लखनऊ के बच्चे नहीं लेते हैं भरपूर नींदः गोदरेज इंटेरियो के स्लीप एट 10 अध्ययन का खुलासा

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(www.arya-tv.com) भारत की प्रमुख हेल्थकेयर मैट्रेसेज रेंज, गोदरेज इंटरियो मैट्रेसेज ने अपनी स्वास्थ्य जागरूकता पहल- स्लीप एट 10 के तत्वावधान में विश्व निद्रा दिवस पर महत्वपूर्ण आंकड़े जारी किए। गोदरेज इंटेरियो द्वारा जारी किए गए नए आंकड़ों से पता चला है कि लखनऊ के 67 प्रतिशत बच्चे जागने के बाद भी सुस्ती और थकान महसूस करते हैं।

गोदरेज इंटेरियो मैट्रेसेज द्वारा वर्ष 2017 में शुरू की गयी जागरूकता पहल, के स्लीप-ओ-मीटर से प्राप्त विचारों पर संबंधित परिणाम आधारित हैं। पिछले तीन वर्षों में, इस अध्ययन ने देश के बच्चों व वयस्कों में बढ़ती नींद की अस्वास्थ्यकर प्रवृत्ति को उजागर किया है। देर से सोने जाना, जल्दी जागना, सोने का अनियमित समय और बाधित नींद – आमतौर पर वयस्कों के साथ जुड़े नींद के अभाव के ये सभी पैटर्न लखनऊ के बच्चों और किशोरों में देखे जा रहे हैं।

अध्ययन से पता चला कि 58 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाताओं ने कभी भी स्लीप एट 10 नहीं किया या किया भी तो कभी-कभार, लगभग 36 प्रतिशत प्रतिदिन छह घंटे से कम सोते हैं। वास्तव में, सबसे खतरनाक तथ्य यह है कि मात्र 20 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने स्लीप एट 10 की बात स्वीकार की। लगभग 41 प्रतिशत उत्तरदाता बच्चों ने “स्क्रीन टाइम“, जिसमें टेलीविज़न और फोन शामिल हैं, को उनके देरी से सोने का कारण माना और 43 प्रतिशत उत्तरदाता बच्चों ने कहा कि वे आधी रात के बाद सोए थे, जबकि स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने रात के लगभग 10 बजे सोने का परामर्श दिया है।

शोध निष्कर्षों पर टिप्पणी करते हुए, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्लीप साइंसेज के डॉ. अभिजीत देशपांडे ने कहा, “बच्चों और उनकी नींद की आदतें और पैटर्न माता-पिता के लिए गंभीर चिंता का विषय हैं। स्वस्थ रहने के लिए, प्रतिदिन 7 से 8 घंटे सोने की सलाह दी जाती है। पर्याप्त और उचित नींद के बिना, शरीर साइटोकिन्स स्रावित नहीं करता है, जो कि एक प्रकार का प्रोटीन है जो संक्रमण और जलन को को लक्षित करते हुए प्रभावी रूप से प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पैदा करता है।

नींद प्रतिरक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने और वायरस व बीमारी से बचाव का एक सबसे अच्छा तरीका है। समय पर सोना और शरीर को आवश्यक मात्रा में आराम देना बेहद जरूरी होता है। गोदरेज इंटेरियो मैट्रेस द्वारा कराये गये स्लीप एट 10 अध्ययन के अनुसार, 58 प्रतिशत से अधिक बच्चे कभी भी स्लीप एट 10 नहीं करते हैं या फिर कभी-कभार ही करते हैं, और 36 प्रतिशत बच्चे 6 घंटे से कम नींद लेते हैं। यह राष्ट्र के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। इसके कारण, हमारे देश की अगली पीढ़ी को मोटापे, तार्किक क्षमता में कठिनाई, भावनात्मक असंतुलन और अन्य कई अन्य विकारों का खतरा हो सकता है।“