहीं है। इसलिए किराये का घोड़ा चलाऊंगा। हम पीढ़ियों से यही काम करते आ रहे हैं। कटरा के ही मांगीराम का घोड़ा भी लॉकडाउन में मर गया। उनके पास भी अब नया घोड़ा खरीदने के पैसे नहीं हैं और वो भी बेरोजगार हो गए हैं।

2015 के पहले 16-17 हजार घोड़े-खच्चर ट्रैक पर दौड़ते थे। इनसे गंदगी भी फैलती थी। इसी का मुद्दा बन गया और इसके बाद प्रशासन ने घोड़े-खच्चर की लिमिट 4500 तय कर दी। अब इससे ज्यादा घोड़े-खच्चर ट्रैक पर नहीं दौड़ सकते। अभी जो घोड़े-खच्चर ट्रैक पर दौड़ रहे हैं, उनका एक तरफ का किराया 1100 रुपए तय किया गया है। यह नीचे से भवन तक का है। इस तरह एक घोड़ा-खच्चर संचालक 30 से 40 हजार रुपए महीना कमा लेता है। इसमें से करीब 10 हजार रुपए घोड़े की डाइट पर खर्च हो जाते हैं। कटरा वार्ड नंबर 9 के काउंसलर वीके राय कहते हैं कि अभी तो इन लोगों के हालात ऐसे हैं कि कोई एक किलो आटा भी दे तो यह भागकर आटा लेने चले जाते हैं, क्योंकि श्राइन बोर्ड की तरफ से एक ही बार राशन दिया गया।