(AryaTv : Lucknow) Hema Singh
‘मून बूट’ को एक नए सिरे से बनाने को कहा गया। ये मून बूट अपोलो अंतरिक्ष मिशन के अंतरिक्ष यात्रियों के बूटों से प्रेरित था।
मून बूट देखने में बर्फ़ में पहने जाने वाले बूटों जैसा था जिसमें मुलायम फ़र लगे हुए थे।मून बूट को 1972 में उस वक़्त बनाया गया था, जब चांद पर मिशन की चर्चा ज़ोर-शोर से हुआ करती थी।इसे कला की दुनिया में 20वीं सदी का प्लास्टिक युग माना जाता है।
इसे किसी अंतरिक्षयान पर भी बनाया जा सकता था और इस बूट को बनाने के लिए केवल दो ही चीज़ों की ज़रूरत थी पहला इंसान का पसीना और दूसरा कुछ कुकुरमुत्तों के बीजाणु।
लिज़ के हाथ जो दो जादुई चीज़ लगी है, उसका नाम है-माइसीलियम। ये फफूंद या कुकुरमुत्तों की शुरुआती अवस्था होती है। यानी जड़ें जिसके ज़रिए फफूंद फैलना शुरू करती है।
ये इंसुलेटर का काम करता है। यानी बिजली इससे नहीं गुज़र सकती। इसमें आग से मुक़ाबले की भी क्षमता होती है। अंतरिक्ष मिशन पर ये विकिरण यानी रेडिएशन से भी बचाने में मदद कर सकता है।