नए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने सुप्रीम कोर्ट में वर्षों से बनी अनौपचारिक वीआईपी संस्कृति पर साफ़ और कठोर वार किया है। लंबे समय से प्रभावशाली वरिष्ठ वकीलों को यह विशेषाधिकार प्राप्त था कि वे सीधे अदालत में प्रवेश कर कह सकें—“मेरे मामले को पहले लिया जाए।” अब यह दौर समाप्त माना जा रहा है। नए दृष्टिकोण के तहत किसी भी मामले को प्राथमिकता देने के लिए व्यक्तिगत प्रभाव, वरिष्ठता या प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि लिखित प्रक्रिया का पालन ही एकमात्र आधार होगा।
इसी के साथ जूनियर वकीलों को भी स्पष्ट संकेत दे दिया गया है कि अत्यंत असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर किसी भी मामले का उल्लेख (मेंशनिंग) न किया जाए। न्यायिक अनुशासन और संतुलन बहाल करने के उद्देश्य से यह कदम एक बड़ा संकेत माना जा रहा है।
सबसे अधिक चर्चा तब बढ़ी जब CJI सूर्यकांत ने एनजेएसी की संभावित पुनर्स्थापना और कोलेजियम प्रणाली की पुनर्कल्पना पर भी संकेत दिया—ऐसी संरचनात्मक पहल जो भारत में न्यायाधीश नियुक्ति की प्रक्रिया को पूरी तरह नए ढांचे में ढाल सकती है। ये परिवर्तन केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि संस्थागत पारदर्शिता और न्यायिक उत्तरदायित्व को मजबूत करने की दिशा में निर्णायक मोड़ हैं। संदेश बिल्कुल स्पष्ट है—न्यायपालिका अब नए अध्याय में प्रवेश कर चुकी है जहाँ पुराने शक्ति-आधारित तौर-तरीके स्वीकार नहीं किए जाएंगे।
