आजादी के कार्यक्रम के उपलक्ष्य में लिथोग्राफी कार्यशाला- 2022 का किया गया आयोजन

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(www.arya-tv.com) कला एवं शिल्प महाविद्यालय , लखनऊ विश्वविद्यालय में ‘ आजादी के कार्यक्रम के उपलक्ष्य में लिथोग्राफी कार्यशाला- 2022 का आयोजन किया जा रहा है। इस कार्यशाला में कला महाविद्यालय के ललित कला विभाग के विद्यार्थियों ने भारतीय कला इतिहास एवं संस्कृति आदि विषयों पर लगभग 75 प्रिन्ट्स निर्मित करने की योजना बनाई हैं। इस कार्यक्रम में अतिथि कलाकार के रूप में समकालीन कला के अमेरिका में स्थापित भारतीय मूल के बहुचर्चित छापा कलाकार प्रो0 देवराज दाकोजी मौजूद रहे है जो विद्यार्थियों के समक्ष अपनी कला की प्रस्तुति देंगे और साथ ही लिथोग्राफी प्रिंटिंग तकनीक पर उनसे वार्तालाप भी करेंगे। इस अवसर पर लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय प्रो0 आलोक राय उपस्थित रहेंगे तथा कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में कला एवं शिल्प महाविद्यालय के प्रधानाचार्य प्रो0 आलोक कुमार कला महाविद्यालय के इतिहास एवं उसकी उपलब्धियों पर प्रकाश डालेंगे। सम्बन्धित कार्यशाला के समन्वयक राजन श्रीपाद फुलारी कार्यक्रम का संचालन करेंगे।

कला एवं शिल्प महाविद्यालय , लखनऊ भारत के प्रारम्भिक कला शिक्षा संस्थानों में से एक प्रमुख संस्थान रहा है जिसका प्रयोजन ललित कलाओं के साथ-साथ व्यवहारिक एवं उपयोगी कलाओं में विद्यार्थियों की व्यवसायिक शिक्षा प्रदान करता है। सन् 1911 ई. में स्थापित लखनऊ कला महाविद्यालय की ख्याति न केवल भारत में अपितु विदेशों में भी फैली हुई थीं। एशिया के अन्य देशों में विद्यार्थी आज भी यहाँ शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। नेथेनियल हर्ड लखनऊ कला महाविद्यालय के प्रथम प्रधानाचार्य हुए जबकि प्रथम भारतीय प्रधानाचार्य के रूप में बंगाल शैली के प्रसिद्ध चित्रकार असित कुमार हल्दार ने इसकी दीर्घकालीन देखरेख की। वस्तुतः लखनऊ कला महाविद्यालय आधुनिक और समकालीन भारतीय कला की वह उपधारा है जिसमें उतने ही उन्नत रूप, आकार एवं विषय ग्रहण किये जाते हैं। वर्तमान में कला महाविद्यालय अपने तीन विभागों यथा चित्रकला विभाग , मूर्तिकला विभाग एवं व्यवहारिक कला विभाग के माध्यम से पारम्परिक मूल्यों का पोषण और उनका संवर्धन कर रहा है। यहाँ पर 04 डिग्री कोर्सेज पी.जी. प्रोग्राम पीएच.डी तथा व्यवसायिक डिप्लोमा आदि का संचालन किया जाता है।

आधुनिक काल में ललित कलाओं के अन्य विषयों के साथ ही कला महाविद्यालय, लखनऊ में छापा कला विषय का भी प्रारम्भ हुआ जिसमें प्रिन्ट मेकिंग की अन्य विधियों के साथ-साथ लिथोग्राफी में भी प्रशिक्षण दिया जाता है असल में लिथोग्राफी चित्र मुद्रण की वह तकनीक है जिसमें मोनोक्रोम और रंगीन दोनों ही प्रकार के प्रिन्ट्स प्राप्त किये जाते हैं। बता दें, सर्वप्रथम इस तकनीक का आविष्कार 1796 ई. में जर्मन के एलोइस सेनेफेल्डर ने किया जो कि तेल और पानी की अमिश्रणीयता के सिद्धान्त पर आधारित है। प्रारम्भ में इसका विकास यूरोप तक ही सीमित था परन्तु भारत में ईस्ट इन्डिया कम्पनी की स्थापना के उपरान्त विदेशी वस्तुओं की बिक्री हेतु उनका विज्ञापन किया जाने लगा और इस प्रकार के विज्ञापनों में लिथोग्राफी मुद्रण विधि एक प्रमुख विधि के रूप में सामने आयी और इसका विकास भारत में भी होने लगा।

वर्तमान में यह पुरातन छपाई तकनीक व्यवसायिक रूप से बन्द हो गयी है और इसका स्थान आफसेट प्रिन्टिंग ने ले लिया है। परन्तु कलाकृतियों के निर्माण के लिए लिथो प्रिन्टिंग एक विशिष्ट विधा के रूप में उन्नति कर रही है। विगत दिनों अन्य विधाओं के शिक्षकों ने भी लिथो वर्कशाप में काम करते हुए अपने जीवन में पहली बार लियो प्रिन्ट बनाया जिसमें टेक्सटाइल , सेरामिक , मूर्तिकला तथा पेन्टिंग के शिक्षकों ने भाग लिया। इस अभिनव प्रयोग ने छापा कला की नवीन संभावनाओं को जन्म दिया जिसका प्रदर्शन इस दौरान किया जायेगा।

जानकारी के लिए बता दें, अभी हाल ही में कला महाविद्यालय में लिथोग्राफी में कुछ उत्कृष्ट मुद्रण किये गये और छापा कला के तीन विद्यार्थियों ने भी लगभग नौ वृहद् आकार के प्रिन्ट्स तैयार किये जिसमें लॉकडाउन के दौरान हुए अनुभव एवं विपत्तियों के परिस्थिति जन्य रूपकारों को प्रदर्शित किया गया। रचनाशीलता के इन अनुभवों को उक्त योजना में एक विस्तृत परिकल्पना के फलस्वरूप प्रिन्ट मेकिंग कार्यशाला 2022 का आयोजन 21 मार्च , 2022 से 25 मार्च , 2022 तक कला एवं शिल्प महाविद्यालय , लखनऊ विश्वविद्यालय में किया जा रहा है इस कार्यशाला में न केवल महाविद्यालय अपितु कलाकारों , शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को भी आमंत्रित किया गया है। कार्यशाला के आयोजन का प्रमुख उद्देश्य विद्यार्थियों को लिथोग्राफी मुद्रण तकनीक की बारिकियों से अवगत कराना तथा उसमें निपुण बनाना है।