(www.arya-tv.com) इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने एक अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की याचिका पर निर्णय देते हुए कहा है कि अपील अथवा पुनरीक्षण मामलों पर फैसला देते हुए, उच्चतर अदालतों को अपने से निचली अदालत के जज पर प्रतिकूल टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है। यह आदेश जस्टिस आलोक माथुर की बेंच ने ACJM अल्का पांडेय की याचिका पर पारित किया है।
याची का कहना था कि हरदोई जनपद में बतौर अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट उसने आईपीसी की धारा 406 व 411 के एक मामले की सुनवाई के उपरांत अभियुक्त को दोषी करार देते हुए, दो वर्ष के कारावास व पांच हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी। अभियुक्त ने दोष सिद्धि व सजा के उक्त आदेश के विरुद्ध सत्र न्यायाधीश, हरदोई के समक्ष अपील दायर की।
अपील पर निर्णय देते हुए सत्र न्यायाधीश ने अभियुक्त को दोषमुक्त कर दिया, साथ में याची पर यह टिप्पणी भी की कि विद्वान मजिस्ट्रेट ने बिना साक्ष्य का विश्लेषण किये हुए याचिकाकर्ता के विरूद्ध आरोप सिद्ध होने का जो निष्कर्ष निकाला है वह त्रुटिपूर्ण है। विद्वान मजिस्ट्रेट से निर्णय लेखन में सुधार अपेक्षित है।
सत्र न्यायाधीश की टिप्पणी हटाने को लेकर दाखिल हुई थी याचिका
याची ने सत्र न्यायाधीश के उक्त टिप्पणी को हटाए जाने की मांग की। कोर्ट ने मामले की सुनवाई के उपरांत पारित आदेश में कहा कि सत्र न्यायालय को अपील की सुनवाई करते हुए इस बात का पूरा अधिकार है कि वह साक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन करे व ट्रायल कोर्ट के निष्कर्ष से असहमति जताए व ट्रायल कोर्ट के निर्णय के विपरीत निर्णय पारित करे। लेकिन उसे यह अधिकार कदापि नहीं है कि वह ट्रायल कोर्ट के जज की कानूनी क्षमता पर टिप्पणी करे।
कोर्ट ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सभी उच्च न्यायालयों को भी निर्देश दिया है कि उन्हें अपील अथवा पुनरीक्षण के मामलों पर आदेश पारित करते समय, निचली अदालतों के जजों पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। उक्त टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने हरदोई की अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (ACJM) के विरुद्ध न्यायिक निर्णय में की गई टिप्पणी को हटा दिया है।