टोक्यो पैरालंपिक में उत्तराखंड के मनोज सरकार पहुंचे सेमीफाइनल में

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(www.arya-tv.com) टोक्यो में चल रहे पैरालंपिक खेल में उत्तराखंड के अर्जुन अवार्डी मनोज सरकार ने यूक्रेन के खिलाड़ी अलेक्जेंडर को 28 मिनट में ही 2-0 से हराकर पराजित कर सेमीफाइनल मुकाबले में जगह बना ली है। सेमीफाइनल मुकाबले में पहुंचने पर मनोज का कांस्य पदक पक्का हो गया है।

प्रमोद भगत ने मनोज सरकार को 2-1 के स्कोर से पराजित किया
टोक्यो में पांच सितंबर तक चलने वाले पैरा बैडमिंटन की एस एल-3 श्रेणी में राज्य के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी मनोज सरकार ने प्रतिभाग किया है। पहले मुकाबले में ओडिशा के अर्जुन अवार्डी व विश्व के नंबर वन खिलाड़ी प्रमोद भगत ने मनोज सरकार को 2-1 के स्कोर से पराजित किया है। दूसरे मुकाबले में खेल प्रेमियों को मनोज से पूल मैच जीतने की उम्मीद थी।

मनोज का कांस्य पदक पक्का
गुरुवार देर रात टोक्यो में चले मुकाबले में मनोज सरकार ने पहले सेट में ही 15 मिनट में 21-16 के स्कोर से बढ़त हासिल की। दूसरे सेट में चले मुकाबले के 13 मिनट में 21-9 के स्कोर से अलेक्जेंडर को हरा दिया। सेमीफाइनल मुकाबले में पहुंचने पर मनोज का कांस्य पदक पक्का हो गया है।

इधर, खेल प्रेमियों ने मनोज के सेमीफाइनल मुकाबले में पहुंचने पर सोशल मीडिया में बधाई संदेश का तांता लगा दिया है। मनोज की पत्नी रेवा सरकार ने बताया कि सुबह से ही रिश्तेदारों ने फोन कर  बधाइयां देना शुरू कर दी हैं।
 
गरीब परिवार में जन्मे मनोज सरकार
रुद्रपुर तराई के जिला मुख्यालय में गरीब परिवार में जन्मे मनोज सरकार टोक्यो ओलंपिक में टिकट पक्का होने के बाद राष्ट्रीय फलक पर छाए हुए हैं। लेकिन मनोज को यह मुकाम आसानी से नहीं बल्कि बेहद संघर्षों के बाद हासिल हुआ है। आर्थिक तंगी के चलते मनोज को बचपन में साइकिल में पंचर जोड़ने, खेतों में दिहाड़ी पर मटर तोड़ने और घरों में पीओपी के काम करने पड़े थे।

दिलचस्प बात है कि होनहार खिलाड़ी को वर्ष 2012 में फ्रांस में हुई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में चंदे से जुटाए रुपयों से प्रतिभाग करना पड़ा था। बचपन में दवा के ओवरडोज से उनके एक पैर ने काम करना बंद कर दिया था। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के चलते वह अच्छे डॉक्टर से पांव का इलाज नहीं करा पाए थे। उनकी मां जमुना सरकार ने मजदूरी से जुटाए रुपयों से उनको बैडमिंटन खरीदकर दिया था।

बचपन से ही उन्हें बैडमिंटन खेलने का शौक था। वह पहले अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेला करते थे। लेकिन उनकी शटल टूटने पर बच्चे उन्हें अपने साथ खेलने नहीं देते थे। जिसके बाद उन्होंने अपने से बड़ी उम्र के खिलाड़ियों के साथ खेलना शुरू किया। लेकिन पांव में कमजोरी के चलते उन्हें कईं बार लोग लंगड़ा कहकर भी चिढ़ाते थे।

इससे परेशान होकर उन्होंने बैडमिंटन खेलने का विचार छोड़ दिया था। फिर टीवी में बैडमिंटन की वॉल प्रैक्टिस (दीवार में शटल को मारकर प्रैक्टिस) देखने के बाद उन्होंने घर पर ही अभ्यास शुरू किया था।